
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को आप सरकार से दो टूक कहा कि वह बसों के बेड़े में बढ़ोतरी के उच्चतम न्यायालय के 19 वर्ष पुराने निर्देश की अवमानना के लिए उसके अधिकारियों को जेल भेज सकता है लेकिन शहर को अधिकारियों को जेल की बजाय और बसों की जरूरत है.
अदालत ने पिछले 10 वर्षों में इस आधार पर दिव्यांग अनुकूल लोफ्लोर बसें नहीं खरीदने के लिए दिल्ली सरकार की खिंचाई की कि उनकी कीमत अव्यावहारिक हैं.
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कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की एक पीठ ने दिल्ली सरकार के इस आकलन का आधार पूछा कि टाटा मोटर्स और अशोक लीलैंड द्वारा बसों की आपूर्ति के लिए उल्लेखित मूल्य ‘अव्यावहारिक, अधिक और अनुचित हैं.’ अदालत ने कहा, ‘यदि आप यह कहने के लिए कि कीमत अव्यावहारिक हैं, लोफ्लोर बसों की तुलना मानक फ्लोर बसों से कर रहे हैं तो यह वैसे ही जैसे सेब की तुलना संतरे से करें। व्यावहारिक और यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनायें.’
अदालत विकलांगता से पीड़ित एक व्यक्ति की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवायी कर रही है जिसने 300 करोड़ रुपये की कीमत पर 2000 मानक फ्लोर बसें खरीदने के दिल्ली सरकार के कदम को चुनौती दी है.
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