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विधायी संस्थाओं की गरिमा में कमी चिंता का विषय: लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला

ओम बिरला ने कहा कि हाल के वर्षों में विधायी निकायों की गरिमा में कमी देखी गई है, जो एक गंभीर मुद्दा है. उन्होंने जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे विधायी निकायों में स्वतंत्र, निष्पक्ष और गरिमापूर्ण चर्चा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को समझें.

विधायी संस्थाओं की गरिमा में कमी चिंता का विषय: लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला
  • ओम बिरला ने विधायी संस्थाओं की गरिमा में कमी को सभी जनप्रतिनिधियों के लिए चिंताजनक बताया.
  • उन्होंने विधायकों से सदन में स्वतंत्र, निष्पक्ष और गरिमापूर्ण चर्चा सुनिश्चित करने का आग्रह किया.
  • पीठासीन अधिकारियों की जिम्मेदारी सदन की कार्यवाही को स्वतंत्र, निष्पक्ष बनाए रखने की है.
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नई दिल्ली:

लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज कहा कि विधायी संस्थाओं की गरिमा में कमी सभी जनप्रतिनिधियों के लिए चिंताजनक है. उन्होंने जोर देकर कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सदन की गरिमा को कम करने की छूट नहीं समझा जाना चाहिए. यह टिप्पणी उन्होंने दिल्ली विधान सभा में आयोजित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए की. यह सम्मेलन विट्ठलभाई पटेल के केंद्रीय विधान सभा के प्रथम भारतीय अध्यक्ष निर्वाचित होने की शताब्दी के अवसर पर आयोजित किया गया था.

विधायी गरिमा और स्वतंत्र चर्चा

ओम बिरला ने कहा कि हाल के वर्षों में विधायी निकायों की गरिमा में कमी देखी गई है, जो एक गंभीर मुद्दा है. उन्होंने जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे विधायी निकायों में स्वतंत्र, निष्पक्ष और गरिमापूर्ण चर्चा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को समझें. उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से अपील की कि वे एकजुट होकर यह सुनिश्चित करें कि विधायी निकायों में विचारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति बनी रहे और सहमति व असहमति के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत किया जाए.

जनप्रतिनिधियों का आचरण और जिम्मेदारी
लोक सभा अध्यक्ष ने विधायकों से उचित आचार संहिता का पालन करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि जनता सदन के भीतर और बाहर जनप्रतिनिधियों के आचरण और कार्यों पर नजर रखती है. उनकी भाषा, विचार और अभिव्यक्ति लोकतंत्र की ताकत हैं, और इन्हें सम्मानजनक व गरिमापूर्ण रखना आवश्यक है. बिरला ने जोर दिया कि विधायी निकायों के सदस्यों को अपने निकायों के नियमों, परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सदन को हमेशा जनता की आवाज का प्रतिनिधित्व करना चाहिए, और वहां बनाए गए कानून जनहित में होने चाहिए.

पीठासीन अधिकारियों की भूमिका
बिरला ने पीठासीन अधिकारियों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पर प्रकाश डाला और विश्वास जताया कि वर्तमान और भविष्य के पीठासीन अधिकारी सदन की कार्यवाही को स्वतंत्र, निष्पक्ष और गरिमापूर्ण बनाए रखेंगे. उन्होंने कहा कि पीठासीन अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सदन की गरिमा और लोकतांत्रिक मूल्य बरकरार रहें.

दिल्ली विधान सभा का ऐतिहासिक महत्व
दिल्ली विधान सभा भवन के ऐतिहासिक स्वरूप का उल्लेख करते हुए बिरला ने कहा कि यह सदन उन नेताओं के विचारों और अभिव्यक्ति का साक्षी रहा है, जिन्होंने विधायी माध्यमों से स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया. उन्होंने विट्ठलभाई पटेल के व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन को प्रेरणादायी बताया, विशेष रूप से उनकी अध्यक्ष के रूप में भूमिका और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को.

विट्ठलभाई पटेल की विरासत
बिरला ने कहा कि विट्ठलभाई पटेल ने अपने कार्यकाल में एक स्वतंत्र सचिवालय की स्थापना की थी, ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जनता तक सही ढंग से पहुंच सके. यह प्रणाली आज भी प्रेरणा का स्रोत है. उनकी स्थापित परंपराओं को बाद में भारत के संविधान में शामिल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप राज्य सभा और लोक सभा के लिए स्वतंत्र सचिवालय स्थापित हुए. संविधान निर्माताओं ने संसद और विधान सभाओं के सदस्यों को सरकार की आलोचना करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी, लेकिन इसके साथ ही उचित आचरण की भी अपेक्षा की.

लोकतंत्र की मजबूती के लिए संवाद
बिरला ने सभी राजनीतिक दलों से विधायी निकायों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व पर विचार करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि संवाद, चर्चा, सहमति और असहमति भारतीय लोकतंत्र की ताकत हैं. विविधतापूर्ण सहमति और असहमति जितनी अधिक होगी, लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा. उन्होंने आशा व्यक्त की कि विट्ठलभाई पटेल की शताब्दी के अवसर पर उनकी विरासत न केवल राष्ट्र को प्रेरित करेगी, बल्कि उसे एक नई दिशा भी प्रदान करेगी. बिरला ने सभी पीठासीन अधिकारियों से पटेल के पदचिन्हों पर चलने का आह्वान किया.

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