पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के लिए जरूरी है कि भय की राजनीति उम्मीदों की राजनीति पर हावी न हो. राजस्थान विधानसभा में पंद्रहवीं विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों के लिए आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम के समापन सत्र को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि विधायकों को लोगों में आत्मविश्वास लाना चाहिए, ताकि वे खुशी से रह सकें. उन्होंने कहा कि कुछ दिन पूर्व एक जाने-माने शिक्षाविद ने इस बात को इंगित किया था कि भय की राजनीति उम्मीदों की राजनीति पर खतरा बन सकती है. सिंह ने कहा कि भय की राजनीति उम्मीदों की राजनीति पर हावी नहीं हो, इसके लिये जनता विधायकों पर निर्भर रहती है और यह देश के लिये जरूरी है. पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रबोधन कार्यक्रम के माध्यम से विधायक राज्य के प्रति अपने संसदीय दायित्व को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे.
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उन्होंने कहा कि हर विधायक का प्रथम कर्तव्य है कि वह अपने विधानसभा क्षेत्र के निवासियों और विधानसभा के बीच कड़ी के रूप में काम करे. उसे विधायक कोष की राशि का सौ प्रतिशत उपयोग कर अपने विधानसभा क्षेत्र में आधारभूत संरचना, स्कूल, चिकित्सालय निर्माण जैसे कार्य कराने चाहिए. सिंह ने विधायकों से कहा कि आप इस समस्या को भली भांति समझते हैं, इसलिए जनता में आत्मविश्वास लाना आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि उनमें यह विश्वास हो सके कि आपके कुशल नेतृत्व के कारण वे लोग खुशहाली से जी रहे हैं.
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उन्होंने कहा कि वह भविष्य को लेकर पूर्णतया आश्वस्त हैं. पूर्व पीएम ने कहा कि एक विधायक को विशेष तौर पर जब वह विपक्ष में हो तब अन्य लोगों को सुनने की आदत होनी चाहिए. उन्हें बहुत दुख होता है जब कुछ राज्यों की विधानसभाओं में विधायक अभद्र व्यवहार करते हैं. लोकसभा और कई विधानसभाओं की कार्यवाही का अब सीधा प्रसारण किया जा रहा है. यह अफसोस की बात है कि कभी-कभी कुछ विधायक और कुछ सांसद सदन में अभद्र व्यवहार करते हैं. इससे मुझे बहुत दुख होता है. इस तरह की घटनाओं से युवा पीढ़ी में एक गलत संदेश पहुंचता है. सदनों में तथ्यपरक और गुणवत्तापूर्ण चर्चा होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि विश्व में संसदीय लोकतंत्र के बदलते परिदृश्य में राजस्थान एक अग्रणी प्रदेश के रूप में पहचाना जाता है.
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उन्होंने अपने दायित्व के प्रभावी निर्वहन के लिए राज्य विधानसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों को संसदीय प्रक्रियाओं, कार्यप्रणाली एवं नियमों की गहन जानकारी रखने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि हर विधायक जनता के प्रतिनिधि के रूप में विधायी कार्य का संरक्षक है जिसे अपनी संविधान प्रदत्त विधायी, वित्तीय एवं संवैधानिक शक्तियों का जनसेवा के लिए मानवीय पक्ष को ध्यान में रखते हुए उपयोग करना चाहिए. सरकार एवं प्रतिपक्ष को मिलकर सहमति के आधार पर अग्रसर होना चाहिए. पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि विधायकों को अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों का समुचित विकास करने के लिये 'विधायक निधि' का पूरा उपयोग करना चाहिए. कैग की एक रिपोर्ट के बारे में मीडिया में आई खबरों का उल्लेख करते हुए सिंह ने कहा कि वर्ष 2011 से 2016 के दौरान विधायकों को आंवटित 'विधायक निधि' का बड़ा हिस्सा उपयोग नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि 'विधायक निधि' का उपयोग ढांचागत विकास, स्कूल, अस्पताल के निर्माण के लिये होना चाहिए ताकि संबंधित क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर लोगों को इसका फायदा मिल सके. सिंह ने सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करने में विधायकों के अधिकार, नियंत्रण और कार्यों का भी उल्लेख किया.
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उन्होंने कहा कि सरकार और विपक्ष को राज्यों की जरूरतों पर खुले तौर पर सोचना चाहिए और उन्हें राजनैतिक संबंधता को अलग रखते हुए आपस की सहयोग की भावना से काम करना चाहिए. इस अवसर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री रहते हुए आजादी के बाद पहली बार उदारीकरण की शुरुआत की, जिससे देश के विकास की राह खुली. उन्होंने कहा कि विकसित राष्ट्र भी जिस समय मंदी से गुजर रहे थे, उस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री की अर्थ नीति के कारण भारत मंदी के दौर से अछूता रहा.
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वर्ष 2007 में भारत की जीडीपी दर 9 प्रतिशत तक लाने का श्रेय भी डॉ. सिंह को ही है. संसदीय लोकतंत्र में डॉ. सिंह के दीर्घ अनुभवों का लाभ सभी विधायकों को लेना चाहिए ताकि वे सुशासन कायम करने में अपनी भूमिका निभा सकें. नेता प्रतिपक्ष, राजस्थान विधानसभा गुलाबचंद कटारिया ने प्रबोधन कार्यक्रम को एक अच्छी परिपाटी बताते हुए कहा कि इस तरह के सामूहिक विचार विमर्श से लोकतंत्र को मजबूती मिलती है. (इनपुट भाषा से)
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