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This Article is From Sep 03, 2012

यात्री को ट्रेन से फेंकने का मामला : जांच में बेगुनाह साबित हो रहे पुलिसवाले

यात्री को ट्रेन से फेंकने का मामला : जांच में बेगुनाह साबित हो रहे पुलिसवाले
मुंबई: मुंबई में कुछ दिनों पहले जीआरपी के जवानों पर पैसे न देने पर एक व्यक्ति को चलती ट्रेन से फेंकने का आरोप लगा। घटना में जीआरपी ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरआर जेधे, वीपी ठाकुर, एसएस पाटिल, एसएम मानगांवकर को गिरफ्तार भी कर लिया।

मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य के गृहमंत्री आरआर पाटिल ने चारों जवानों के निलंबन का आदेश दे दिया। निलंबन के साथ-साथ उन पर विभागीय कार्रवाई करने के भी आदेश दे दिए गए। मामले की जांच जीआरपी के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त रैंक के अधिकारी कर रहे हैं, लेकिन अब जांच में कुछ ऐसे तथ्य उभरकर सामने आ रहे हैं, जिसने न सिर्फ पीड़ित के बयान पर ही सवालिया निशान लगा दिए, बल्कि अब चारों जीआरपी के जवानों की बेगुनाही की बात भी सामने आ रही है।

जांच में पता चला कि पीड़ित हबीबुल्ला खान पर मुंबई के एनटॉप हिल इलाके में एक जुआ घर चलाने का आरोप है और उस पर खुद कई सारे मामले दर्ज हैं। पुलिस को दिए बयान में खान ने आरोप लगाया था कि सबसे पहले 18 अगस्त को उसे दो कांस्टेबलों ने पहले जीटीबी स्टेशन बुलाया और उसे ट्रेन में सवार होने को कहा गया। अगले ही स्टेशन पर दो और जीआरपी के जवान भी ट्रेन में सवार हो गए और चारों जीआरपी के जवानों ने पहले तो खान से पैसे मांगे और पैसे न देने पर कुर्ला और तिलक नगर स्टेशन के बीच चलती ट्रेन से नीचे धकेल दिया, लेकिन एसीपी की जांच में कुछ नए तथ्य सामने आए हैं।

पता चला है की खान ने 18 अगस्त की घटना के लिए जिस समय का जिक्र किया था उसके बारे में सबूत नहीं मिल पा रहे हैं। जीआरपी ने जीटीबी और कुर्ला स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज पूरी तरह चेक कर लिए हैं, लेकिन दोनों स्टेशनों के सीसीटीवी में आरोपी कांस्टेबलों का फुटेज नहीं मिल पाया है। आरोपी जवानों के कॉल डिटेल रिकॉर्ड चेक करने पर पता चला है कि वे सभी अपराध वाली जगह खान के दिए वक्त पर मौजूद नहीं थे। चार में से दो कांस्टेबल खान के बताए गए वक्त के समय नवी मुंबई के किसी स्टेशन पर मौजूद थे। अब आरोप लगाए जा रहे हैं कि क्या चारों कांस्टेबलों की गिरफ्तारी में जल्दबाजी की गई। पूर्व आईपीएस वाईपी सिंह के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ किया था कि एफआईआर करने के बाद गिरफ्तारी उसी वक्त की जानी चाहिए जब अपराधी जांच में सहयोग न दे या फिर सबूत मिटने का शक हो।

मामले की जांच कर रहे अधिकारी भी मान रहे हैं कि पुलिस चाहती तो पहले पीड़ित के आरोपों की जांच करती, लेकिन गिरफ्तारी में जरूरत से ज्यादा तेजी दिखाई गई। फिलहाल गिरफ्तार जीआरपी के जवानों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है जहां उन्हें उन लोगों के साथ अपना वक्त गुजरना होगा, जिन्हें उन्होंने कभी जेल में भेजा होगा।

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