जानिए एनएसजी में शामिल होने से भारत को क्या होंगे फायदे

जानिए एनएसजी में शामिल होने से भारत को क्या होंगे फायदे

(फाइल फोटो: कुंडनकुलम न्युक्लियर प्लांट)

खास बातें

  • सदस्यता मिली तो 49 न्युक्लियर सप्लायर देश होगा भारत।
  • चीन कर रहा है भारत की सदस्यता का विरोध।
  • 2008 से भारत को मिल रही NSG सदस्यों को मिलने वाली सुविधाएं।
नई दिल्ली:

भारत को एनएसजी (न्युक्लियर सप्लायर ग्रुप) की सदस्यता मिलेगी या नहीं इस पर देश ही नहीं पूरी दुनिया की नजर है। यदि भारत को सदस्यता मिलती है तो हम उस एलीट न्युक्लियर ग्रुप में शामिल हो जाएंगे जिसमें फिलहाल दुनिया के केवल 48 देश हैं। भारत का एनएसजी में शामिल होना कितना जरूरी है यह इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस देश में जा रहे हैं वहां एनएसजी की सदस्यता के लिए समर्थन जुटा रहे हैं।

एनएसजी 48 देशों का अंतर्राष्ट्रीय समूह है जिसका मकसद परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना और आपसी सहयोग से न्युक्लियर एनर्जी का उत्पादन करना है। यह समूह शांतिपूर्ण काम के लिए ही न्युक्लियर सामग्री का आपस में आदान प्रदान करता है। हालांकि 2008 में भारत और अमेरिका के बीच हुई सिविल न्यूक्लियर डील के बाद से ही एनएसजी मेंबर्स को मिलने वाली सुविधाएं भारत को मिल रही हैं।

भारत को होंगे ये फायदे
- न्युक्लियर एनर्जी से जुड़ी हर तकनीक और युरेनियम भारत बिना किसी समझौते के सदस्य देशों से हासिल कर सकेगा।
- सदस्य बनने के बाद भारत का कद एशिया में और ऊपर उठेगा, इतना ही नहीं भारत की अंतरराष्ट्रीय साख भी बढ़ेगी।
- ऊर्जा की मांग पूरी करने के लिए भारत को ज्यादा से ज्यादा परमाणु ऊर्जा बनाना होगा, एनएसजी का सदस्य बनने से भारत को इसमें मदद मिलेगी।
- न्युक्लियर प्लांट्स निकलने वाले कचरे के निपटारे के लिए सदस्य देशों की मदद मिलेगी।

भारत के परमाणु परीक्षण के जवाब में बना था एनएसजी
1974 में इंदिरा सरकार ने परमाणु परीक्षण किया था। इस टेस्ट के बाद भारत को सबक सिखाने के लिए दुनिया के टॉप-7 देशों ने एनएसजी का गठन किया था। शुरुआत में केवल अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, जापान, कनाडा और सोवियत संघ ही इसके सदस्य थे। आज ये सातों देश भारत को इस ग्रुप में शामिल करने का समर्थन कर रहे हैं। ग्रुप में बाद में शामिल हुआ चीन भारत को सदस्य बनाए जाने का विरोध कर रहा है।

...तो नहीं करनी पड़ती इतनी मेहनत
भारत की आजादी के तुरंत बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने भारत को न्युक्लियर टेस्ट के लिए मदद का प्रस्ताव दिया था। लेकिन न्युक्लियर टेस्ट और न्युक्लियर हथियार के खिलाफ कड़ा रुख दिखाते हुए तात्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने उस ऑफर को ठुकरा दिया था। यदि भारत ने वह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता तो भारत न्युक्लियर टेस्ट करने वाला पहला एशियाई देश बन जाता। इसके साथ ही भारत एनपीटी का सदस्य बन जाता और एनएसजी का सदस्य बनने के लिए इतनी कोशिशें नहीं करनी पड़तीं।


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