दिल्ली की एक अदालत ने 2018 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारियों के खिलाफ उसी के द्वारा दर्ज रिश्वत के एक मामले में तीन व्यक्तियों और अन्य को सतीश बाबू सना नाम के व्यक्ति की मदद करने के लिए पैसे लेने के आरोप से मुक्त कर दिया है. जांच एजेंसी भ्रष्टाचार के एक अन्य मामले में हैदराबाद के कारोबारी सना के खिलाफ जांच कर रही है. वह 2017 में जांच एजेंसी द्वारा दर्ज एक अन्य मामले में मांस निर्यातक मोइन कुरैशी के साथ अपने कथित संबंधों को लेकर सीबीआई जांच का सामना कर रहा है.
बाद में सना ने आरोप लगाया था कि सीबीआई के कुछ अधिकारियों ने मामले में उसकी मदद के लिए रिश्वत मांगी थी. सीबीआई ने सना के बयान के आधार पर रिश्वत मामले के सिलसिले में अक्टूबर 2018 में दर्ज एक प्राथमिकी में, शुरूआत में अपने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना और पुलिस उपाधीक्षक देवेंदर कुमार को भी नामजद किया था. अस्थाना, बाद में दिल्ली पुलिस के आयुक्त नियुक्त किये गये. हालांकि, जांच एजेंसी ने कार्रवाई योग्य साक्ष्य के अभाव में इन अधिकारियों के खिलाफ मामला आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया और उन्हें आरोपपत्र के कॉलम नंबर 12 में रखा.
जिन लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं होते हैं उनके नाम आरोपपत्र के कॉलम नंबर 12 में रखे जाते हैं. अदालत ने मार्च 2020 में कहा था कि मामले में अस्थाना और कुमार, सीबीआई अधिकारियों को तलब करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं क्योंकि एजेंसी ने उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं पाये हैं. विशेष न्यायाधीश विनय कुमार गुप्ता ने हाल में तीन अन्य आरोपियों--कथित बिचौलिया मनोज प्रसाद, उसके भाई सोमेश्वर श्रीवास्तव और ससुर सुनिल मित्तल-- को आरोप तय करने के स्तर पर रिश्वत मामले में आरोप मुक्त कर दिया था.
अदालत ने 13 मार्च को जारी आदेश में तीनों व्यक्तियों को आरोप मुक्त करते हुए कहा था कि अभियोजन उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला बनाने में नाकाम रहा है. न्यायाधीश ने कहा कि जांच में यह खुलासा नहीं हुआ कि सीबीआई अधिकारियों द्वारा शिकायतकर्ता सतीश बाबू सना को कोई अनुचित लाभ पहुंचाया गया था.
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