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This Article is From Feb 16, 2017

ट्रिपल तलाक मामले की सुनवाई के लिए 5 जजों की संविधान पीठ बनाई जा सकती है...

ट्रिपल तलाक मामले की सुनवाई के लिए 5 जजों की संविधान पीठ बनाई जा सकती है...
ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई. (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: ट्रिपल तलाक मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान पीठ बनाई जा सकती है. चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने ये इशारा करते हुए कहा कि 'इस मामले में कानूनी पहलुओं पर ही सुनवाई होगी. सभी पक्षों के एक-एक शब्द पर सुप्रीम कोर्ट गौर करेगा. सुप्रीम कोर्ट कानून से अलग नहीं जा सकता'. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 11 मई से गर्मियों की छुट्टियों में सुनवाई शुरू करेगा. 30 मार्च को मामले के मुद्दे तय किए जाएंगे.

ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई. कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा था कि वो कोर्ट में मामले को लेकर उठे सवालों की लिस्ट सौंपे. 14 फरवरी को सुनवाई में  CJI खेहर ने कहा था कि ये एक ऐसा मामला है, जिसमें मानवाधिकार का मुद्दा भी हो सकता है. ये दूसरे मामलों पर भी असर डाल सकता है. लिहाजा, हम इस मामले में कॉमन सिविल कोड पर बहस नहीं करेंगे. कोर्ट सिर्फ कानूनी पहलू पर फैसला देगा.

मामले की ग्रीष्‍कालीन अवकाश अवधि में सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा सभी पक्षों के वकील तैयार होकर आएं और एक हफ्ते में सुनवाई पूरी करेंगे.

दरअसल, ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. पिछली सुनवाई में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक और हलफनामा दाखिल कर केंद्र की दलीलों का विरोध किया था. बोर्ड ने अपने हलफनामे में कहा था कि ट्रिपल तलाक को महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन बताने वाले केंद्र सरकार का रुख बेकार की दलील है. पर्सनल लॉ को मूल अधिकार की कसौटी पर चुनौती नहीं दी जा सकती. ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला जैसे मुद्दे पर कोर्ट अगर सुनवाई करता है तो ये जुडिशियल लेजिस्लेशन की तरह होगा. केंद्र सरकार ने इस मामले में जो स्टैंड लिया है कि इन मामलों को दोबारा देखा जाना चाहिए, वह बेकार है. पर्सनल लॉ बोर्ड का स्टैंड है कि मामले में दाखिल याचिका खारिज की जानी चाहिए, क्‍योंकि अर्जी में जो सवाल उठाए गए हैं वो जुडिशियल रिव्यू के दायरे में नहीं आती.

हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती. सोशल रिफॉर्म के नाम पर मुस्लिम पर्सनल लॉ को दोबारा नहीं लिखा जा सकता, क्योंकि ये प्रैक्टिस संविधान के अनुच्छेद-25, 26 और 29 के तहत प्रोटेक्टेड है. कॉमन सिविल कोड पर लॉ कमिशन के प्रयास का विरोध करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि कॉमन सिविल कोड संविधान के डायरेक्टिव प्रिंसिपल का पार्ट है.

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