प्राचीन भाषा तमिल पर हिंदी नहीं थोपी जा सकती: तमिलनाडु के राज्यपाल

तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि ने बृहस्पतिवार को कहा कि तमिल, हिंदी से कहीं अधिक पुरानी भाषा है और प्राचीनता में शायद संस्कृत के करीब है. साथ ही उन्होंने जोर दिया कि हिंदी को किसी भी भाषा पर नहीं थोपा जा सकता है.

प्राचीन भाषा तमिल पर हिंदी नहीं थोपी जा सकती: तमिलनाडु के राज्यपाल

तमिलनाडु के राज्यपाल आर. एन. रवि ने बृहस्पतिवार को कहा कि तमिल, हिंदी से कहीं अधिक पुरानी भाषा है और प्राचीनता में शायद संस्कृत के करीब है. साथ ही उन्होंने जोर दिया कि हिंदी को किसी भी भाषा पर नहीं थोपा जा सकता है. राज्यपाल ने कहा कि दुर्भाग्य से समय के साथ ऐसी कुछ नीतियां थीं, जिन्होंने 1960 में हिंदी को एक भाषा के रूप में थोपने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा, ‘‘तमिल, हिंदी से कहीं अधिक पुरानी है और यदि कोई भाषा जो अपनी प्राचीनता में तमिल के करीब आ सकती है, वह संस्कृत है, न कि कोई अन्य भारतीय भाषा.''

रवि ने यहां राजभवन में ‘‘तमिलनाडु दर्शन'' के दौरान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के तमिल भाषा के छात्रों के साथ बातचीत में कहा, ‘‘तमिल पर किसी अन्य भाषा को थोपने का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि इससे एक दूरी पैदा होती है.'' उन्होंने कहा, ‘‘तमिल बहुत ही प्राचीन और समृद्ध साहित्य है. जब तक मैं यहां नहीं आया, तमिल साहित्य, इतिहास और संस्कृति के बारे में मेरा ज्ञान बहुत सीमित था.''

राज्यपाल ने दावा किया, ‘‘तमिलनाडु हमारे देश की आत्मा है और यह हमारे देश की आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक राजधानी है, जबकि काशी सबके आकर्षण का केंद्र है. नवंबर और दिसंबर 2022 के महीनों में आयोजित ‘काशी तमिल संगमम' के दौरान, रवि ने बीएचयू में तमिल में विभिन्न पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने वाले छात्रों से मुलाकात की और उन्हें ‘‘तमिलनाडु दर्शन'' पर आमंत्रित किया था. यह यात्रा तमिल सीखने वाले गैर-तमिल छात्रों को तमिल संस्कृति, परंपराओं, व्यंजनों और कलाकृतियों का अनुभव प्राप्त करने और भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और आर्थिक विरासत को आकार देने में तमिल की अनूठी भूमिका को समझने का अवसर प्रदान करने के लिए आयोजित की गई है.

छात्रों ने तमिल भारतीय भाषा विभाग, बीएचयू के अपने संकाय सदस्यों, सहायक प्रोफेसरों के साथ चार अप्रैल को अपने दौरे की शुरुआत की थी और 11 जिलों का दौरा किया. राज्यपाल ने देश भर में तमिल भाषा और तमिल साहित्य के ज्ञान को फैलाने की आवश्यकता पर जोर दिया तथा ‘‘गैर-तमिल क्षेत्रों से तमिल विद्वानों के आने पर भी जोर दिया.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)