सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर ने कहा कि महिलाओं को नए अधिकार की जरूरत नहीं है.
नई दिल्ली:
महिला दिवस पर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर ने कहा कि जेंडर सेंसटाइजेशन को अपने घर से शुरू करना चाहिए. इसके लिए किसी नए कानून की जरूरत नहीं है. महिलाओं को नए अधिकार की जरूरत नहीं है. उनके पास पहले से ही पर्याप्त अधिकार मौजूद हैं. लेकिन यह सब माइंडसेट की बात है. इस माइंडसेट को कैसे बदला जाए.
चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट की जेंडर सेंसटाइजेशन एंड इंटरनल कम्पलेंट कमेटी द्वारा बुधवार को आयोजित समारोह में बोल रहे थे. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के कई जज मौजूद रहे.
सीजेआई खेहर ने कहा कि पुरुष अगर अपने बच्चे के साथ बाहर जाता है तो यह उसकी मर्जी है लेकिन महिला को बाहर जाने के लिए इजाजत लेनी होती है. आखिर पुरुष को घर का मास्टर क्यों कहा जाता है. क्योंकि महिला उसके लिए खाना बनाती है, कपड़े धोती है, बच्चों को संभालती है. वह उसका और बच्चों का पूरा ध्यान रखती है. जब लड़के का जन्म होता है तो जश्न मनाया जाता है लेकिन लड़की के जन्म पर ऐसा नहीं होता. लड़के को हमेशा प्रोटोकोल मिलता है, जैसे उसे पहले अच्छा खाना मिलेगा, अच्छी शिक्षा मिलेगी. यही हमारे बच्चे देखते हैं. लड़की को जीवनभर का बोझ मान लिया जाता है.
उन्होंने कहा कि यह एक मनोवैज्ञानिक मामला है लेकिन एक फिजियोलोजिकल भी है. एक राज्य जिसमें महिला-पुरुष के बीच जन्म-दर में अंतर हो तो वहां शादियों की दिक्कत हो जाती है. हमने देखा है कि महिलाओं से रेप और छेड़छाड़ होती है, वे गरीब तबके के लोग होते हैं. क्योंकि वे लोग चोरी की बिजली, चोरी के पानी और ऐसी जगह रहते हैं जो उनकी नहीं होती. वे प्राइवेसी में नहीं रहते. सिर्फ सजा देकर ही लोगों का मन नहीं बदल सकते. हमें उस तबके के लिए भी करना चाहिए.
चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट की जेंडर सेंसटाइजेशन एंड इंटरनल कम्पलेंट कमेटी द्वारा बुधवार को आयोजित समारोह में बोल रहे थे. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के कई जज मौजूद रहे.
सीजेआई खेहर ने कहा कि पुरुष अगर अपने बच्चे के साथ बाहर जाता है तो यह उसकी मर्जी है लेकिन महिला को बाहर जाने के लिए इजाजत लेनी होती है. आखिर पुरुष को घर का मास्टर क्यों कहा जाता है. क्योंकि महिला उसके लिए खाना बनाती है, कपड़े धोती है, बच्चों को संभालती है. वह उसका और बच्चों का पूरा ध्यान रखती है. जब लड़के का जन्म होता है तो जश्न मनाया जाता है लेकिन लड़की के जन्म पर ऐसा नहीं होता. लड़के को हमेशा प्रोटोकोल मिलता है, जैसे उसे पहले अच्छा खाना मिलेगा, अच्छी शिक्षा मिलेगी. यही हमारे बच्चे देखते हैं. लड़की को जीवनभर का बोझ मान लिया जाता है.
उन्होंने कहा कि यह एक मनोवैज्ञानिक मामला है लेकिन एक फिजियोलोजिकल भी है. एक राज्य जिसमें महिला-पुरुष के बीच जन्म-दर में अंतर हो तो वहां शादियों की दिक्कत हो जाती है. हमने देखा है कि महिलाओं से रेप और छेड़छाड़ होती है, वे गरीब तबके के लोग होते हैं. क्योंकि वे लोग चोरी की बिजली, चोरी के पानी और ऐसी जगह रहते हैं जो उनकी नहीं होती. वे प्राइवेसी में नहीं रहते. सिर्फ सजा देकर ही लोगों का मन नहीं बदल सकते. हमें उस तबके के लिए भी करना चाहिए.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं