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This Article is From Jul 18, 2014

चार साल की 'चिड़िया' का दर्द देख सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस हुए दुखी

नई दिल्ली:

उसकी उम्र महज चार साल है, लेकिन दर्द इतना बड़ा की देश की सबसे बड़ी अदालत के सबसे ऊंचे पद पर बैठा व्यक्ति का दिल भी पसीज गया। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इस बच्ची की पीड़ा से इस कदर आहत हुए कि उन्होंने सोमवार को इस बच्ची को 2400 किलोमीटर दूर से दिल्ली में अपने चैंबर में तलब किया है। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर भी कहा कि इसने कोर्ट की चेतना को झकझोर कर रख दिया है।

दरअसल इस बच्ची के मां-बाप अलग अलग रह रहे हैं और बच्ची की कस्टडी को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि हफ्ते में चार दिन बच्ची अपनी मां के पास रहेगी और तीन दिन पिता के पास। हाईकोर्ट के इस फैसले से आहत सुप्रीम कोर्ट को यहां तक कहना पड़ा कि आपसी लड़ाई में मासूम बच्ची को बैडमिंटन की चिड़िया (शटलकॉक) बना दिया गया है।

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा की अगुवाई वाली बैंच के सामने ये मामला आया। तमिलनाडु के कोयम्बटूर में रहने वाले एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी चार साल की बेटी की कस्टडी के लिए याचिका दायर की है। इस व्यक्ति का कहना है कि उसकी पत्नी और वह अलग रह रहे हैं। उसकी पत्नी के पास कमाई का जरिया नहीं है और ना ही वह इस बच्ची की अच्छी तरह देखभाल कर सकती है।

इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने आदेश दिए थे कि बच्ची हफते में चार दिन अपनी मां के पास और तीन दिन पिता के पास रहेगी। इसी पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायधीश ने इन आदेशों पर नाराजगी जाहिर की और कहा कि यह आदेश बिल्कुल गलत है और इसे बदला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के इन आदेशों ने सुप्रीम कोर्ट की चेतना को झकझोर दिया है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बच्ची के पिता को कहा कि मामला चार साल की बच्ची का है और बच्ची को अपनी मां के पास ही रहना चाहिए। कोर्ट में दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर आरोप लगाए और इसी पर कोर्ट ने कहा कि दोनों की लड़ाई में इस बच्ची को कितनी पीड़ा हो रही है यह कोई नहीं जानता। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के पास ये भी विकल्प है कि वह बच्ची को सुप्रीम कोर्ट बुलाए और इसके बाद या तो उसे किसी चाइल्ड केयर होम में भेज दे या फिर किसी हास्टल में।

कोर्ट ने कहा कि किसी भी सूरत में बच्ची के भविष्य और अधिकारों को सुरक्षित किया जाना चाहिए। हालांकि पिता ने दलील दी कि उनकी 12 साल की बड़ी बेटी एक हॉस्टल में रहती है और वह उसका सारा खर्च देते हैं। कोर्ट ने कहा कि अच्छे पिता की तरह छोटी बेटी को भी खर्च देते रहना चाहिए। फिलहाल मुख्य न्यायधीश ने सोमवार को बच्ची को अपने चेंबर में लाने के आदेश जारी किए हैं।

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