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This Article is From Jan 08, 2021

किसान नेताओं का आरोप- 'हमें खालिस्तानी कहकर आंदोलन को बदनाम कर रही है सरकार'

किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा ने कहा कि उनके पास 'अलग-अलग राज्यों के किसानों के कॉल आ रहे हैं कि सरकार हमें यह कहकर बदनाम कर रही है कि यह किसान नहीं, यह खालिस्तानी हैं.'

किसान नेताओं का आरोप- 'हमें खालिस्तानी कहकर आंदोलन को बदनाम कर रही है सरकार'
किसान आंदोलन को लेकर बहुत से सवाल खड़े किए गए हैं.
नई दिल्ली:

Farmers' Protests : पंजाब किसान संगठन के नेताओं ने सरकार पर किसानों के आंदोलन को बदनाम करने का आरोप लगाया है. कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 43 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन पर लगातार राजनीति और सोशल मीडिया पर बहस हो रही है, जिसे लेकर किसान नेताओं ने आपत्ति जताई है.

पंजाब के किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा ने NDTV से कहा कि 'सरकार हमें बदनाम कर रही है. हमारे पास अलग-अलग राज्यों से फोन आ रहे हैं कि सरकार हमें यह कहकर बदनाम कर रही है कि यह किसान नहीं, यह खालिस्तानी हैं. सच यह है कि हमारे इस संघर्ष में पंजाब के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, केरल, राजस्थान आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु सहित कई राज्यों के किसान संगठन जुड़ चुके हैं. हमारे संघर्ष में सभी धर्मों के लोग शामिल हैं. हमें पूर्व सैनिकों, वकीलों और जजों का भी समर्थन मिला है.'

सरकार के साथ बातचीत को लेकर उन्होंने कहा कि 'बातचीत के मसले पर सरकार दोहरे मापदंड अख्तियार कर रही है. एक तरफ हमें बातचीत के लिए बुलाया गया है लेकिन इससे पहले सरकार ने यह बयान क्यों दिया कि वह तीनों कानूनों में संशोधन के लिए तैयार है लेकिन नए कानून रद्द नहीं करेगी. यह सरकार के दोहरे मापदंड को दिखाता है.'

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वहीं, पंजाब के ऑल इंडिया किसान सभा यूनिट के अध्यक्ष बालकरण सिंह बरार ने NDTV से कहा, 'हमारे आंदोलन को कभी खालिस्तानी, कभी पाकिस्तानी या कभी चीनी कहकर डिरेल करने की कोशिश की जा रही है. सभी तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं.  हमारे नेताओं पर दबाव डाला गया है, लेकिन इसके बावजूद हमारा आंदोलन जारी है. हमारे 100 के करीब साथी शहीद हो चुके हैं. सरकार को मानवीयता दिखानी चाहिए.'

उन्होंने कहा कि 'मीडिया से हमें खबर मिली है कि सरकार यह कह रही है कि नए कानून लागू किए जाएं या नहीं यह फैसला राज्यों पर छोड़ा जाए यह भी एक विकल्प है. मेरी राय में कृषि राज्यों का विषय है, यह केंद्र का विषय नहीं है. सरकार को तत्काल संसद का सत्र बुलाकर तीनों कानूनों को रद्द करने की पहल शुरू करनी चाहिए.'

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