कोरोना-19 (Coronavirus) के कारण महाराष्ट्र (Maharashtra) में लाखों लोगों की मौत हुई और उनके परिवार वाले अब तक परेशान हैं. सबसे ज़्यादा परेशानी महिलाओं की बढ़ी है जो अपने पति के गुजरने के बाद बमुश्किल घर चला पा रही हैं. राज्य सरकार की ओर से अबतक लोगों को मुआवजा नहीं दिए जाने के कारण हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार भी लगाई है. तीन महीने पहले तक मुंबई से सटे डोम्बिवली इलाके में रहने वाली कविता को गाड़ी चलाना नहीं आता था, लेकिन पति की मौत के बाद अपने दोनों बच्चों को संभालने के लिए कविता ने ऑटो चलाना सीखा और अब इसी के ज़रिए वो अपना घर चला रही हैं. पति के इलाज के लिए साढ़े चार लाख का कर्ज इन्होंने लिया था जिसे अबतक चुका नहीं पाई हैं. यह किराये के घर पर रहती हैं और बच्चों के स्कूल की 70 हज़ार रुपये फीस बकाया है.
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कविता कांगने कहती हैं, ''मेरे पति के जाने के बाद एक महीना लगा मुझे ऑटो चलाने के लिए. इसी के ज़रिए अब घर चला रही हूं. सरकार कुछ भी मदद नहीं कर रही है. बच्चे इतने छोटे हैं, स्कूल वाले बोल रहे हैं हम फीस माफ नहीं करेंगे. हम घर कैसे चलाएंगे.' कक्षा 12 की पढ़ाई के बाद ही भाग्यश्री ने पढाई छोड़ दी थी. लेकिन इसी साल पति के गुजरने के बाद इन्होंने एक बार फिर से पढ़ना शुरू किया ताकि अच्छी नौकरी कर अपने बच्चों को संभाल सकें. पति की मौत के बाद से भाग्यश्री की परेशानियां बढ़ी हैं. यह बताती हैं कि किस तरह से दूसरी लहर के समय पति के इलाज के लिए एक एक इंजेक्शन ब्लैक में 40 हज़ार में खरीदने के बावजूद वह अपने पति को नहीं बचा पाईं.
भाग्यश्री पवाली कहती हैं, ''रेमडेसीवीर (Remdesivir) इंजेक्शन उस समय लगे थे. हमने एक एक इंजेक्शन 40 हज़ार रुपए में खरीदा था. जो पहले तीन इंजेक्शन मिले उसे 40 हज़ार में खरीदा था. मुझे अभी पढ़ना है, मेरे बच्चे के लिए कुछ करना है. मैं जब पढूंगी तभी बच्चे के लिए कुछ कर सकूंगी. जब मैं कुछ नौकरी नहीं करूंगी तो मेरे बच्चे कैसे पढ़ेंगे.'' और अन्य महिला भाग्यश्री सेगते के पति ऑटो चलाते थे और इनके 4 बच्चे हैं. लेकिन कोरोना से हुई उनकी मौत के बाद घर में कमाने वाला कोई नहीं है. भाग्यश्री अब अपने इलाके में ऑटो चलाना सीख रही हैं, ताकि घर चला सकें.
भाग्यश्री सेगते कहती हैं, ''हमारे पास जो पैसे थे, वो इलाज में चले गए. कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. लाइट बिल, पानी का बिल, बच्चों की फीस यह सब भरना होता है. स्कूल कुछ माफ नहीं करता. हम यह सब कैसे करें, यही सबसे बड़ा सवाल है.
6 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इसी से जुड़े एक मामले में महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी. अदालत ने मृतकों के परिजनों को 50 हज़ार रुपए देने का आदेश दिया है. महाराष्ट्र में एक लाख से ज़्यादा मौतें हुईं और 37 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मुआवज़े के लिए आवेदन दिया. लेकिन राज्य सरकार की ओर से मुआवज़ा नहीं दिए जाने के कारण अदालत ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की. राज्य सरकार ने जल्द ही मुआवज़ा देने का आश्वासन अदालत में दिया.
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महाराष्ट्र में कोरोना के कारण विधवा हुई महिलाओं की संख्या 70 हज़ार से ज्यादा है और इनमें 50 साल से कम उम्र की महिलाओं की संख्या 20 हज़ार से ज़्यादा है. इन्हें रोज़गार की ज़रूरत है जो सरकार ने दी नहीं. कई लोगों के परिवारवालों ने इन्हें अपने प्रॉपर्टी से निकाल दिया है. ग्रामीण इलाकों की महिलाएं भी बड़े पैमाने में विधवा हुई हैं.
कोरोना काल में इस तरह के अनगिनत कहानियां मौजूद हैं, जिन्हें सरकार ने अकेले ही परेशानियों का सामना करने के लिए छोड़ दिया है. अब अदालत की ओर से मिली फटकार के बाद सरकार मदद करने की बात तो कर रही है लेकिन इसकी प्रक्रिया पूरी कर इन महिलाओं तक मदद पहुंचने में अब भी कुछ वक्त लगेगा, और तब तक इनकी परेशानी और बढ़ जाएगी.
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