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This Article is From Apr 18, 2016

मराठवाड़ा में सूखा : जलाशयों के बाद अब भूजल की स्थिति भी हो रही बदतर

मराठवाड़ा में सूखा : जलाशयों के बाद अब भूजल की स्थिति भी हो रही बदतर
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
नई दिल्ली: महाराष्‍ट्र के कई इलाकों में लगातार सूखे का असर नदियों और तालाबों पर ही नहीं पड़ा है। धरती के नीचे का पानी भी पाताल में जा रहा है।

बीड ज़िले के शेरी गांव में कृष्णा जाधव अपने खेत में कुआं खोद रहे हैं। 50 फुट से ज़्यादा की खुदाई हो चुकी है। चार लाख खर्च भी कर चुके हैं। लेकिन पानी अभी तक नहीं मिला। इस संकट से बीड ज़िले के सैकड़ों किसान जूझ रहे हैं। पहले 50 से 60 फुट में पानी मिल जाता था। लेकिन अब पानी काफी नीचे जा चुका है। लोगों ने बोरवेल का सहारा लिया- बोरवेल की खुदाई 200 फीट तक करनी पड़ती थी, अब 500 फुट तक करनी पड़ती है। पानी मिलता भी है तो पीने लायक नहीं रहता।

केन्द्रीय भूजल बोर्ड के अध्यक्ष मानते हैं कि इस संकट का दायरा बढ़ता जा रहा है और भू-जल का इस्तेमाल सिर्फ पीने के पानी तक सीमित कर देना चाहिए। केन्द्रीय भूजल बोर्ड का मानना है कि मराठवाड़ा में भूजल के कुल स्रोत का 65% सिंचाई पर इस्तेमाल किया गया। जिसकी वजह से आज पानी का संकट खड़ा हो गया है।

केन्द्रीय भूजल बोर्ड के चेयरमैन के बी बिस्वास ने एनडीटीवी से कहा, "मराठवाड़ा इलाके में भूजल का इस्तेमाल सिर्फ पीने के पानी के लिए किया जाना चाहिये। इसका इस्तेमाल सिंचाई के लिए नहीं होना चाहिये। राज्य सरकार को इस इलाके में सिंचाई के लिए वैकल्पिक व्यवस्था तैयार करनी होगी।"

ज़ाहिर है, मॉनसून आने में 6 हफ्ते का वक्त बचा है, जलाशय सूखते जा रहे हैं। ऐसे में बचे हुए भू-जल का इस्तेमाल सोच-समझकर नहीं किया गया तो संकट और बढ़ जाएगा।

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