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पेट्रोल-डीजल की कीमतें कैसे कम हो सकती हैं? NDTV पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताए उपाय

पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने से, इन उत्पादों पर अधिकतम 28 प्रतिशत कर स्लैब होगा, क्योंकि ये मौजूदा कर व्यवस्था में सबसे ऊंचा स्लैब है.

नई दिल्ली:

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने एनडीटीवी से एक्सक्लूसिव बात की. उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकारें प्रस्ताव पर सहमत होती हैं और उचित दर तय करती हैं तो पेट्रोल और डीजल पर वैट के बजाय जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के तहत कर लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अगर वे दर तय करते हैं और सभी एक साथ आकर ये तय करते हैं कि जीएसटी में पेट्रोलियम उत्पाद शामिल होंगे, तो हम इसे तुरंत लागू कर सकते हैं.

इस तरह के कदम से कीमतों में संभावित गिरावट देखी जा सकती है, क्योंकि इसका मतलब ये होगा कि न केवल उत्पादन की लागत पर बल्कि केंद्र के उत्पाद शुल्क पर भी, कई टैक्स लगाने के बजाय सिर्फ एक बार टैक्स लगाया जाएगा.

वर्तमान में, पेट्रोल और डीजल की कीमतें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं, क्योंकि सभी पर अलग-अलग टैक्स है. इसके ऊपर केंद्र का उत्पाद शुल्क लगाया जाता है, जिसका अर्थ है कि अंतिम उपभोक्ता दो बार कर का भुगतान करता है, एक बार राज्य सरकार को और फिर केंद्र को. दोनों को जीएसटी के दायरे में ले जाने का मतलब होगा कि पूरे देश में एक समान टैक्स लागू होगा. इससे सैद्धांतिक तौर पर कीमतें कम हो सकती हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक, पेट्रोलियम उत्पादों पर करीब 60 फीसदी टैक्स लगता है, जिससे राज्य को 2.5 लाख करोड़ रुपये और केंद्र को 2 लाख करोड़ रुपये का फायदा होता है.

पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने से, इन उत्पादों पर अधिकतम 28 प्रतिशत कर स्लैब होगा, क्योंकि ये मौजूदा कर व्यवस्था में सबसे ऊंचा स्लैब है.

नवंबर 2022 में ही केंद्र ने कहा था कि वह इस कदम के लिए तैयार है, लेकिन फैसला राज्यों पर छोड़ दिया है. तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने कहा था, "अगर राज्य कदम उठाते हैं, तो हम तैयार हैं. हम हमेशा से तैयार हैं."

हालांकि, सभी राज्य इस विचार से सहमत नहीं हैं, क्योंकि इसका मतलब है कि उन्हें बड़े पैमाने पर राजस्व का नुकसान होगा. दरअसल, दिसंबर 2021 में जीएसटी काउंसिल ने पेट्रोलियम उत्पादों को अपने दायरे में लाने की सिफारिश नहीं की थी.

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