हाथरस कांड (Hathras Case) की जांच में ढिलाई और लगातार हो रही मीडिया (Media) कवरेज से इलाके में जातीय लामबंदी भी तेज हो गई है. पीड़ित लड़की के परिवार को समर्थन देने के लिए जहां पूरे देश के अलग-अलग जगहों पर लोग धरना प्रदर्शन कर रहे हैं वहीं आरोपी के पक्ष में भी लगातार पंचायतें हो रही हैं. हालांकि हाथरस प्रशासन अब वहां मीडिया को जाने दे रहा है. शनिवार को सुबह 10 बजे पीड़ित के परिवार से मिलने की इजाजत मिली और पुलिस के बेरीकेट खुलते ही मीडिया कर्मियों के बीच भगदड़ सी मच गई.
बीते दो दिन से हाथरस में सैकड़ों मीडिया कर्मी ड्रोन से लेकर जिमी जिप कैमरे तक से पीड़िता के गांव तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि SDM मीडिया से बात करते हुए SIT जांच का हवाला देकर मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी को सही ठहराते रहे. एसडीएम प्रेमप्रकाश मीणा ने कहा कि SIT की जांच में व्यवधान पड़ता है इसलिए हमने मीडिया को आने नहीं दिया.
लेकिन पीड़िता वाल्मीकी समाज से थी और आरोपी ठाकुर जाति से है, इसके चलते इलाके में जाति को लेकर खाई गहरी हो रही है और लगातार तनाव बढ़ रहा है. जिले में धारा 144 लगे होने के बावजूद दूसरे गांव में सवर्ण समाज के लोगों ने पंचायत करके सीबीआई जांच की मांग की है. जबकि वाल्मीकी समाज के तमाम लोग आसपास से पहुंचकर पीड़िता को समर्थन देने की कोशिश कर रहे हैं.
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गांव में वाल्मीकि समाज के लोगों ने कहा कि वे दिल्ली से आए हैं. यहां स्थानीय वाल्मीकि समाज के लोगों को आने नहीं दिया जा रहा है इसलिए हम लोग दिल्सी से आए हैं. सवर्ण समाज का कहना है कि जो लड़का घायल पीड़िता को पानी पिला रहा है उसको ही आरोपी बनाया गया है.
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फिलहाल पुलिस प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती पीड़ित परिवार की शंका को दूर करना और बढ़ रहे जातीय तनाव को कम करना है. बलात्कार और हत्या जैसे मामलों में पुलिस प्रशासन से उम्मीद होती है कि वो संवेदनशील और पारदर्शी तरीके से काम करेगी लेकिन हाथरस कांड में रात को शव जलाने से लेकर मीडिया को रोकने तक की जिस तरह की कोशिश हुई उसके चलते पीड़िता के परिवार की शंकाएं और बढ़ गई हैं.
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