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This Article is From Apr 10, 2024

भारत में धर्म बदलने को हर कोई स्वतंत्र बशर्ते वैधानिक प्रक्रिया अपनाई गई हो : इलाहाबाद हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने साफ कहा कि केवल मौखिक या लिखित घोषणा से धर्म परिवर्तन नहीं हो जाता. इसके विश्वसनीय साक्ष्य होने चाहिए. परिवर्तन वैध हो, ताकि सरकारी पहचान पत्रों में दर्ज किया जा सके.

भारत में धर्म बदलने को हर कोई स्वतंत्र बशर्ते वैधानिक प्रक्रिया अपनाई गई हो : इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा है कि भारत में लोग अपना धर्म चुनने और बदलने के लिए स्वतंत्र हैं, हालांकि, ऐसे परिवर्तनों को कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए. जस्टिस प्रशांत कुमार की सिंगल बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि किसी व्यक्ति के धर्म परिवर्तन की इच्छा का विश्वसनीय प्रमाण होना चाहिए, उसके बाद ऐसी इच्छा को पूरा करने के लिए स्पष्ट प्रत्यक्ष कार्रवाई की आवश्यकता होती है.

हाईकोर्ट ने साफ कहा कि केवल मौखिक या लिखित घोषणा से धर्म परिवर्तन नहीं हो जाता. इसके विश्वसनीय साक्ष्य होने चाहिए. परिवर्तन वैध हो, ताकि सरकारी पहचान पत्रों में दर्ज किया जा सके. कोर्ट ने कहा है कि हलफनामा तैयार कर बहु प्रसारण वाले अखबार में विज्ञापन  दिया जाए, ताकि लोग आपत्ति कर सकें. धोखे या अवैध परिवर्तन नहीं होने चाहिए. अखबार में नाम, आयु पते का स्पष्ट उल्लेख हो, जिसकी जांच से संतुष्ट होने के बाद गजट में प्रकाशित किया जाए. अपर शासकीय अधिवक्ता ने इन बातों के सत्यापन के लिए कोर्ट से समय मांगा कि क्या धर्म परिवर्तन शादी के लिए किया गया है या वैधानिक प्रक्रिया अपनाकर अपनी मर्जी से किया गया है. याचिका की अगली सुनवाई 6 मई को होगी. यह आदेश जस्टिस प्रशांत कुमार ने सोनू उर्फ वारिस अली व दो अन्य की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है.

दरअसल, याची ने शिकायतकर्ता की नाबालिग बेटी से शादी की, जिससे एक बच्ची पैदा हुई है. दोनों साथ रह रहे हैं. याची का कहना है कि उसने अपनी मर्जी से प्रेम वश धर्म बदला है. कोर्ट ने कहा कि धर्म परिवर्तन कानूनी होना चाहिए, ताकि देश भर में सभी सरकारी पहचान पत्रों में नया धर्म दिखाई दे. कोर्ट ने याचिकाकर्ता वारिस अली, जो धर्म से मुस्लिम है और उसकी पत्नी अंजनी, जो धर्म से हिंदू है, द्वारा धारा 482 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करते समय दिया, जिसमें वारिस अली के खिलाफ धारा 363, 366, 366 ए, 504, 506, 376 आईपीसी और 7/8 और 3/4 पोस्को अधिनियम के तहत दर्ज 2016 की एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी.

कोर्ट के समक्ष यह प्रस्तुत किया गया कि लड़की (कथित पीड़िता) ने अपना धर्म (हिंदू से मुस्लिम में) परिवर्तित करने के बाद, स्वेच्छा से याचिकर्ता वारिस अली के साथ विवाह किया था और धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किए गए अपने बयान में उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसने एक लड़की को जन्म दिया है और बच्चे का पिता वारिस अली है. कोर्ट में ये तर्क दिया गया की आवेदक वारिस अली ने कोई कथित अपराध नहीं किया है.

इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि भारत में कोई भी व्यक्ति अपना धर्म बदल सकता है, लेकिन केवल मौखिक या लिखित घोषणा से धर्म परिवर्तन नहीं होता. कोर्ट ने राज्य की ओर से उपस्थित अधिवक्ता को यह सत्यापित करने का निर्देश दिया कि ऐसा धर्म परिवर्तन कानूनी बाधाओं को पार करने या किसी दबाव या लालच में आकर नहीं किया गया हो और यह भी पता लगाया जाए कि धर्म परिवर्तन केवल विवाह के लिए तो नहीं किया गया है. इस मामले की अगली सुनवाई अब 6 मई को होगी.
 

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