प्रतीकात्मक तस्वीर...
अहमदाबाद:
गुजरात हाईकोर्ट ने निकाय चुनाव में अनिवार्य वोटिंग पर रोक लगा दी है। दो दिन पहले एक वकील केआर कोशती ने हाईकोर्ट में सरकार के इस आदेश को ये कहकर चुनौती दी थी कि वोट डालना नागरिकों का अधिकार है न कि कर्तव्य। हाइकोर्ट ने अगले आदेश तक सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी है। वोट न डालने पर सरकार ने 100 रुपये का जुर्माना लगाया था।
इस मुद्दे पर लंबे समय से गुजरात सरकार और राज्यपाल के बीच ठनी हुई थी। आखिरकार केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद गुजरात में अनिवार्य वोटिंग की अधिसूचना जारी की। गौरतलब है कि गुजरात में मतदाताओं की भागदारी बहुत ज्यादा नहीं रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात में 66.4 प्रतिशत मतदान हुआ था जब भाजपा ने सभी 26 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं नगर निगम चुनाव में तो गुजरात की रुचि और कम रही है, यहां तक की 1995 से ये आंकड़ा 60 प्रतिशत को पार ही नहीं कर पाया है।
अनिवार्य वोटिंग का प्रस्ताव सबसे पहले गुजरात सरकार ने 2009 में रखा था जब नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल रखी थी। उस वक्त यह उनके अहम प्रोजेक्ट में से एक माना जाता था। राज्य की तत्कालीन राज्यपाल कमला बेनीवाला ने विधानसभा में यह कहकर वापिस भेजा कि ये आदेश 'व्यक्तिगत आज़ादी के साथ छेड़छाड़ होगी।'
वहीं विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने भी अनिवार्य वोटिंग का विरोध किया था और भाजपा सरकार पर अपने बहुमत के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया था।
कुछ महीने पहले विधान सभा में कांग्रेस के नेता शंकर सिंह वाघेला ने कहा था 'बहुमत के बल पर आप कानून तो बना सकते हैं लेकिन हम उसके पीछे की भावना को समझना होगा। इस तरह की अनिवार्य वोटिंग तो रूस और चीन जैसे वामपंथी देशों में थोपी जाती है। इस तरह के कानून से तो लोगों को पेरशान किया जा सकता है।'
इस मुद्दे पर लंबे समय से गुजरात सरकार और राज्यपाल के बीच ठनी हुई थी। आखिरकार केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद गुजरात में अनिवार्य वोटिंग की अधिसूचना जारी की। गौरतलब है कि गुजरात में मतदाताओं की भागदारी बहुत ज्यादा नहीं रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात में 66.4 प्रतिशत मतदान हुआ था जब भाजपा ने सभी 26 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं नगर निगम चुनाव में तो गुजरात की रुचि और कम रही है, यहां तक की 1995 से ये आंकड़ा 60 प्रतिशत को पार ही नहीं कर पाया है।
अनिवार्य वोटिंग का प्रस्ताव सबसे पहले गुजरात सरकार ने 2009 में रखा था जब नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल रखी थी। उस वक्त यह उनके अहम प्रोजेक्ट में से एक माना जाता था। राज्य की तत्कालीन राज्यपाल कमला बेनीवाला ने विधानसभा में यह कहकर वापिस भेजा कि ये आदेश 'व्यक्तिगत आज़ादी के साथ छेड़छाड़ होगी।'
वहीं विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने भी अनिवार्य वोटिंग का विरोध किया था और भाजपा सरकार पर अपने बहुमत के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया था।
कुछ महीने पहले विधान सभा में कांग्रेस के नेता शंकर सिंह वाघेला ने कहा था 'बहुमत के बल पर आप कानून तो बना सकते हैं लेकिन हम उसके पीछे की भावना को समझना होगा। इस तरह की अनिवार्य वोटिंग तो रूस और चीन जैसे वामपंथी देशों में थोपी जाती है। इस तरह के कानून से तो लोगों को पेरशान किया जा सकता है।'
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