अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन (फाइल फोटो)
मुंबई:
25 अक्टूबर को इंडोनेशिया में अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन के पकड़े जाने के बाद ही उसे भारत डिपोर्ट करने की कवायद शुरू कर दी गई थी। फौरी तौर पर भले ही ये मान लिया गया कि मोहन कुमार के नाम के फर्जी पासपोर्ट पर सफ़र कर रहा शख्स भारत का भगोड़ा छोटा राजन ही है। लेकिन उसे भारत डिपोर्ट करने के लिए ठोस सबूत की दरकार थी।
छोटा राजन मुंबई का है और उसके खिलाफ सबसे ज्यादा मामले भी मुंबई में दर्ज हैं इसलिए भारत में इंटरपोल की नोडल एजेंसी सीबीआई ने मुंबई पुलिस से ठोस सबूत मुहैया करने को कहा। मुंबई पुलिस ने भी थानों में धूल फांकती फाइलों में राजन के अपराधों की तलाश शुरू कर दी। देखते ही देखते 70 के करीब अपराधों की सूची तैयार हो गई। 21 अप्रैल 1973 को जारी राजेन्द्र निखालजे नाम की उसकी स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट मिली, उसका मतदान कार्ड भी मिल गया। लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे ये साबित हो पाये कि इंडोनेशिया में पकड़ा गया शख्स और भारत का भगोड़ा राजन एक ही शख्स है।
अब राजन के हाथ की उंगलियों के निशान की तलाश शुरू हुई। पर राजन के खिलाफ दर्ज ज्यादातर मामले उसके देश छोड़ने के बाद के थे। इसलिए उसमें उंगलियों के निशान नहीं थे। राजन चेंबूर के तिलक नगर का रहने वाला था और अपराध की दुनिया में पहला कदम भी उसने वहीं रखा था। पुराने अफसरों से पता चला कि 35 साल पहले यानी मुंबई से भागने के पहले 1980 में राजन के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज हुआ था और वो उसमें गिरफ्तार भी हुआ था। मतलब उसकी उंगलियों के निशान लिये गए थे।
बस फिर क्या था, तिलक नगर की महिला पुलिस निरीक्षक मनीषा शिरके के नेतृत्व में 6 पुलिसवालों को उस फ़ाइल की तलाश का काम दिया गया। कड़ी मशक्कत के बाद वो फ़ाइल तो मिली लेकिन उसमे रखे दस्तावेज फट चुके थे। हाथ के पंजों के निशान वाले कागज के भी 3 टुकड़े हो चुके थे। तीनों टुकड़ों को जोड़कर उसे स्कैन किया गया तब जाकर राजन की उंगलियों के निशान मिल पाये। उसी निशान के बल पर भारत ये साबित कर पाया कि पकड़ा गया शख्स भारत का भगोड़ा छोटा राजन है और वो भारत का ही नागरिक है।
जानकारों के मुताबिक अगर छोटा राजन के 35 साल पुराने फिंगर प्रिंट्स नहीं मिलते तो राजन की पहचान के लिये उसका डीएनए टेस्ट कराना पड़ता। उसके मिलान के लिए राजन के भाई और बहन का भी डीएनए टेस्ट कराना पड़ता। जिसमे कई दिन गुजर जाते।
छोटा राजन मुंबई का है और उसके खिलाफ सबसे ज्यादा मामले भी मुंबई में दर्ज हैं इसलिए भारत में इंटरपोल की नोडल एजेंसी सीबीआई ने मुंबई पुलिस से ठोस सबूत मुहैया करने को कहा। मुंबई पुलिस ने भी थानों में धूल फांकती फाइलों में राजन के अपराधों की तलाश शुरू कर दी। देखते ही देखते 70 के करीब अपराधों की सूची तैयार हो गई। 21 अप्रैल 1973 को जारी राजेन्द्र निखालजे नाम की उसकी स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट मिली, उसका मतदान कार्ड भी मिल गया। लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे ये साबित हो पाये कि इंडोनेशिया में पकड़ा गया शख्स और भारत का भगोड़ा राजन एक ही शख्स है।
अब राजन के हाथ की उंगलियों के निशान की तलाश शुरू हुई। पर राजन के खिलाफ दर्ज ज्यादातर मामले उसके देश छोड़ने के बाद के थे। इसलिए उसमें उंगलियों के निशान नहीं थे। राजन चेंबूर के तिलक नगर का रहने वाला था और अपराध की दुनिया में पहला कदम भी उसने वहीं रखा था। पुराने अफसरों से पता चला कि 35 साल पहले यानी मुंबई से भागने के पहले 1980 में राजन के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज हुआ था और वो उसमें गिरफ्तार भी हुआ था। मतलब उसकी उंगलियों के निशान लिये गए थे।
बस फिर क्या था, तिलक नगर की महिला पुलिस निरीक्षक मनीषा शिरके के नेतृत्व में 6 पुलिसवालों को उस फ़ाइल की तलाश का काम दिया गया। कड़ी मशक्कत के बाद वो फ़ाइल तो मिली लेकिन उसमे रखे दस्तावेज फट चुके थे। हाथ के पंजों के निशान वाले कागज के भी 3 टुकड़े हो चुके थे। तीनों टुकड़ों को जोड़कर उसे स्कैन किया गया तब जाकर राजन की उंगलियों के निशान मिल पाये। उसी निशान के बल पर भारत ये साबित कर पाया कि पकड़ा गया शख्स भारत का भगोड़ा छोटा राजन है और वो भारत का ही नागरिक है।
जानकारों के मुताबिक अगर छोटा राजन के 35 साल पुराने फिंगर प्रिंट्स नहीं मिलते तो राजन की पहचान के लिये उसका डीएनए टेस्ट कराना पड़ता। उसके मिलान के लिए राजन के भाई और बहन का भी डीएनए टेस्ट कराना पड़ता। जिसमे कई दिन गुजर जाते।
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