विज्ञापन
This Article is From Feb 02, 2023

सिंधु जल संधि : मतभेद सुलझाने के लिये विश्व बैंक के कदम पर भारत ने उठाए सवाल

भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किये थे.विश्व बैंक भी इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल था.

सिंधु जल संधि : मतभेद सुलझाने के लिये विश्व बैंक के कदम पर भारत ने उठाए सवाल
भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे
नई दिल्‍ली:

भारत ने सिंधु जल संधि से जुड़े मुद्दे के समाधान के लिये मध्यस्थता अदालत पीठ और तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने संबंधी दो अलग प्रक्रियाएं शुरू करने के लिए विश्व बैंक के निर्णय पर सवाल उठाया. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को संवाददाताओं से कहा, "मैं नहीं समझता कि वे (विश्व बैंक) इस स्थिति में हैं कि हमारे लिये इस संधि की व्याख्या कर सकें.यह संधि दो देशों के बीच हुई है और इस संधि के बारे में हमारी समझ यह है कि इसमें श्रेणीबद्ध प्रावधान हैं.'' उन्होंने बताया कि भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए 25 जनवरी को पाकिस्तान को नोटिस भेजा था.बागची ने बताया कि संधि में बदलाव के लिये नोटिस देने का मकसद पाकिस्तान को संशोधन से 90 दिनों के भीतर अंतर सरकारी वार्ता करने का अवसर प्रदान करना है.

पाकिस्तान को पहली बार यह नोटिस छह दशक पुराने इस संधि को लागू करने से जुड़े विवाद निपटारा तंत्र के अनुपालन को लेकर अपने रुख पर अड़े रहने के कारण भेजा गया था. प्रवक्ता ने बताया, '' मुझे अभी तक पाकिस्तान के रूख के बारे में जानकारी नहीं है. मैं विश्व बैंक की प्रतिक्रिया या टिप्पणी से भी अवगत नहीं हूं.''उन्होंने कहा कि विश्व बैंक ने पांच-छह वर्ष पहले इस मामले में दो अलग प्रक्रिया से जुड़ी समस्याओं को माना था और इस मामले में भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. ज्ञात हो कि भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षो की वार्ता के बाद 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किये थे.विश्व बैंक भी इस संधि के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल था.

इस संधि के मुताबिक पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है. भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार उसे (भारत को) दिया गया. समझा जाता है कि भारत द्वारा पाकिस्तान को यह नोटिस किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े मुद्दे पर मतभेद के समाधान को लेकर पड़ोसी देश के अपने रुख पर अड़े रहने के मद्देनजर भेजा गया है.यह नोटिस सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 (3) के प्रावधानों के तहत भेजा गया है. वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने भारतीय किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिये तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने का आग्रह किया था.

वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और इन आपत्तियों को मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव किया. भारत ने इस मामले को लेकर तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने का अलग से आग्रह किया था.भारत का मानना है कि एक ही प्रश्न पर दो प्रक्रियाएं साथ शुरू करने और इसके असंगत या विरोधाभासी परिणाम आने की संभावना एक अभूतपूर्व और कानूनी रूप से अस्थिर स्थिति पैदा करेगी जिससे सिंधु जल संधि खतरे में पड़ सकती है.

ये भी पढ़ें- 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com