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This Article is From Dec 06, 2018

महापरिनिर्वाण दिवस विशेष: जानें- कैसे संविधान निर्माता का सरनेम सकपाल से हो गया था अंबेडकर

डॉ. भीमराव आंबेडकर ने छह दिसंबर 1956 को अंतिम सांस ली थी. आज का दिन ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.

महापरिनिर्वाण दिवस विशेष: जानें- कैसे संविधान निर्माता का सरनेम सकपाल से हो गया था अंबेडकर
नई दिल्ली: भारतीय संविधान के निर्माता, समाज सुधारक डॉक्‍टर भीमराव अंबेडकर की आज पुण्यतिथि है. बाबा साहेब अंबेडकर ने छह दिसंबर 1956 को अंतिम सांस ली थी. आज का दिन ‘महापरिनिर्वाण दिवस' ( Mahaparinirvan Diwas 2018) के रूप में मनाया जाता है. बाबा साहेब के नाम से मशहूर डॉक्‍टर अंबेडकर ने छुआ-छूत और जातिवाद के खात्‍मे के लिए खूब आंदोलन किए. उन्‍होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, दलितों और समाज के पिछड़े वर्गों के उत्‍थान के लिए न्‍योछावर कर दिया. अंबेडकर ने खुद भी उस छुआछूत, भेदभाव और जातिवाद का सामना किया है, जिसने भारतीय समाज को खोखला बना दिया था. अपने जमाने के वो ऐसे राजनेता थे जो सामाजिक कार्यों में बेहद व्‍यस्त रहते थे लेकिन इसके बावजद वह लिखने-पढ़ने का वक्‍त निकाल ही लेते थे. अंबेडकर की पुण्‍यतिथि के मौके पर हम आपको बता रहे हैं कि उनका सरनेम कैसे सकपाल से अंडेबकर पड़ गया था.

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था. उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था. वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे. सवाल उठता है कि जब उनके पिता का सरनेम सकपाल था तो उनका सरनेम आंबेडकर कैसे?

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आपको बता दें, भीमराव आंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और निचली जाति मानते थे. अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक दुराव का सामना करना पड़ा. प्रतिभाशाली होने के बावजूद स्कूल में उनको अस्पृश्यता के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा रहा था. उनके पिता ने स्कूल में उनका उपनाम ‘सकपाल' के बजाय ‘अंबडवेकर' लिखवाया. वे कोंकण के अंबाडवे गांव के मूल निवासी थे और उस क्षेत्र में उपनाम गांव के नाम पर रखने का प्रचलन रहा है. इस तरह भीमराव आंबेडकर का नाम अंबाडवे गांव से अंबाडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज किया गया. एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर को बाबासाहब से विशेष स्नेह था. इस स्नेह के चलते ही उन्होंने उनके नाम से ‘अंबाडवेकर' हटाकर अपना उपनाम ‘अंबेडकर' कर दिया.

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डायबिटीज के मरीज थे अंबेडकर
डॉक्‍टर भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया. इस समारोह में उन्‍होंने श्रीलंका के महान बौद्ध भिक्षु महत्थवीर चंद्रमणी से पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न और पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया. अंबेडकर ने 1956 में अपनी आखिरी किताब बौद्ध धर्म पर लिखी जिसका नाम था 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्‍म'. यह किताब उनकी मृत्‍यु के बाद 1957 में प्रकाशित हुई. 

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डॉक्‍टर अंबेडकर को डायबिटीज था. अपनी आखिरी किताब 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्‍म' को पूरा करने के तीन दिन बाद 6 दिसंबर 1956 को दिल्‍ली में उनका निधन हो गया. उनका अंतिम संस्‍कार मुंबई में बौद्ध रीति-रिवाज के साथ हुआ. उनके अंतिम संस्‍कार के समय उन्‍हें साक्षी मानकर करीब 10 लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी. 

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