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शिबू सोरेन को क्यों होना पड़ा था अंडरग्राउंड, पत्रकार ने बताया कैसे हुई थी मुलाकात

एक मामले में वारंट जारी होने के बाद शिबू सोरेन कुछ समय के लिए अंडर ग्राउंड हो गए थे. अंडरग्राउंड रहते हुए उन्होंने केवल दो पत्रकारों से मुलाकात कर आत्मसमर्पण करने की जानकारी दी थी. उनमें से एक पत्रकार सलमान रावी बता रहे हैं कैसे हुई थी मुलाकात.

शिबू सोरेन को क्यों होना पड़ा था अंडरग्राउंड, पत्रकार ने बताया कैसे हुई थी मुलाकात
  • झारखंड मुक्ति मोर्चा के सह-संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन दिल्ली में सोमवार को हो गया.
  • अंतिम संस्कार से पहले शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर रांची विधानसभा परिसर में रखा गया था.
  • 1984 में जारी गिरफ्तारी वारंट के बाद शिबू सोरेन भूमिगत हो गए थे और आदिवासियों के संरक्षण में रह रहे थे.
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नई दिल्ली:

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सह-संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का आज रामगढ़ जिले में उनके पैतृक गांव नेमरा में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा. इससे पहले रांची स्थित विधानसभा परिसर में उनका पार्थिव शरीर श्रद्धांजलि देने के लिए रखा गया. वहां राज्यपाल राज्यपाल संतोष गंगवार और विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो समेत राज्य के बड़े नेताओं और अधिकारियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. शिबू सोरने का जाना झारखंड के लिए बड़ी क्षति है. उनका जीवन झारखंड और राज्य की जनता के लिए समर्पित रहा.'गुरुजी' के नाम से मशहूर शिबू सोरेन का सोमवार को दिल्ली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया था. वहां वो पिछले एक महीने से अधिक समय से गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए भर्ती थे. आइए हम आपको बताते हैं उस समय की कहानी जब एक मामले में वारंट जारी होने के बाद सोरेन भूमिगत हो गए थे. सोरेन जब भूमिगत हुए तो वो केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. बाद में वो इस मामले में बरी हो गए थे. 

दिशोम गुरु का जीवन

दिशोम गुरु का जीवन काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है. इस दौरान उन्होंने काफी आरोपों का सामना किया, लेकिन अधिकांश में वो बेदाग साबित हुए. उन पर लगे आरोपों में से एक प्रमुख था 23जनवरी 1975 को हुआ जामताड़ा का चिरूडीह कांड. इस मामले में 11 लोगों की हत्या कर दी गई थी. मरने वालों में नौ मुसलमान शामिल थे. इस मामले में 69 लोगों को आरोपी बनाया गया था.इनें शिबू सोरेन का भी नाम था. उन उग्र भीड़ को भड़काने का आरोप था. इस मामले को लेकर तत्कालीन बिहार में जमकर हंगामा मचा था. 

वरिष्ठ पत्रकार सलमान रावी झारखंड को उस समय से कवर किया है, जब वह बिहार का दक्षिणी हिस्सा हुआ करता था.वो बताते हैं कि बहुत सालों तक यह मामला अदालती कागजों में दबा रहा.साल 1986 में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई.इश मामले में 1984 में सोरेन के खिलाफ एक गिरफ्तारी वारंट जारी किया था. लेकिन पुलिस इस मामले में सक्रिय नहीं हुई.इस मामले में पुलिस 2004 में सक्रिय हुई, जब शिबू सोरेन केंद्र की मनमोहन सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे. उनके पास कोयला मंत्रालय का जिम्मा था. 

दिशोम गुरु के नाम से मशहूर शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि देने के लिए झारखंड की राजधानी रांची में लगा पोस्टर.

दिशोम गुरु के नाम से मशहूर शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि देने के लिए झारखंड की राजधानी रांची में लगा पोस्टर.

शिबू सोरेन की सुरक्षा कर रहे थे आदिवासी

इसके बाद शिबू सोरेन भूमिगत हो गए थे. सोरेन जहां ठहरे हुए थे, उस गांव को तीर-धनुष से लैस आदिवासियों ने घेर रखा था. वहां पुलिस भी पहुंच नहीं पा रही थी. सलमान रावी उस समय 'टेलीग्राफ ' अखबार साउथ बिहार संवाददाता के रूप में काम करते थे. वो बताते हैं कि उस समय शिबू सोरेन किसी से मिल नहीं रहे थे और किसी यह पता भी नहीं था कि वो हैं कहां पर. एक केंद्रीय मंत्री का इस तरह से गायब हो जाना बड़ी खबर थी. 

सलमान रावी बताते हैं कि शिबू सोरेन के बेटे दुर्गा सोरेन से मिलकर हमने दिशोम गुरु से मिलाने के लिए अनुरोध किया. किसी तरह वो हमसे मिलने के लिए तैयार हुए.वो बताते हैं कि दुर्गा सोरेन मुझे और मेरे एक साथी पत्रकार को शिबू सोरेन से मिलाने के लिए अपने साथ ले गए थे.रावी ने बताया कि हम लोग जंगल में करीब 15 किलोमीटर पैदल चलते हुए शिबू सोरेन के पास पहुंचे थे. उन्होंने बताया कि वहां हम लोग पहले ऐसे पत्रकार थे, जिनसे शिबू सोरेन ने बातचीत की थी. इस दौरान उन्होंने कहा था कि जब मैं केंद्र में मंत्री बन गया तो जानबूझकर 1984 के वारंट को 2004 में सामने लाया गया है. उस समय झारखंड में बीजेपी की सरकार चल रही थी. रावी बताते हैं कि हम लोगों से बातचीत में ही सोरेन ने यह कहा था कि वो आत्मसर्पण कर देंगे. सलमान रावी से बातचीत के 10-11 दिन बाद उन्होंने जामताड़ा की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था. वो एक महीने तक जेल में रहे थे. जमानत पर वो जेल से छूटे. बाद में यह मामला फास्ट ट्रैक अदालत को भेज दिया गया. इस अदालत ने शिबू सोरेन को सभी आरोपों से बरी कर दिया था. 

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