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This Article is From Feb 19, 2017

अजमेर में एयरपोर्ट के विरोध में प्रदर्शन, गले में तख्तियां लटकाए गायें भी उतरी मैदान में

अजमेर में एयरपोर्ट के विरोध में प्रदर्शन, गले में तख्तियां लटकाए गायें भी उतरी मैदान में
अजमेर: राजस्थान के अजमेर से करीब 25 किलोमीटर दूर किशनगढ़ के पास ढांणी राठौरान गांव में रविवार को अनोखा विरोध प्रदर्शन हुआ. यहां ज़मीन अधिग्रहण का विरोध करने के लिये लोग सैकड़ों गायें लेकर इकट्ठा हो गये. इन लोगों का कहना है कि गांव की ज़मीन ली गई तो इन्हें विस्थापित होना पड़ेगा और सभी गायें भी मर जाएंगी. दूध बेचना जीविका कमाने के लिये इन लोगों का प्रमुख ज़रिया है औऱ इन लोगों ने गायों को विरोध के लिये एक प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया और बीजेपी सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की. गायों के गले में लटकी तख्तियों में प्रधानमंत्री से अपील की गई थी, “विकास के नाम पर हमें मत मारो पीएम साहब, न्याय करो.”

खेती के साथ पशुपालन इन गांव वालों के लिये रोजी-रोटी कमाने का अहम ज़रिया है. ढांणी राठौरान के बाशिंदे कहते हैं कि उनका गांव 500 साल पुराना है और गांव के लोगों के विरोध के बावजूद उनकी ज़मीन एक हवाई अड्डा बनाने के लिये ली जा रही है. करीब 500 गांव वाले ज़मीन अधिग्रहण का विरोध करने के लिये अपनी गायों के साथ यहां इकट्ठा हुये. विरोध कर रहे लोगों ने हाथों में जो तख्तियां ली हुई थीं उनमें विस्थापन और अधिग्रहण के खिलाफ अपील करते हुये कई संदेश लिखे थे. एक संदेश में कहा गया, “गोरक्षा की बात करने वाली भाजपा सरकार, गायों का विस्थापन क्यों?” एक दूसरे संदेश में लिखा था – “मुआवज़ा नहीं हमें हमारा गांव चाहिये.”

आदिवासी कार्यकर्ता कैलाश मीणा ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, “यहां से 125 किलोमीटर की दूरी पर जयपुर हवाई अड्डा है और सरकार कुछ लोगों की सुविधा के लिये एक और हवाई अड्डा बनाना चाहती है. आखिर क्यों? क्यों कुछ लोगों की सुविधा के लिये पूरे एक गांव को उजाड़ा जा रहा है.”
 
protest against airport in ajmer 650

मुआवज़े को लेकर पूछे गये सवाल पर मीणा का कहना है कि, “गांव में किसी को मुआवज़ा दिये जाने की बात गलत है. गांव के लोग ये जगह नहीं छोड़ना चाहते. सरकार ने 2011 में पहली बार इस एयरपोर्ट प्रोजेक्ट को लेकर जो विज्ञापन निकाला वह एक सिन्धी अखबार में था जो भाषा यहां के लोग नहीं समझते. इससे सरकार की चालाकी का पता चलता है.”

इस विरोध प्रदर्शन में गांव वालों के साथ मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे भी मौजूद थे.

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