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खंडहर, सूनी गलियां और डरावनी आवाजें… आखिर क्या है इस भूतिया गांव की सच्चाई?

रेगिस्तान के बीचों-बीच बसा यह गांव ‘शापित गांव’ कहलाता है. लेकिन आखिर इस गांव का रहस्य क्या है? क्यों यह गांव एक ही रात में खाली हो गया? जानिए पूरी कहानी...

खंडहर, सूनी गलियां और डरावनी आवाजें… आखिर क्या है इस भूतिया गांव की सच्चाई?

राजस्थान के जैसलमेर से करीब 17 किलोमीटर दूर थार के रेगिस्तान के बीचों-बीच बसा कुलधरा गांव आज भी रहस्य और इतिहास का अनोखा संगम है. दिन में पर्यटकों की आवाजाही से गुलजार रहने वाला यह गांव सूर्यास्त होते ही सन्नाटे में डूब जाता है. टूटी दीवारें, खंडहर बन चुके मकान और सूनी गलियां मानो किसी बीते दौर की पीड़ा को आज भी अपने भीतर समेटे हुए हैं. यही वजह है कि कुलधरा को 'घोस्ट विलेज'कहा जाता है.

कहा जाता है कि करीब 200 साल पहले यह गांव पूरी तरह आबाद था. यहां बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं, व्यापार फल-फूल रहा था और लोग संपन्न जीवन जीते थे. पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया यह गांव सिल्क रूट से जुड़े व्यापार का एक अहम केंद्र था. सूखा मेवा, कपड़ा और अन्य वस्तुओं का व्यापार यहां से होता था. इतिहासकारों के अनुसार, उस समय कुलधरा में लगभग 900 से ज्यादा मकान थे और हजारों लोग यहां रहते थे. लेकिन अचानक एक रात ऐसा क्या हुआ कि यह फलता-फूलता गांव हमेशा के लिए वीरान हो गया?

पालीवाल ब्राह्मणों को क्यों लेना पड़ा कठोर फैलसा?

लोककथाओं के अनुसार, तत्कालीन जैसलमेर रियासत के दीवान सालम सिंह के अत्याचारों से परेशान होकर पालीवाल ब्राह्मणों ने यह कठोर फैसला लिया. कहा जाता है कि दीवान ने भारी कर लगाए, सूखे और अकाल के बावजूद राहत नहीं दी और यहां तक कि गांव के मुखिया की बेटी की इज्जत पर भी खतरा मंडराने लग. स्वाभिमान और अस्मिता की रक्षा के लिए पालीवालों ने तय किया कि वे इस धरती को छोड़ देंगे, लेकिन अपने सम्मान से समझौता नहीं करेंगे.

इतिहासकार ने क्या बताया?

इतिहासकार बताते हैं कि पूर्णिमा, जिसे रक्षाबंधन के आसपास का समय माना जाता है, उसी रात पालीवाल ब्राह्मणों ने कुलधरा सहित 84 गांव एक साथ खाली कर दिए. जाते-जाते उन्होंने कथित तौर पर इस जगह को शाप दिया कि यहां फिर कभी कोई बस नहीं पाएगा. यही वजह है कि आज तक तमाम प्रयासों के बावजूद कुलधरा दोबारा आबाद नहीं हो सका.


रात के समय अजीब आवाजें.. स्थानीय चौकीदार क्या दावा करते हैं

स्थानीय लोग और चौकीदार मानते हैं कि दिन में यहां कोई असामान्य बात नहीं होती, लेकिन शाम ढलते ही गांव को बंद कर दिया जाता है. सूर्यास्त के बाद यहां रुकने की अनुमति नहीं दी जाती. कई लोग दावा करते हैं कि रात के समय अजीब आवाजें, नेगेटिव एनर्जी और असहज एहसास महसूस होता है. कोई बच्चों के रोने की आवाज सुनने की बात करता है तो कोई हवाओं में छिपे दर्द को महसूस करने का दावा करता है.

हालांकि, इतिहासकार और समाज के जानकार इन घटनाओं को भूत-प्रेत से जोड़ने के बजाय मनोवैज्ञानिक और ऐतिहासिक कारणों से देखते हैं. उनका मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर हुआ पलायन, लोगों का दुख, अपमान और असुरक्षा की भावना इस स्थान से जुड़ी नकारात्मक अनुभूति को जन्म देती है. खंडहर, वीरानी और सन्नाटा मिलकर इस जगह को रहस्यमयी बना देते हैं.

 कुलधरा एक संरक्षित पर्यटन स्थल...

आज कुलधरा एक संरक्षित पर्यटन स्थल है. सरकार के अधीन होने के कारण दिन में यहां पर्यटक आते हैं और इतिहास को करीब से देखते हैं. लेकिन सूर्यास्त के बाद यहां छा जाने वाला सन्नाटा आज भी लोगों को सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या यह सिर्फ एक उजड़ा गांव है या स्वाभिमान की कीमत चुकाने की एक अमर कहानी.

कुलधरा को भूतिया गांव कहना शायद अतिशयोक्ति हो, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि इस गांव की हर दीवार, हर पत्थर और हर गली पालीवाल ब्राह्मणों के दर्द, संघर्ष और आत्मसम्मान की गवाही देती है. रेगिस्तान की हवाओं में आज भी उस इतिहास की गूंज सुनाई देती है, जिसने एक रात में 84 गांवों की किस्मत बदल दी.

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