उम्रकैद की सजा काट रहे स्वामी श्रद्धानंद पर बनी ओटीटी (OTT) प्लेटफार्म अमेजन प्राइम की वेब सीरिज 'डान्सिंग ऑन द ग्रेव' पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार हो गया है. सुप्रीम कोर्ट में पत्नी की हत्या के दोषी श्रद्धानंद की ओर से दाखिल याचिका में वेब सीरीज पर रोक लगाने की मांग की गई है. अर्जी में आरोप लगाया गया है कि जब 30 साल से भी अधिक समय से जेल मे बंद स्वामी श्रद्धानंद के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबित है, तो ऐसे में वेब सीरीज कैसे रिलीज की जा सकती है?
सुप्रीम कोर्ट में लगाई है ये गुहार...
श्रद्धानंद की ओर से दाखिल याचिका में आरोप लगाए गए हैं कि वेब सीरिज में श्रद्धानंद के खिलाफ पूर्वाग्रह के तहत तथ्य दिखाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने जस्टिस जोसफ और जस्टिस बीवी रत्ना की पीठ द्वारा बुधवार को इस पर सुनवाई का भरोसा दिया. दरअसल, नवंबर 2022 राजीव गांधी की हत्या की दोषी नलिनी श्रीहरन की रिहाई के बाद कथित बाबा श्रद्धानंद ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि उन्हें भी रिहा किया जाए.
29 सालों से जेल में बंद
श्रद्धानंद अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि जिस तरह राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा किया गया है, मुझे भी जेल से रिहा किया जाए. श्रद्धानंद ने समानता के अधिकार के उल्लंघन का हवाला देते हुए कहा कि वह बिना किसी परोल के लगभग 29 सालों से जेल में बंद हैं. उन पर अपनी पत्नी शकीरा नमाजी की हत्या का आरोप है.
पत्नी को नशीला पदार्थ देकर जिंदा दफना
दरअसल, श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा ने अपनी पत्नी नमाजी को नशीला पदार्थ देकर उसे जिंदा दफना दिया था. यह घटना 28 अप्रैल 1991 की है. श्रद्धानंद ने बेंगलुरु स्थित अपने बंगले के कंपाउंड में ही पत्नी को जिंदा दफना दिया था. शकीरा मैसूर के पूर्व दीवान सर मिर्जा इस्माइल की पोती थीं, जिन्होंने पूर्व राजनयिक अकबर खलीली को तलाक देने के बाद 1986 में श्रद्धानंद से शादी की थी.
यह याचिका श्रद्धानंद के वकील वरुण ठाकुर ने की, जिसमें कहा गया कि उनके मुवक्किल श्रद्धानंद की उम्र 80 साल से अधिक है और वह मार्च 1994 से जेल में हैं. असल में याचिकाकर्ता से पुलिस ने पूछताछ की और उनका बयान लिया, जिसके आधार पर निचली अदालत ने उन्हें मृत्युदंड की सजा दी. बाद में हाईकोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा को बदलकर उम्रकैद में तब्दील कर दिया. लेकिन संबंधित अथॉरिटी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत तरीके से व्याख्या की और उनके मुवक्किल को एक भी दिन का परोल नहीं दिया. याचिका में कहा गया कि हाल ही में राजीव गांधी हत्या के मामले में दोषियों को रिहा किया गया है. ये दोषी अपनी सजा के दौरान परोल और अन्य सुविधाओं का भी लाभ लेते रहे हैं, जबकि उन्हें इससे महरूम रखा गया. इसलिए उनके मुवक्किल को भी रिहा किया जाए.
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