प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
पिछले दो सालों की तरह इस साल भी दो अक्टूबर यानी गांधी जयंती का दिन स्वच्छता दिवस के रूप में मनाया जाएगा. भारत को स्वच्छ बनाने के लिए शुरू किए गए 'स्वच्छ भारत अभियान' ने आम लोगों को सफाई के प्रति काफी हद तक जागरुक किया है, लेकिन इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें अभी भी बहुत ज्यादा मेहनत करनी होगी.
साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह अभियान शुरू किया गया. इसका आधार मई 2014 में आई यूएन की रिपोर्ट थी जिसमें यह कहा गया था कि भारत की करीब 60 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती है. इस वजह से भारतीयों मे कॉलेरा, डायरिया और टायफाइड होने का खतरा बना रहता है. इसके अलावा 2006 के विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत अपनी जीडीपी का 6.4 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ सफाई और हाइजीन पर खर्च करता है. इसलिए साल 2019 तक देश के हर घर में शौचालय बनवाने और लोगों को गंदगी से फैलने वाली बीमारियों से सुरक्षित करने के मकसद से स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की गई.
अब तक कहां पहुंचे हम
स्वच्छ भारत अभियान में अभी तक की सफलता की बात करें तो सफाई के प्रति लोग जागरुक हुए हैं. इन दो सालों में देश के पिछड़े इलाकों के कई गांव खुले मे शौच से मुक्त बन गए हैं. घर में शौचालय निर्माण के लिए सरकार ग्रामीण लोगों को सब्सिडी भी दे रही है. भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर 2014 से अक्टूबर 2015 के बीच ग्रामीण भारत में 80 लाख से अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ है. इस अभियान के तहत साल 2019 तक 12 करोड़ शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य है. हालांकि, इस संबंध में अभी तक सरकार द्वारा कोई सर्वे नहीं किया गया है कि ज़मीनी स्तर पर इस अभियान का क्या असर हुआ है. इसलिए यह कहना मुश्किल है कि यह अभियान सफल हुआ है या नहीं.
ऐसे पूरा होगा इस अभियान का मकसद
स्वच्छ भारत अभियान का मकसद घरेलू कचरे, प्लास्टिक वेस्ट, इंडस्ट्रियल वेस्ट, मेडिकल वेस्ट, पॉल्यूशन और अन्य सभी तरह के वेस्ट से देश को मुक्त बनाना है. इसके लिए केवल झाड़ू लगाना काफी नहीं है. लेकिन कुछ बेहद ही आसान कदम उठाकर भारत को स्वच्छ बनाने की दिशा में हम अपना योगदान दे सकते हैं. उदाहरण के लिए कचरा केवल डस्टबिन में फेंके, यहां-वहां थूकें न, प्लास्टिक की थैलियों की कम से कम उपयोग करें, सामान लेने जाएं तो साथ में बैग लेकर जाएं और अपने आसपास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें, जहां तक संभव हो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें यह ईंधन की बचत के साथ-साथ पॉल्यूशन को रोकने में कारगर है.
साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह अभियान शुरू किया गया. इसका आधार मई 2014 में आई यूएन की रिपोर्ट थी जिसमें यह कहा गया था कि भारत की करीब 60 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती है. इस वजह से भारतीयों मे कॉलेरा, डायरिया और टायफाइड होने का खतरा बना रहता है. इसके अलावा 2006 के विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत अपनी जीडीपी का 6.4 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ सफाई और हाइजीन पर खर्च करता है. इसलिए साल 2019 तक देश के हर घर में शौचालय बनवाने और लोगों को गंदगी से फैलने वाली बीमारियों से सुरक्षित करने के मकसद से स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की गई.
अब तक कहां पहुंचे हम
स्वच्छ भारत अभियान में अभी तक की सफलता की बात करें तो सफाई के प्रति लोग जागरुक हुए हैं. इन दो सालों में देश के पिछड़े इलाकों के कई गांव खुले मे शौच से मुक्त बन गए हैं. घर में शौचालय निर्माण के लिए सरकार ग्रामीण लोगों को सब्सिडी भी दे रही है. भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर 2014 से अक्टूबर 2015 के बीच ग्रामीण भारत में 80 लाख से अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ है. इस अभियान के तहत साल 2019 तक 12 करोड़ शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य है. हालांकि, इस संबंध में अभी तक सरकार द्वारा कोई सर्वे नहीं किया गया है कि ज़मीनी स्तर पर इस अभियान का क्या असर हुआ है. इसलिए यह कहना मुश्किल है कि यह अभियान सफल हुआ है या नहीं.
ऐसे पूरा होगा इस अभियान का मकसद
स्वच्छ भारत अभियान का मकसद घरेलू कचरे, प्लास्टिक वेस्ट, इंडस्ट्रियल वेस्ट, मेडिकल वेस्ट, पॉल्यूशन और अन्य सभी तरह के वेस्ट से देश को मुक्त बनाना है. इसके लिए केवल झाड़ू लगाना काफी नहीं है. लेकिन कुछ बेहद ही आसान कदम उठाकर भारत को स्वच्छ बनाने की दिशा में हम अपना योगदान दे सकते हैं. उदाहरण के लिए कचरा केवल डस्टबिन में फेंके, यहां-वहां थूकें न, प्लास्टिक की थैलियों की कम से कम उपयोग करें, सामान लेने जाएं तो साथ में बैग लेकर जाएं और अपने आसपास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें, जहां तक संभव हो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें यह ईंधन की बचत के साथ-साथ पॉल्यूशन को रोकने में कारगर है.
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