पंजाब के किसानों के दिल्ली कूच (Delhi Kisaan Andolan) का 16 फरवरी को चौथा दिन था. किसान अभी शंभू बॉर्डर पर डटे हुए हैं. अबकी बार किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं. किसानों की मांग है कि सरकार MSP पर खरीद की गारंटी का कानून बनाए. इस पर राष्ट्रीय बहस होने लगी है कि क्या सरकार MSP पर कानूनी गारंटी देगी. गुरुवार 15 फरवरी को चंडीगढ़ में किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच तीसरे दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही. इसमें सरकार ने MSP पर कानून बनाने के लिए कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया, जिसमें किसान और सरकार दोनों के प्रतिनिधि होंगे. लेकिन किसान नेता MSP पर खरीद की गारंटी पर अड़े रहे. अब रविवार 18 फरवरी शाम 6 बजे चौथे दौर की बैठक होगी. तब तक दोनों पक्षों ने शांति बनाए रखने का आश्वासन दिया है.
इस बीच शुक्रवार को बुलाए गए किसानों के भारत बंद को पंजाब और हरियाणा में पूरा समर्थन मिला. दोनों राज्यों में रोडवेज कर्मचारी भी आंदोलन के समर्थन में आ गए. जिस वजह से सरकारी बसें नहीं चलीं. पंजाब में प्राइवेट बसें भी बंद रहीं. राजस्थान में हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में बंद का असर रहा. बंद का असर हिमाचल में भी दिखा. शुक्रवार दोपहर करीब 3 बजे किसानों ने बैरिकेडिंग की तरफ बढ़ने की कोशिश की. यह देख हरियाणा पुलिस ने उन पर आंसू गैस के गोले दागे. गोले फटने से कई किसानों को चोटें आई हैं.
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MSP के अलावा किसानों की क्या हैं प्रमुख मांगें?
- मनरेगा में हर साल 200 दिन का काम मिले. इसके लिए 700 रुपये की दिहाड़ी तय हो.
- डॉ. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से MSP की कीमत तय हो.
-किसान और खेतिहर मजदूरों का कर्जा माफ हो, उन्हें पेंशन दिया जाए.
- भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 दोबारा लागू किया जाए.
-लखीमपुर खीरी कांड के दोषियों को सजा मिले.
-मुक्त व्यापार समझौते पर रोक लगाई जाए.
- विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए.
-किसान आंदोलन में मृतक किसानों के परिवारों को मुआवजा मिले और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिले.
-नकली बीज, कीटनाशक, दवाइयां और खाद वाली कंपनियों पर सख्त कानून बनाया जाए.
-मिर्च, हल्दी और अन्य मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए.
-संविधान की सूची 5 को अलग कर आदिवासियों की जमीन की लूट बंद की जाए.
MSP को लेकर क्यों फंसा है पेंच?
किसानों और सरकार के बीच बातचीत का पेंच MSP को लेकर ही फंसा है. एक अनुमान के मुताबिक, अगर सरकार ने किसानों की मांग मान ली, तो नई दिल्ली की तिजोरी पर करीब 10 लाख करोड़ रुपये का भार आ जाएगा. लेकिन किसानों का तर्क दूसरा है. उनको लगता है कि उनकी खेती कारपोरेट के हाथों में जा सकती है. आम तौर पर MSP फसल उत्पादन की लागत पर 30 फीसदी ज्यादा रकम होती है, लेकिन किसानों की मांग इससे कहीं ज्यादा की है.
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2021 में केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए थे. इसके बाद सरकार ने MSP की व्यवस्था को ज्यादा कारगर और पारदर्शी बनाने के लिए 18 जुलाई 2022 को पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में एक 26 सदस्यीय हाई लेवल कमेटी बनाई थी. लेकिन उससे अब तक बात बनी नहीं, क्योंकि किसानों की MSP की परिभाषा सरकार से मेल नहीं खा रही है.
फसलों पर MSP की कहानी 57 साल पुरानी
MSP की कहानी 57 साल पुरानी है. 1965 में केंद्र सरकार ने कृषि लागत व मूल्य आयोग यानी CACP बनाया, जो MSP को तय करता है. पहली बार 1966-67 में सरकार ने किसानों से MSP पर फसलें खरीदी थी. अभी सरकार 23 फसलों को MSP पर खरीदती है. इसमें 7 अनाज, 6 तिलहन, 5 दलहन और 4 अन्य फसलें शामिल हैं.
सवाल ये है कि अगर सब कुछ तो दुरुस्त है, तो फिर किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं? दरअसल इस आंदोलन के पीछे पुरानी व्यवस्था को और मजबूती वाले भरोसे की मांग है. किसानों की मांग है कि सरकार जो MSP दे रही है, वो स्वामीनाथन आयोग के हिसाब से दे. सरकार MSP पर गारंटी दे यानी उसको कानून बनाए. इससे सभी फसलों को MSP के दायरे में लाया जा सकेगा. MSP से कम कीमत पर कोई व्यापारी अनाज खरीदे, तो उस पर आपराधिक मुकदमा चले.
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दरअसल, अब तक MSP पर कोई कानून नहीं है. सरकार चाहे तो MSP की रेट घटा या बढ़ा सकती है. इसीलिए किसान MSP की कानूनी गारंटी चाहते हैं, लेकिन इस गारंटी को लेकर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं.
स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर छिड़ी जंग
स्वामीनाथन आयोग 2004 में बनाया गया था. इसमें लागत पर 50% ज्यादा MSP की सिफारिश की गई है. हालांकि, इस रिपोर्ट को लेकर भी विवाद है. 1965 में अकाल और युद्ध के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की जिम्मेदारी कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को दी थी. स्वामीनाथन की कोशिशों से आई हरित क्रांति ने भारत का पेट भरना शुरू किया. बता दें कि सरकार ने एमएस स्वामीनाथन को इस साल भारत रत्न (मरणोपंरात) से नवाजा गया है.
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2004 में बना स्वामीनाथन आयोग
2004 में स्वामीनाथन की अध्यक्षता में मनमोहन सरकार ने राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया, जिसे स्वामीनाथन आयोग के नाम से भी जाना जाता है. उसी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने राष्ट्रीय कृषि नीति बनाई. इसमें किसानों की आमदनी बढ़ाने के वादे के साथ उच्च गुणवत्ता वाली बीज देने का भी प्रावधान था.
फसल की लागत को कैसे तय किया जाए?
अब सवाल है कि किसी फसल की लागत कैसे तय की जाए? इसके लिए एक फॉर्मूला है कि किसान का सीधा खर्च मसलन बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरी, खेत का किराया, सिंचाई वगैरह शामिल है. दूसरा फॉर्मूला, सीधे खर्च के साथ किसान के परिवार वालों का परिश्रम भी शामिल होता है. जाहिर है कि MSP का मुद्दा एक राष्ट्रीय बहस में तब्दील हो चुका है. इसके जल्द खत्म होने के आसार दिखते नहीं.
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