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कभी गोद में छिपाया, आतंकी हमले ने भी नहीं डराया... रामलला को टाट से उनके ठाठ तक पूजते रहे आचार्य सत्येंद्र दास

आचार्य सत्येंद्र दास को राम मंदिर निर्माण के आरंभ से ही मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था और वह श्री राम जन्मभूमि के पूजा कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं.

कभी गोद में छिपाया, आतंकी हमले ने भी नहीं डराया... रामलला को टाट से उनके ठाठ तक पूजते रहे आचार्य सत्येंद्र दास
आचार्य सत्येंद्र दास
लखनऊ:
दिसंबर 1992. विश्व हिंदू परिषद ने लोगों को कारसेवा करने के लिए बुलाया था .पूरी अयोध्या कारसेवकों से भर गई थी. कारसेवकों ने ढांचे को तोड़ना शुरू किया. पहले उत्तर वाला गिरा, फिर दक्षिण वाला गिरा. बीच में रामलला थे. गिरने से पहले मैंने रामलला को सिंहासन सहित हटाकर दूर कर दिया. वहीं पर तिरपाल बनाकर भगवान श्रीरामलला को सिंहासन सहित स्थापित किया गया. यह उसी दिन 6 दिसंबर के लगभग 7 बजे की बात है. इसके बाद वहीं पर टाट में रामलला की पूजा होने लगी.  

एक पुराने इंटरव्यू में आचार्य सत्येंद्र दास

आचार्य सत्येंद्र दास. रामलला के एक ऐसे अनन्य भक्त, जो 33 सालों से हर पल उनके साथ रहे. सबसे कठिन दिनों में भी. रामलला के टाट से ठाठ तक के सफर के साक्षी बने. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचे को गिराए जाने के दौरान वह रामलला को गोद में लेकर निकले थे. और फिर टाट में उनकी पूजा करते रहे. अनवरत. बुधवार को यह सिलसिला थम गया. लंबे समय से बीमार राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास बुधवार को परलोकवासी हो गए. 

33 सालों से थे राम मंदिर के मुख्य पुजारी

आचार्य सत्येंद्र दास को राम मंदिर निर्माण के आरंभ से ही मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था और वह श्री राम जन्मभूमि के पूजा कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं. सत्येन्द्र दास पिछले 33 सालों से राम मंदिर के पुजारी थे, उन्होंने हर दौर में रामलला की पूजा की. टाट से लेकर अस्थायी मंदिर और फिर ठाठ से भव्य मंदिर में रामलला के विराजने पर भी, उन्होंने रामलला की सेवा की. उनके रहते ही राम मंदिर 5 जुलाई 2005 में आतंकी हमला भी हुआ था उन्हें 1992 मैं रामलला की सेवा का मौका मिला.

कैसे बनें राम मंदिर के पुजारी

सत्येंद्र दास ने ही बताया था कि सब कुछ जीवन में सामान्य चल रहा था. 1992 में रामलला के पुजारी लालदास थे. उस समय रिसीवर की जिम्मेदारी रिटायर जज पर हुआ करती थी. उस समय जेपी सिंह बतौर रिसीवर नियुक्त थे. उनकी फरवरी 1992 में मौत हो गई तो राम जन्मभूमि की व्यवस्था का जिम्मा जिला प्रशासन को दिया गया. तब पुजारी लालदास को हटाने की बात हुई. उस समय विनय कटियार बीजेपी के सांसद थे. वे VHP  के नेताओं और कई संतों के संपर्क में थे. उनसे सत्येंद्र दास का घनिष्ठ संबंध था. सबने उनके नाम का निर्णय किया.

100 रुपये में करते थे काम

तत्कालीन VHP अध्यक्ष अशोक सिंघल की भी सहमति मिल चुकी थी. जिला प्रशासन को इस बात की जानकारी दी गई और इस तरह 1 मार्च 1992 को वे राम जन्म भूमि मंदिर के मुख्य पुजारी बन गएं .उन्हें अपने साथ 4 सहायक पुजारी रखने का अधिकार भी दिया गया. शुरूआत में उन्हें 100 रुपए पारिश्रमिक बतौर पुजारी मिलता था. सत्येंद्र दास सहायता प्राप्त स्कूल मे भी पढ़ाते थे ,वहां से भी तनख्वाह मिलती थी. ऐसे में मंदिर में बतौर पुजारी सिर्फ 100 रुपए पारिश्रमिक मिलता था. 2007 में वे टीचर के पद से रिटायर हुए.

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