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This Article is From Mar 09, 2015

...तो इसलिए हुई अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई

नई दिल्ली:

कट्टरपंथी हुर्रियत अलगावादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई इसीलिए हुई है, क्योंकि उसका डिटेंशन ऑर्डर जम्मू-कश्मीर सरकार ने साइन नहीं किया था। उधर, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर संसद में स्थगन प्रस्ताव दिया है। वह इस मुद्दे को संसद में जोर-शोर से उठाना चाहती है।

मसर्रत आलम को पिछले 53 महीनों से उमर अब्दुल्ला सरकार ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत डिटेन किया हुआ था, लेकिन अब जब उस डिटेंशन ऑर्डर की मियाद खत्म हो रही थी, तब राज्य के गृह मंत्रालय ने उसे कन्फर्म नहीं किया।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनडीटीवी को बताया कि इस एक्ट के तहत एक बोर्ड होता है, जो फैसला लेता है कि डिटेंशन ऑर्डर की मियाद आगे बढ़ाई जानी चाहिए या नहीं। इस मामले में नहीं हुआ, क्योंकि गृहमंत्री खुद मुफ्ती साहब हैं।

हैरानी की बात है कि मुफ़्ती साहब ने कैदियों को छोड़े जाने का बयान उस वक़्त दिया जब मसर्रत का डिटेंशन ऑर्डर लैप्स हो रहा था।

अब राज्य प्रशासन भी दलील दे रहा है कि मसर्रत पर जितने भी मामले थे उनमें ज़्यादातर में उसकी बेल हो चुकी है। जानकारी के मुताबिक, मसर्रत पर 27 अपराधिक मामले थे और ज़्यादातर संगीन थे, जैसे साजिश, षडयंत्र, पत्थरबाजी अनलॉफुल एक्टिविटी और हत्या की कोशिश।

2010 में उस पर सात बार पब्लिक सेफ्टी एक्ट भी लगाया गया है, लेकिन इस बार राज्य ने ऐसा नहीं किया।  

राज्य के वरिष्ठ अधिकारी ने तर्क दिया कि मसर्रत का मामला सुप्रीम कोर्ट भी चला गया था और उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस बार उस पर पीएसए यानी पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाने से पहले मसर्रत को एक हफ्ते का समय देना पड़ेगा ताकि वह कानूनी सलाह ले सके। अब यही तर्क राज्य सरकार केंद्र सरकार को दे रही है।

राज्य सरकार के मुताबिक, फिलहाल उनके पास 15 और कैदी हैं जिन पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगाया गया है। उनमें से कुछ ओवर ग्राउंड वर्कर्स हैं कुछ टिम्बर समगलर्स और कुछ पत्थरबाज़।

मसर्रत आलम मुस्लिम लीग से संबंध रखता है। वह गिलानी का करीबी इसीलिए बन गया क्योंकि जब 2010 में हुर्रियत नेता स्येद अली शाह गिलानी हड़ताल की कॉल देते थे तब मसर्रत के कहने पर नौजवान सड़कों पर आकर खूब पत्थरबाजी करते थे।

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