सदन में वोट के बदले नोट मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ में सुनवाई हुई. सीजेआई (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी आपराधिक कार्य में भी क्या सदन में विशेषाधिकार का कवच काम करेगा? क्या हमें कानून के दुरुपयोग की आशंका पर राजनीतिक भ्रष्टाचार को छूट देनी चाहिए? क्योंकि कानून के दुरुपयोग की आशंका अदालत से सुरक्षा के लिए उत्तरदायी होती है. हम सिर्फ इस बेहद महीन मुद्दे पर विचार करेंगे कि जब मामला आपराधिक कृत्य का हो तब भी विशेषाधिकार का संरक्षण मिलेगा या नहीं, क्योंकि कानून और उसके तहत संरक्षण के प्रावधानों का इस्तेमाल राजनीतिक भ्रष्टाचार के लिए नहीं किया जा सकता.
CJI ने कहा कि घूसखोरी के मुद्दे को थोड़ी देर के लिए भूल भी जाएं तो सवाल हैं. मान लीजिए किसी ने किसी सांसद पर कोई मुकदमा कर दिया कि उसने सदन में किसी अहम मुद्दे पर चुप्पी साध ली. ऐसे में विशेषाधिकार की बात जायज है. जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि हम संवैधानिक प्रावधान और उसके इस्तेमाल के बीच संतुलन बनाने के नजरिए से इस मामले में सुनवाई कर रहे हैं.
वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने दलील दी कि कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देनी चाहिए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पीवी नरसिम्हा राव मामले में समुचित तार्किक और मजबूत फैसला दे रखा है. उससे सारी चीजें स्पष्ट हैं.
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि कोई अदालत किसी से ये नहीं कहेगी कि आपने भाषण में ये या वो बात क्यों बोली? या आपने किसी खास को ही वोट क्यों डाला? राजनीतिक नैतिकता संविधान के अनुच्छेद 10 से निर्देशित होती है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संविधान पीठ का गठन किया गया है. CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है.
इससे पहले 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया था. सदन में वोट के लिए रिश्वत में शामिल सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से छूट पर फिर से विचार करने को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया था. पांच जजों की संविधान पीठ ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव मामले में अपने फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला लिया. मामले को सात जजों की संविधान पीठ को भेजा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये राजनीति की नैतिकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.
कोर्ट ये तय करेगा कि अगर सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेते हैं तो क्या तब भी उस पर मुकदमा नहीं चलेगा? 1998 का नरसिम्हा राव फैसला सांसदों को मुकदमे से छूट देता है. इसी फैसले पर दोबारा विचार होगा. CJI चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 5 जजों की बेंच ने कहा कि पीठ झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसदों के रिश्वत मामले में फैसले की नए सिरे से जांच करेगी. इसमें 1993 में राव सरकार के खिलाफ विश्वास प्रस्ताव के दौरान सांसदों ने कथित तौर पर किसी को हराने के लिए रिश्वत ली थी.
ऐसे मामले में छूट केवल तभी उपलब्ध होगी, जब दिया गया भाषण या दिया गया वोट देनदारी को जन्म देने वाली कार्यवाही के लिए कार्रवाई के कारण का एक आवश्यक और अभिन्न अंग है.
ये मामला सीता सोरेन बनाम भारत संघ है. ये मामला जनप्रतिनिधि की रिश्वतखोरी से संबंधित है. इस मामले के तार नरसिंहराव केस से जुड़े हैं, जहां सांसदों ने वोट के बदले नोट लिए थे. ये मसला अनुच्छेद 194 के प्रावधान 2 से जुड़ा है, जहां जनप्रतिनिधि को उनके सदन में डाले वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे में घसीटा नहीं जा सकता, उन्हें छूट दी गई है.
इस मामले में याचिकाकर्ता सीता सोरेन झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी हैं और उस समय हुए वोट के लिए नोट लेने की आरोपी भी हैं. सीता के खिलाफ सीबीआई जांच कराने की गुहार लगाते हुए 2012 में निर्वाचन आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई थी. सीता सोरेन को जनसेवक के तौर पर गलत काम करने के साथ आपराधिक साजिश रचकर जनसेवक की गरिमा घटाने वाला काम करने का आरोपी बनाया गया था. झारखंड हाईकोर्ट ने 2014 में केस रद्द कर दिया था. तब हाईकोर्ट ने कहा था कि सीता ने उस पाले में वोट नहीं किया था, जिसके बारे में रिश्वत की बात कही जा रही है.
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