उत्सव के मौके पर गोदावरी में स्नान के बाद सीएम नायडू
हैदराबाद:
आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के तट पर हिन्दू उत्सवों में सबसे बड़ा उत्सव समझे जाने वाले कार्यक्रम को शुरू हुए अभी दो घंटे भी नहीं बीते थे कि 29 लोगों की भगदड़ में मौत हो गई और इनमें से 26 महिलाएं थीं।
हादसे के एक दिन बाद तमाम लोग दुर्घटना के लिए वीआईपी लोगों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, जिन्होंने महा पुशकरालू उत्सव की शुरुआत गोदावरी में स्नान के साथ की, ने पूजा के लिए करीब 90 मिनट वहीं पर बिताए। सुरक्षा मानकों के हिसाब से ऐसे मौकों पर वीआईपी लोगों को कोशिश यही करनी होती है कि जल्दी से जल्दी वह अपना काम कर वहां से चले जाएं। इतना ही नहीं, उन्हें इस बात का ख्याल रखना होता है कि वह अपने तय कार्यक्रम के अनुसार ही गतिविधि रखें ताकि सुरक्षा तंत्र अपना ध्यान लोगों के सुचारू संचालन पर रख सके।
वहीं, अब यह आरोप लग रहे हैं कि शासन की ओर से भी मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को जल्द जाने के लिए नहीं कहा गया। उधर, कमी गिनाने वाले यह भी बता रहे हैं कि सीएम नायडू और उनकी टीम ने उस घाट का प्रयोग नहीं किया जो वीआईपी लोगों के लिए बना है, अलबत्ते उन्होंने आम लोगों के लिए बने स्नान घाट का प्रयोग किया।
भीड़ नियंत्रण करने वालों का कहना है कि प्रत्येक 10 मिनट में वहां पर करीब 10000 लोगों की भीड़ आ रही थी और जब तक मुख्यमंत्री और उनके मंत्री मौके से जाते भीड़ अथाह हो चुकी थी और अनियंत्रित हो गई।
वहीं पुलिस की नाकामी यह रही कि वह लोगों को दर्जनों अन्य घाट की ओर मोड़ने में सफल नहीं हो पाई। यह घाट नजदीक के 15 किलोमीटर के इलाके में फैले हुए थे। इसके अलावा वहां पर बैरिकेड्स की व्यवस्था भी उचित नहीं थी कि लोगों के जत्थों को नियंत्रित किया जा सकता।
उत्सव के आरंभ से पहले सरकार का दावा था कि करीब 1600 करोड़ रुपये का खर्चा कर लोगों को उचित व्यवस्था दी जाएगी। बताया तो यह भी जा रहा है कि अधिकतर तैनात पुलिसकर्मियों को भीड़ नियंत्रण की न तो ट्रेनिंग दी गई थी न ही उनके पास इलाके का मैप था, न ही श्रद्धालुओं निपटने का अनुभव। आकस्मिक चिकित्सा व्यवस्था भी नहीं थी। जानकारी के अनुसार उत्सव के लिए 18000 पुलिस वालों की तैनाती की गई थी।
सुरक्षा एक्सपर्ट इस बात को ऐसे भी समझा रहे हैं। उनके अनुसार खुले में जब भी ऐसे कार्यक्रम होते हैं तो आदर्श स्थिति में तो एक स्क्वेयर मीटर क्षेत्र में एक व्यक्ति को होना चाहिए। लेकिन अगर भीड़ चल रही तो एक वर्ग मीटर में तीन लोग हो सकते हैं। वहीं राजामुंद्री में एक वर्ग मीटर क्षेत्र में 7 लोग थे जिसमें महिला, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे। जानकारों की राय में यह किसी भी हादसे को जैसे आमंत्रण था।
हादसे के एक दिन बाद तमाम लोग दुर्घटना के लिए वीआईपी लोगों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, जिन्होंने महा पुशकरालू उत्सव की शुरुआत गोदावरी में स्नान के साथ की, ने पूजा के लिए करीब 90 मिनट वहीं पर बिताए। सुरक्षा मानकों के हिसाब से ऐसे मौकों पर वीआईपी लोगों को कोशिश यही करनी होती है कि जल्दी से जल्दी वह अपना काम कर वहां से चले जाएं। इतना ही नहीं, उन्हें इस बात का ख्याल रखना होता है कि वह अपने तय कार्यक्रम के अनुसार ही गतिविधि रखें ताकि सुरक्षा तंत्र अपना ध्यान लोगों के सुचारू संचालन पर रख सके।
वहीं, अब यह आरोप लग रहे हैं कि शासन की ओर से भी मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को जल्द जाने के लिए नहीं कहा गया। उधर, कमी गिनाने वाले यह भी बता रहे हैं कि सीएम नायडू और उनकी टीम ने उस घाट का प्रयोग नहीं किया जो वीआईपी लोगों के लिए बना है, अलबत्ते उन्होंने आम लोगों के लिए बने स्नान घाट का प्रयोग किया।
भीड़ नियंत्रण करने वालों का कहना है कि प्रत्येक 10 मिनट में वहां पर करीब 10000 लोगों की भीड़ आ रही थी और जब तक मुख्यमंत्री और उनके मंत्री मौके से जाते भीड़ अथाह हो चुकी थी और अनियंत्रित हो गई।
वहीं पुलिस की नाकामी यह रही कि वह लोगों को दर्जनों अन्य घाट की ओर मोड़ने में सफल नहीं हो पाई। यह घाट नजदीक के 15 किलोमीटर के इलाके में फैले हुए थे। इसके अलावा वहां पर बैरिकेड्स की व्यवस्था भी उचित नहीं थी कि लोगों के जत्थों को नियंत्रित किया जा सकता।
उत्सव के आरंभ से पहले सरकार का दावा था कि करीब 1600 करोड़ रुपये का खर्चा कर लोगों को उचित व्यवस्था दी जाएगी। बताया तो यह भी जा रहा है कि अधिकतर तैनात पुलिसकर्मियों को भीड़ नियंत्रण की न तो ट्रेनिंग दी गई थी न ही उनके पास इलाके का मैप था, न ही श्रद्धालुओं निपटने का अनुभव। आकस्मिक चिकित्सा व्यवस्था भी नहीं थी। जानकारी के अनुसार उत्सव के लिए 18000 पुलिस वालों की तैनाती की गई थी।
सुरक्षा एक्सपर्ट इस बात को ऐसे भी समझा रहे हैं। उनके अनुसार खुले में जब भी ऐसे कार्यक्रम होते हैं तो आदर्श स्थिति में तो एक स्क्वेयर मीटर क्षेत्र में एक व्यक्ति को होना चाहिए। लेकिन अगर भीड़ चल रही तो एक वर्ग मीटर में तीन लोग हो सकते हैं। वहीं राजामुंद्री में एक वर्ग मीटर क्षेत्र में 7 लोग थे जिसमें महिला, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे। जानकारों की राय में यह किसी भी हादसे को जैसे आमंत्रण था।
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