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This Article is From Jan 21, 2011

स्टेंस मामला : दारा को नहीं होगी फांसी

नई दिल्ली: केन्द्रीय जांच ब्यूरो को तगड़ा झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस तथा उनके दो नाबालिग बेटों को जिंदा जलाने के दोषी दारा सिंह को मौत की सजा देने की अपील को खारिज कर दिया, लेकिन साथ ही उड़ीसा उच्च न्यायालय द्वारा सुनाई गयी उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा। न्यायाधीश पी सदाशिवम तथा न्यायाधीश बीएस चौहान की पीठ ने मौत की सजा दिए जाने की सीबीआई की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मौत की सजा केवल 'दुर्लभतम मामलों' में ही दी जाती है और वह भी तथ्यों तथा हर केस की स्थिति के अनुसार। शीर्ष अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में दोषियों ने जिस अपराध को अंजाम दिया है, वह बेहद निंदनीय है लेकिन दुर्लभतम की श्रेणी में नहीं आता, जिसके लिए मौत की सजा दी जाए। दारा सिंह और महेन्द्र हेमब्रोम को स्टेंस तथा उनके दोनों बेटों को जिंदा जलाने का दोषी पाया गया था। स्टेंस तथा उनके दोनों बेटों (दस वर्षीय फिलिप तथा छह वर्षीय टिमोथी) को उड़ीसा के क्योंझार जिले के मनोहरपुर गांव में 22 जनवरी 1999 को उस समय जिंदा जला दिया था, जब वे रात में एक गिरिजाघर के बाहर वैन में सो रहे थे।पीठ ने पिछले साल 15 दिसंबर को सीबीआई, अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल विवेक तंखा तथा दोषियों के वकीलों के तर्को को विस्तार से सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। वकील शिव शंकर मिश्रा के अतिरिक्त वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी तथा रत्नाकर दास 12 दोषियों की ओर से अदालत में पेश हुए।सीबीआई का पक्ष रखते हुए तंखा ने पीठ को बताया कि दारा सिंह मौत की सजा पाने का हकदार है क्योंकि हत्याएं पैशाचिक और कायराना तरीके से की गईं और इसके लिए ऐसी सजा दी जानी चाहिए जो एक उदाहरण पेश करे। दारा ने खुद को दोषी ठहराए जाने तथा मौत की सजा दिए जाने को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी।शीर्ष अदालत ने अक्तूबर 2005 में इन याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार किया था। 19 मई 2005 को उड़ीसा उच्च न्यायालय ने दारा सिंह को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। इस मामले में दारा के साथ एक दूसरे व्यक्ति महेन्द्र हेमब्रोम को भी दोषी ठहराया गया था।हालांकि उच्च न्यायालय ने इस मामले में 11 अन्य लोगों को बरी कर दिया, जिन्हें निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी। निचली अदालत ने सितंबर 2003 में खुर्दा में सभी 13 आरोपियों को इस मामले में दोषी ठहराते हुए दारा सिंह को मौत की सजा जबकि अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी।

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