
'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' गीता के इस श्लोक को शुक्रवार को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने एक सुनवाई के दौरान कहा और गीता को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित करने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस ने कहा कि ये आस्था की बात है, इसमें कोर्ट दखल नहीं दे सकता।
दरअसल, वकील बालाकृष्णन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि गीता का इतिहास 5000 हजार साल पुराना है, जबकि ईसाई धर्म का इतिहास 2000 हजार साल पुराना। इसी तरह इस्लाम भी 14सौ साल पहले का है। इसलिए गीता को किसी धर्म से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। गीता में सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर महत्वपूर्ण शिक्षा दी गई है। ऐसे में गीता को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित किया जाना चाहिए। साथ ही गीता को शैक्षणिक संस्थाओं में भी शामिल किया जाना चाहिए। इस संबंध में हरियाणा सरकार ने राज्य स्तर पर कदम भी उठाए हैं, लेकिन चीफ जस्टिस एचएल दत्तू ने कहा कि इस मामले में कोर्ट दखल नहीं दे सकता।
उन्होंने कहा कि ये मामला लोगों की भावनाओं का है और आस्था का भी। कोई भी व्यक्ति किसी भी पुस्तक के आदर्शों को अपना सकता है। किसी को एक पुस्तक को मानने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। इसमें कोर्ट कोई आदेश जारी नहीं कर सकता। इसके बाद चीफ जस्टिस ने गीता के श्लोक का उच्चारण किया और याचिकाकर्ता को कहा कि उन्होंने अपना काम कर दिया है। इसके बाद याचिका को खारिज कर दिया।
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