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This Article is From Sep 27, 2019

सरकारी लापरवाही का नतीजा, रीलों में कैद भारत के '71 सालों का इतिहास' Film Division में हो रहा है बर्बाद

इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ़िल्म डिविज़न में ही करीब 140 करोड़ में बने नैशनल म्यूज़ियम ऑफ़ इंडियन सिनेमा का उद्धाटन किया था.

Film Division में ऐतिहासिक धरोहर हो रही है बर्बाद

मुंबई:

आज़ादी के फ़ौरन बाद बने फ़िल्म्स ड़िविज़न (Film Division) ने भारत के इतिहास को कैमरे पर क़ैद किया था. लेकिन देश के इतिहास की धरोहर अब फिल्म्स ड़िविज़न (Film Division) के गलियारों में ज़मीन पर पड़ी धूल खा रही है. इस लापरवाही से फ़िल्म जगत के दिग्गज आहत और हैरान हैं कि देश की इतनी बेहतरीन यादें जो आने वाली पीढ़ी के लिए ज़रूरी हैं. उनको लेकर इतनी लापरवाही आख़िर क्यों है?  धूल खाती ऐसी फ़िल्म रील के कैन में पिछले 71 सालों का इतिहास क़ैद है. कचरे की ढेर की तरह पड़े इन फ़िल्म रील्स को रखने की ज़िम्मेदारी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले फ़िल्म डिविज़न ऑफ़ इंडिया की है. लेकिन यहां का हाल देखिए. वैसे तो इन्हें एसी में सहेज कर रखना था लेकिन कम जगह का रोना रो रहे फ़िल्म डिविज़न ने अपनी इमारत के छठी और सातवीं मंज़िल के गलियारों में करीब 11000 ऐसे रील के कैन को यूं ज़मीन पर इस हाल में रखा है. वैसे यहां की लाइब्रेरी की हालत भी कुछ ख़ास नहीं है. एसी तो छोड़िए गंदगी के बीच सिर्फ़ एक पंखे से हज़ारों रील्स को हवा देने की कोशिश हो रही है.

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इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ़िल्म डिविज़न में ही करीब 140 करोड़ में बने नैशनल म्यूज़ियम ऑफ़ इंडियन सिनेमा का उद्धाटन किया था. ऐसे में सिनेमा जगत के दिग्गज इन तस्वीरों को देखकर हैरान और आहत हैं. वरिष्ठ फिल्मकार श्याम बेनेगल ने दुखी होते हुए कहा, 'नेहरु, गांधी, पटेल देश से जुड़े ना जाने ऐसे कितने इतिहास उनके पास हैं ये बेहद अहम आरकाइव है. उन्हें स्टोर करना ज़रूरी है. पता नहीं ये ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं.

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वरिष्ठ डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर आनंद पटवर्धन के मुताबिक, मैंने खुद एक बार एक फ़िल्म के लिए इनसे फूटेज की मांग की थी. कैटेलॉग में है लेकिन डैमेज हो चुकी थी फ़िल्म. पता नहीं सरकार क्या कर रही है. करोड़ों रुपए इधर उधर खर्च हो रहे हैं लेकिन यहां ध्यान नहीं दे रहे.

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पिछले साल 14 नवंबर को नैशनल फ़िल्म आरकाइव ऑफ़ इंडिया को लिखे ख़त में फ़िल्म डिविज़न के तत्कालीन डायरेक्टर जेनरल प्रशांत पाथ्रबे ने जगह और सुविधा दोनों की कमी बताते हुए रील्स एनएफ़आई में रखने की अपील की थी लेकिन एनएफ़एआई ने भी जगह कह कमी बता कर इन रील्स को स्वीकार नहीं किया. कुछ भी हो इन साधारण से दिखने वाले डिब्बों में देश का इतिहास क़ैद है.  जिसे आने वाली पीढ़ी के लिए संजोना अहम है. महीनों मुंबई की नमी में यूं पड़ी ये फ़िल्में कब तक टिक पाएंगीं कहना मुश्किल है. 

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