भारत ने सोमवार को फैसला किया कि वह 16 देशों के आरसेप (RCEP) व्यापार समझौते का हिस्सा नहीं बनेगा. भारत ने कहा कि वह सभी क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दरवाजे खोलने से भाग नहीं रहा है, लेकिन उसने एक परिणाम के लिए एक जोरदार तर्क पेश किया, जो सभी देशों और सभी सेक्टरों के अनुकूल है. सूत्रों के अनुसार, RCEP शिखर सम्मेलन में अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "RCEP समझौते का मौजूदा स्वरूप RCEP की बुनियादी भावना और मान्य मार्गदर्शक सिद्धांतों को पूरी तरह जाहिर नहीं करता है. यह मौजूदा परिस्थिति में भारत के दीर्घकालिक मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक रूप से समाधान भी पेश नहीं करता."
देश के किसानों, व्यापारियों, पेशेवरों और उद्योगों और श्रमिकों और उपभोक्ताओं का हवाला देते हुए, जो ऐसे फैसलों से प्रभावित होते हैं, उन्होंने कहा - जब मैं सभी भारतीयों के हितों के संबंध में आरसीईपी समझौते को मापता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता है. इसलिए मेरा विवेक मुझे आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति नहीं देता है.
सूत्रों ने कहा कि आरसीईपी में भारत का रुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है. भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी क्षेत्र को बड़ी मदद मिलेगी. सूत्रों ने कहा कि इस मंच पर भारत का रुख काफी व्यावहारिक रहा है. भारत ने जहां गरीबों के हितों के संरक्षण की बात की वहीं देश के सेवा क्षेत्र को लाभ की स्थिति देने का भी प्रयास किया. सूत्रों ने बताया कि भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा को खोलने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई. इसके साथ ही मजबूती से यह बात रखी कि इसका जो भी नतीजा आए वह सभी देशों और सभी क्षेत्रों के अनुकूल हो.
विपक्षी दल कांग्रेस आरसीईपी को लेकर सरकार पर लगातार हमलावर था. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को सरकार पर यह कहते हुए कटाक्ष किया कि ‘मेक इन इंडिया' अब ‘बाय फ्राम चाइना' (चीन से खरीदो) हो गया है. राहुल ने आरईसीपी से जुड़ी एक खबर का हवाला देते हुए यह दावा भी किया कि आरईसीपी से भारत में सस्ते सामान की बाढ़ आ जाएगी जिससे लाखों नौकरियां जाएंगी और अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान पहुंचेगा.
"Make in " has become “Buy from ”.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 4, 2019
Each year we import Rs. 6,000/ worth of goods from for every Indian! A 100% increase since 2014. #RCEP will flood India with cheap goods, resulting in millions of job losses & crippling the economy. https://t.co/4DqzARiL6D
सूत्रों ने बताया कि चीन की ओर से शिखर बैठक के दौरान आरसीईपी समझौते को पूरा करने को लेकर काफी दबाव बनाया जा रहा था. चीन के लिये यह उसके अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार युद्ध के प्रभाव के बीच व्यापार में संतुलन बैठाने में मददगार साबित होता. साथ ही वह पश्चिमी देशों को क्षेत्र की आर्थिक ताकत का भी अंदाजा करा पाता.
भारत इस बातचीत में अपने उत्पादों के लिये बाजार पहुंच का मुद्दा काफी जोरशोर से उठा रहा था. भारत मुख्यतौर पर अपने घरेलू बाजार को बचाने के लिये कुछ वस्तुओं की संरक्षित सूची को लेकर भी मजबूत रुख अपनाये हुये था. देश के कई उद्योगों को ऐसी आशंका है कि भारत यदि इस समझौते पर हस्ताक्षर करता है तो घरेलू बाजार में चीन के सस्ते कृषि और औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ आ जाएगी.
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘भारत व्यापक क्षेत्रीय एकीकरण के साथ मुक्त व्यापार और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पक्षधर है. आरसीईपी वार्ताओं की शुरुआत के साथ ही भारत इसके साथ रचनात्मक और अर्थपूर्ण तरीके से जुड़ा रहा है. भारत ने आपसी समझबूझ के साथ ‘लो और दो' की भावना के साथ इसमें संतुलन बैठाने के लिए कार्य किया है.'' मोदी ने कहा, ‘‘जब हम अपने चारों तरफ देखते हैं तो सात साल की आरसीईपी वार्ताओं के दौरान वैश्विक आर्थिक और व्यापार परिदृश्य सहित कई चीजों में बदलाव आया है. हम इन बदलावों की अनदेखी नहीं कर सकते.''
इस बीच, व्यापार विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत के आरसीईपी में शामिल नहीं होने के फैसले से घरेलू उद्योग को अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाया जा सकेगा.
भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) में प्रोफेसर राकेश मोहन जोशी ने कहा, ‘‘इस कदम से स्पष्ट है कि भारत सावधानी से अपने उद्योग तथा किसानों को अनुचित प्रतिस्पर्धा से संरक्षण पर विचार कर रहा है. इससे डेयरी क्षेत्र को बड़ी राहत मिलेगी.''
निर्यातकों के संगठन फियो के पूर्व अध्यक्ष एस सी रल्हन ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इस्पात और कुछ इंजीनियरिंग कंपनियों ने करार को लेकर अपनी आपत्ति जताई थी. रल्हन ने कहा, ‘‘आरसीईपी से चीन के बाजार में पहुंच को लेकर भारतीय निर्यातकों को कोई लाभ नहीं मिलता.''
आसियान नेताओं और छह अन्य देशों ने नवंबर, 2012 में कंबोडिया की राजधानी नोम पेह में 21वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान आरसीईपी वार्ताओं की शुरुआत की थी. आरसीईपी वार्ताओं को शुरू करने का मकसद एक आधुनिक, व्यापक, उच्च गुणवत्ता वाला और पारस्परिक लाभकारी आर्थिक भागीदारी करार करना था.
मोदी ने कहा, ‘‘जब मैं आरसीईपी करार को सभी भारतीयों के हितों से जोड़कर देखता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता. ऐसे में न तो गांधीजी का कोई जंतर और न ही मेरी अपनी अंतरात्मा आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति देती है.''
विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह ने संवाददाताओं को बताया कि भारत ने शिखर बैठक के दौरान आरसीईपी करार में शामिल नहीं होने के अपने फैसले की सूचना दे दी है. सिंह ने कहा, ‘‘हमारा यह फैसला मौजूदा वैश्विक स्थिति के आकलन के अलावा करार के निष्पक्ष और संतुलित नहीं होने के आधार पर लिया गया है. भारत के कई प्रमुख मुद्दे थे जिन्हें हल नहीं किया गया.''
सूत्रों ने कहा कि वार्ताओं में आयात में बढ़ोतरी से अपर्याप्त संरक्षण, बाजार पहुंच को लेकर भारत को विश्वसनीय आश्वासन की कमी, गैर शुल्क अड़चनों, कुछ देशों द्वारा नियमों के संभावित उल्लंघन और चीन के साथ व्यापार में मतभेद जैसे मुद्दों का समाधान नहीं निकल पाया.
भारत के समझौते से बाहर रहने की घोषणा के बाद 15 आरसीईपी सदस्य देशों ने बयान जारी कर मुक्त व्यापार करार पर अगले साल हस्ताक्षर करने की प्रतिबद्धता जताई. यह पूछे जाने पर कि क्या भारत बाद के चरण में आरसीईपी में शामिल हो सकता है, विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) सिंह ने कहा कि भारत ने इसमें शामिल नहीं होने का फैसला किया है.
आरसीईपी देशों ने बयान में कहा कि भारत के कई मुद्दे थे, जिनका समाधान नहीं हो पाया. आरसीईपी में दस आसियान देश और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदार चीन, भारत, जापान, दक्षिण, कोरिया, भारत, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं. हालांकि, भारत ने अब आरसीईपी से बाहर निकलने का फैसला किया है.
यदि आरसीईपी समझौते को अंतिम रूप दे दिया जाता तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बन जाता. इसमें दुनिया की करीब आधी आबादी शामिल होती और वैश्विक व्यापार का 40 प्रतिशत तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 35 प्रतिशत इस क्षेत्र के दायरे में होता. सूत्रों ने कहा कि भारत को छोड़कर आरसीईपी के सभी 15 सदस्य देश सोमवार के शिखर सम्मेलन के दौरान करार को अंतिम रूप देने को लेकर एकमत थे.
सूत्रों ने कहा कि आरसीईपी में भारत ने जो रुख अपनाया है उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत का बढ़ता कद परिलक्षित होता है. भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी उत्पाद का हित संरक्षित होगा. सूत्रों ने कहा कि यह पहला मौका नहीं है जबकि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और उससे संबंधित वार्ताओं में कड़ा रुख अख्तियार किया है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मोदी को मुश्किल वार्ताकार करार दे चुके हैं. हालांकि, ट्रंप को खुद भी सख्त रुख अपनाने के लिए जाना जाता है.
सरकारी सूत्रों ने कहा, ‘‘अब वे दिन हवा हुए जबकि व्यापार के मुद्दों पर वैश्विक शक्तियों के समक्ष भारतीय वार्ताकार दबाव में आ जाते थे. इस बार भारत ‘फ्रंट फुट' पर खेला है और उसने व्यापार घाटे को लेकर देश की चिंताओं को उठाया है. साथ ही भारत ने भारतीय सेवाओं और निवेश के लिए अन्य देशों को अपने बाजारों को और खोलने का दबाव भी बनाया है.''
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत ने 2007 में भारत-चीन एफटीए की संभावना तलाशने और 2011-12 में चीन के साथ आरसीईपी वार्ताओं में शामिल होने की सहमति दी थी. सूत्रों ने कहा कि संप्रग के दौरान लिए गए इन फैसलों की वजह से आरसीईपी के देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा जो 2004 में सात अरब डॉलर था वह 2014 में 78 अरब डॉलर पर पहुंच गया. उस समय हुए इन फैसलों से भारतीय घरेलू उद्योग अभी तक प्रभावित हैं.
(इनपुट भाषा से...)
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं