प्रेमा गोपालन को संयुक्त राष्ट्र के मोमेंटम फॉर चेंज अवॉर्ड के लिए चुना गया है
माराकेश:
क्या आपको पता है कि इस साल जब मीडिया में मराठवाड़ा से किसानों की आत्महत्या की खबरें आ रही थी, तो कुछ महिलाएं चुपचाप इसी क्षेत्र में बदलाव के लिए दिन-रात एक किए हुए थीं. उनकी लगन और मेहनत से मराठवाड़ा क्षेत्र से हजारों किसानों का पलायन रुका. यहां करीब 500 गांवों की 5000 महिलाओं की ये कहानी आप तक भले ही न पहुंची हो, लेकिन इस प्रयास को संयुक्त राष्ट्र ने सम्मानित किया है. मोरक्को में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इसे पुरस्कार मिल रहा है.
60 साल की सामाजिक उद्यमी प्रेमा गोपालन जो समाज में एक बड़ी क्रांति की सूत्रधार रही हैं, उन्हें संयुक्त राष्ट्र के मोमेंटम फॉर चेंज अवॉर्ड के लिए चुना गया है. पिछले 20 साल से महिलाओं को साफ-सुथरी ऊर्जा के प्रयोग के लिए उत्साहित करने और समर्थ बनाने में लगी प्रेमा गोपालन की कहानी देश की लाखों महिलाओं की दास्तान बन गई है.
NDTV इंडिया से खास बातचीत में प्रेमा गोपालन ने कहा, 'इस साल मई जून में जब मीडिया लातूर, उस्मानिया, और नांदेड़ जिलों में किसानों की बदहाली और खुदकुशी की खबरें दिखा रही थी, तो हमारी सहयोगी महिलाओं ने किसानों का पलायन रोकने के लिए करीब 40 लाख के कर्ज बांटे, जिससे उन्होंने मुर्गियां या बकरियां खरीदीं. खेती के लिए तालाब बनाए और भूमिहीन किसान सामुदायिक खेती के लिए आपस में जुड़े.'
गोपालन बताती हैं कि मराठवाड़ा के 500 गांवों से 1000 महिलाओं ने लीडर का रोल अदा किया और ग्राम पंचायत और प्रशासन के साथ मिलकर सूखे से निबटने की पूरी प्रक्रिया की निगरानी भी की, ताकि फंड का दुरुपयोग या बर्बादी न हो.
गोपालन की संस्था 'स्वयं शिक्षण प्रयोग' पिछले 10 सालों से साफ सुथरी ऊर्जा को महिलाओं की प्रतिदिन की जिंदगी से जोड़ने में लगी है. प्रेमा बताती हैं, 'आज गांवों में लाखों महिलाएं बायो फ्यूल का इस्तेमाल कर 100 प्रतिशत धुआं रहित स्टोव में खाना बनाती हैं, जो उनके स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए एक क्रांति लाया है. इसके लिए ईंधन के तौर पर अनाज से मिलने वाले पैलेट्स इस्तेमाल होता है और एक कंपनी के सहयोग से स्टोव बनाए गए. महिलाओं की बचत एक बड़े कारगर फंड का रुप ले रही है.'
गोपालन के इस प्रयास ने 'ऊर्जा सखी' शब्द को देश के 5 राज्यों के कई जिलों में प्रचलित कर दिया है. उनकी संस्था महिलाओं को स्वयंसेवी संगठनों की मदद ले आपदाओं से लड़ने के लिए और आपदा के बाद पुनर्निर्माण के लिए भी तैयार कर रही हैं.
60 साल की सामाजिक उद्यमी प्रेमा गोपालन जो समाज में एक बड़ी क्रांति की सूत्रधार रही हैं, उन्हें संयुक्त राष्ट्र के मोमेंटम फॉर चेंज अवॉर्ड के लिए चुना गया है. पिछले 20 साल से महिलाओं को साफ-सुथरी ऊर्जा के प्रयोग के लिए उत्साहित करने और समर्थ बनाने में लगी प्रेमा गोपालन की कहानी देश की लाखों महिलाओं की दास्तान बन गई है.
NDTV इंडिया से खास बातचीत में प्रेमा गोपालन ने कहा, 'इस साल मई जून में जब मीडिया लातूर, उस्मानिया, और नांदेड़ जिलों में किसानों की बदहाली और खुदकुशी की खबरें दिखा रही थी, तो हमारी सहयोगी महिलाओं ने किसानों का पलायन रोकने के लिए करीब 40 लाख के कर्ज बांटे, जिससे उन्होंने मुर्गियां या बकरियां खरीदीं. खेती के लिए तालाब बनाए और भूमिहीन किसान सामुदायिक खेती के लिए आपस में जुड़े.'
गोपालन बताती हैं कि मराठवाड़ा के 500 गांवों से 1000 महिलाओं ने लीडर का रोल अदा किया और ग्राम पंचायत और प्रशासन के साथ मिलकर सूखे से निबटने की पूरी प्रक्रिया की निगरानी भी की, ताकि फंड का दुरुपयोग या बर्बादी न हो.
गोपालन की संस्था 'स्वयं शिक्षण प्रयोग' पिछले 10 सालों से साफ सुथरी ऊर्जा को महिलाओं की प्रतिदिन की जिंदगी से जोड़ने में लगी है. प्रेमा बताती हैं, 'आज गांवों में लाखों महिलाएं बायो फ्यूल का इस्तेमाल कर 100 प्रतिशत धुआं रहित स्टोव में खाना बनाती हैं, जो उनके स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए एक क्रांति लाया है. इसके लिए ईंधन के तौर पर अनाज से मिलने वाले पैलेट्स इस्तेमाल होता है और एक कंपनी के सहयोग से स्टोव बनाए गए. महिलाओं की बचत एक बड़े कारगर फंड का रुप ले रही है.'
गोपालन के इस प्रयास ने 'ऊर्जा सखी' शब्द को देश के 5 राज्यों के कई जिलों में प्रचलित कर दिया है. उनकी संस्था महिलाओं को स्वयंसेवी संगठनों की मदद ले आपदाओं से लड़ने के लिए और आपदा के बाद पुनर्निर्माण के लिए भी तैयार कर रही हैं.
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