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नई दिल्ली:
पंजाब की पृष्ठभूमि पर बन रही फिल्मों में अचानक एक तेज़ी आई है, खासकर ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 पर बन रही फिल्मों को लेकर भारत के सुरक्षा तंत्र में खलबली मची हुई है। इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट में लिखा है कि ये फ़िल्में पंजाब के नौजवानों की भावनाओं को भड़काने का काम कर सकती हैं। ये रिपोर्ट आईबी ने गृह मंत्रालय को सौंप दी है।
गृह मंत्रालय को भेजी रिपोर्ट में खुफिया ब्यूरो ने कहा कि ये फिल्में सिख उग्रवादियों को खत्म करने के लिए स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना द्वारा चलाए गए ‘आपरेशन ब्लू स्टार’, वर्ष 1984 दंगों और पंजाब में उग्रवाद चरम पर होने के समय पुलिस द्वारा कथित अत्याचार जैसे मुददों पर आधारित हैं। उसके बाद जब 1984 के दंगे हुए तो सिख समुदाय के 3000 से ज्यादा लोग मारे गए। उस दौरान पुलिस की बर्बरता के कई मामले सामने आए थे।
रिपोर्ट में कहा गया कि ये फिल्में तत्कालीन उग्रवादियों को सिख समुदाय के मसीहा के तौर पर दिखाती हैं। युवा सिख युवकों के मन पर इन फिल्मों के असर पर अभी गौर नहीं किया गया है।
आईबी की रिपोर्ट में लिखा है, 'इन फिल्मों में आतंकवादियों को हीरो की तरह दिखाया जा रहा है जबकि पुलिस को विलेन के।' एक सीनियर अधिकारी ने एनडीटीवी इंडिया को बताया, 'आतंकवादियों को सिख समुदाय का रक्षक बताया जा रहा है। इन फिल्मों का नौजवान पीढ़ी पर क्या असर होगा ये अभी नहीं कहा जा सकता।'
बीते तीन वर्ष में इस तरह की कम से कम छह फिल्में बनी हैं। एक फिल्म वर्ष 2013 में रिलीज हुई थी जबकि एक अन्य 'कौम दे हीरे' को सेंसर बोर्ड से अनुमति नहीं मिली और चार अन्य आगामी महीनों में रिलीज होने वाली हैं। एक मई 2015 को कनाडा के जसबीर सिंह बोपाराई द्वारा बनाई गई फिल्म ‘द ब्लड स्ट्रीट’ रिलीज हुई थी।
रिपोर्ट में लिखा है कि 'ब्लड स्ट्रीट' नाम की फिल्म 1 मई 2015 को रिलीज़ हुई। इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह पुलिस ने सिख नौजवानों के साथ 1984 के दंगों के बाद सख्ती की थी। 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके एक सुरक्षाकर्मी ने मार गिराया था। इस फिल्म में दिखाया गया कि उसके बाद सिख नौजवान लाचार थे, उनके पास हथियार उठाने के सिवाय कोई चारा नहीं था।
पर फिल्म की निर्माता जसबीर सिंह जोकि कनाडा की रहने वाली हैं, उनका कहना है कि यह फिल्म नौजवान पीढ़ी को पुरानी बातों से अवगत कराने के लिए बनायी गयी है। इस फिल्म में बलजीत सिंह दादूवाल ने भी काम किया है जोकि पंथिक सेवा लहर के प्रेसिडेंट हैं। इस फिल्म को सेंसर बोर्ड से कई कट्स के बाद मंजूरी मिली है। जो और फिल्मे रिलीज़ होने वाली है वह हैं 'जिन्दा और सुक्खा', 'पत्ता पत्ता सिंघन दा वैरी' और 'इन्साफ दी उडीक - दिल्ली 1984'।
'जिन्दा और सुक्खा' फिल्म हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सुक्खा की ज़िन्दगी पर बनी है। इन दोनों ने जनरल एएस वैदा जोकि आर्मी चीफ थे, उनका क़त्ल किया था। वैदा ऑपरेशन ब्लू स्टार के समय आर्मी चीफ थे। इस फिल्म के कुछ शॉट्स जिंदा और सुक्खा की डेथ एनिवर्सरी की दौरान अमृतसर में 9 अक्टूबर 2014 को लिए गए थे।
फिल्म 'पत्ता पत्ता सिंघन दा वैरी' को प्रोड्यूस करने वाले पंजाब के ही एक गायक राज ककरा हैं। ककरा ने ही 'कौम दे हीरे' बनाई थी। इस फिल्म में पुलिस को विलेन दिखाया गया है। जबकि 'इन्साफ दी उडीक - दिल्ली 1984' दिल्ली में हुए दंगों पर आधारित है कि किस तरह अभी तक कई परिवार इन्साफ की राह तक रहे हैं।
गृह मंत्रालय को भेजी रिपोर्ट में खुफिया ब्यूरो ने कहा कि ये फिल्में सिख उग्रवादियों को खत्म करने के लिए स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना द्वारा चलाए गए ‘आपरेशन ब्लू स्टार’, वर्ष 1984 दंगों और पंजाब में उग्रवाद चरम पर होने के समय पुलिस द्वारा कथित अत्याचार जैसे मुददों पर आधारित हैं। उसके बाद जब 1984 के दंगे हुए तो सिख समुदाय के 3000 से ज्यादा लोग मारे गए। उस दौरान पुलिस की बर्बरता के कई मामले सामने आए थे।
रिपोर्ट में कहा गया कि ये फिल्में तत्कालीन उग्रवादियों को सिख समुदाय के मसीहा के तौर पर दिखाती हैं। युवा सिख युवकों के मन पर इन फिल्मों के असर पर अभी गौर नहीं किया गया है।
आईबी की रिपोर्ट में लिखा है, 'इन फिल्मों में आतंकवादियों को हीरो की तरह दिखाया जा रहा है जबकि पुलिस को विलेन के।' एक सीनियर अधिकारी ने एनडीटीवी इंडिया को बताया, 'आतंकवादियों को सिख समुदाय का रक्षक बताया जा रहा है। इन फिल्मों का नौजवान पीढ़ी पर क्या असर होगा ये अभी नहीं कहा जा सकता।'
बीते तीन वर्ष में इस तरह की कम से कम छह फिल्में बनी हैं। एक फिल्म वर्ष 2013 में रिलीज हुई थी जबकि एक अन्य 'कौम दे हीरे' को सेंसर बोर्ड से अनुमति नहीं मिली और चार अन्य आगामी महीनों में रिलीज होने वाली हैं। एक मई 2015 को कनाडा के जसबीर सिंह बोपाराई द्वारा बनाई गई फिल्म ‘द ब्लड स्ट्रीट’ रिलीज हुई थी।
रिपोर्ट में लिखा है कि 'ब्लड स्ट्रीट' नाम की फिल्म 1 मई 2015 को रिलीज़ हुई। इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह पुलिस ने सिख नौजवानों के साथ 1984 के दंगों के बाद सख्ती की थी। 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके एक सुरक्षाकर्मी ने मार गिराया था। इस फिल्म में दिखाया गया कि उसके बाद सिख नौजवान लाचार थे, उनके पास हथियार उठाने के सिवाय कोई चारा नहीं था।
पर फिल्म की निर्माता जसबीर सिंह जोकि कनाडा की रहने वाली हैं, उनका कहना है कि यह फिल्म नौजवान पीढ़ी को पुरानी बातों से अवगत कराने के लिए बनायी गयी है। इस फिल्म में बलजीत सिंह दादूवाल ने भी काम किया है जोकि पंथिक सेवा लहर के प्रेसिडेंट हैं। इस फिल्म को सेंसर बोर्ड से कई कट्स के बाद मंजूरी मिली है। जो और फिल्मे रिलीज़ होने वाली है वह हैं 'जिन्दा और सुक्खा', 'पत्ता पत्ता सिंघन दा वैरी' और 'इन्साफ दी उडीक - दिल्ली 1984'।
'जिन्दा और सुक्खा' फिल्म हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सुक्खा की ज़िन्दगी पर बनी है। इन दोनों ने जनरल एएस वैदा जोकि आर्मी चीफ थे, उनका क़त्ल किया था। वैदा ऑपरेशन ब्लू स्टार के समय आर्मी चीफ थे। इस फिल्म के कुछ शॉट्स जिंदा और सुक्खा की डेथ एनिवर्सरी की दौरान अमृतसर में 9 अक्टूबर 2014 को लिए गए थे।
फिल्म 'पत्ता पत्ता सिंघन दा वैरी' को प्रोड्यूस करने वाले पंजाब के ही एक गायक राज ककरा हैं। ककरा ने ही 'कौम दे हीरे' बनाई थी। इस फिल्म में पुलिस को विलेन दिखाया गया है। जबकि 'इन्साफ दी उडीक - दिल्ली 1984' दिल्ली में हुए दंगों पर आधारित है कि किस तरह अभी तक कई परिवार इन्साफ की राह तक रहे हैं।
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