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This Article is From Jul 14, 2017

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी जानकारी, पिछले महीने 3,500 बाल पोर्नोग्राफी साइटों पर लगी पाबंदी

शीर्ष अदालत देशभर में बाल पोर्नोग्राफी के खतरे को रोकने के लिए समुचित कदम उठाने के संबंध में केंद्र को निर्देश देने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी जानकारी, पिछले महीने 3,500 बाल पोर्नोग्राफी साइटों पर लगी पाबंदी
प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली: चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि पिछले महीने 3522 चाइल्ड पोर्नोग्राफी वेबसाइटों को ब्लॉक कर दिया गया है. साथ ही केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड(सीबीएसई) को स्कूलों में पोर्नोग्राफी वेबसाइट को ब्लॉक करने के लिए जैमर लगाने पर विचार करने के लिए कहा गया है. जबकि स्कूल बसों में मोबाइल जैमर लगाना मुश्किल है.

केंद्र ने जस्टिस दीपक मिश्रा बेंच को बताया कि इंटरनेट पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर लगाम लगाने को लेकर सरकार लगातार प्रयास कर रही है. उन्होंने बताया कि जून महीने में 3523 चाइल्ड पोर्नोग्राफी वेबसाइटों को ब्लॉक किया गया है. साथ ही सीबीएसई को स्कूलों में जैमर लगाने पर विचार करने के लिए कहा गया है.

सरकार ने कोर्ट को बताया कि स्कूल बसों में जैमर लगाना मुश्किल है. इसके बाद कोर्ट ने केंद्र को विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए सुनवाई चार हफ्ते के लिए टाल दी. सरकार को रिपोर्ट में यह बताने के लिए कहा गया है कि अब तक इस मसले पर उसकी ओर से क्या-क्या कदम उठाए गए हैं. कोर्ट ने कहा कि विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट पर गौर करने के बाद इस पर रोकथाम के लिए प्रभावी तंत्र विकसित किया जा सकेगा.

दरअसल पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने बताया था कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी और इंटरनेट पर यौन शोषण की घटनाओं में हो रही वृद्धि को देखते हुए इस मसले को लेकर इंटरपोल से भी बातचीत की गई है.

कोर्ट कमलेश वासवानी की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर पूरी तरह से पांबदी लगाने की गुहार लगाई गई है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट वूमन लॉयर्स एसोसिएशन भी पक्षकार है. एसोएिशन का कहना था कि ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब स्कूल बस का ड्राइवर अश्लील वीडियो देखता है. इतना ही नहीं कभी-कभी तो वह बच्चों को भी यह देखने के लिए दबाव डालता है. यह यौन प्रताड़ना है. इस पर कोर्ट ने कहा था कि आजादी के नाम पर बच्चों के साथ इस तरह के व्यवहार को राष्ट्र सहन नहीं कर सकता. बेंच ने इस तरह की घटनाओं को शर्मनाक बताया था. अदालत ने कहा था कि अधिकार क्या है और अपराध शुरू कहां से होता है, इसे परिभाषित करना जरूरी है. बच्चों को इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध पोर्नोग्राफी पर चिंता जताते हुए कोर्ट ने कहा था कि इससे उनका शारीरिक पतन हो सकता है.

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