नई दिल्लीॉ:
सुप्रीम कोर्ट की कई बार फटकार के बाद आज एक बार फिर केंद्र सरकार की ओर से आधार कार्ड पर साफ कहा गया कि इस योजना को वापस लेना मुश्किल है। सरकार ने कहा कि 120 करोड़ लोगों में 80 करोड़ लोगों के आधार कार्ड बन चुके हैं।
कोर्ट में नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से बताया गया कि इस योजना में अब तक 5000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। सरकार ने कहा कि इस योजना के जरिये सरकार कई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचा रही है। कई सब्सिडी इसे के माध्यम से लोगों को दी जा रही है।
सरकार का कहना है कि ऐसे में आधार कार्ड को खत्म करने से सरकार की देश से गरीबी हटाने की मुहीम को नुकसान होगा। कोर्ट में भारत के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले की सुनवाई कम से कम पांच जजों की संविधान पीठ को करना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार से उनकी राय फिर मांगी है।
बता दें कि आधार की अनिवार्यता के ख़िलाफ़ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट उस आदेश को वापस ले ले जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि किसी भी सरकारी योजना के लिए आधार की अनिवार्यता नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से याचिका दायर कर कहा गया है कि कोर्ट के आदेश के कारण डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) प्रोग्राम को कारगर तरीके से लागू करने में दिक्कत हो रही है।
फाइनांस मिनिस्ट्री ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के 23 सितंबर 2013 व 16 मार्च 2015 के आदेश में बदलाव की गुहार लगाई है।
केंद्र सरकार का कहना था कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर प्रोग्राम की सफालता के लिए यूनिक आईडेंटिटी जरूरी है। इसके लिए प्रत्येक बेनिफिशियरी के पास यूनिक आईडेंटिटी होना जरूरी है। यूनिक आईडेंटिटी नंबर होने से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि जो बेनिफिट ट्रांसफर किया जा रहा है, वह सही व नियत बेनिफिशियरी के पास जा रहा है और इस तरह घोस्ट और डुप्लिकेट सिस्टम से डिलीट हो जाएंगे।
केंद्र सरकार ने कहा कि अगर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर प्रोग्राम बैंक अकाउंट नंबर के बेसिस पर ट्रांसफर होंगे और बेनिफिट दिया जाएगा तो फर्जी और घोस्ट या फिर डुप्लिकेशन को लोकेट करना मुश्किल हो जाएगा और इस तरह से बिचौलिये और गलत तरीके से बेनिफिट लेने वाले को दरकिनार करना मुश्किल हो जाएगा।
अगर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के लिए यूनिक आईडेंटिटी स्कीम को अनिवार्य नहीं किया जाएगा तो सिस्टम में बड़ी खामी बरकरार रहेगी और सिस्टम को आसानी से बिचौलिये दोहन कर लेंगे और निहित स्वार्थ वाले लोग बेनिफिट को अपनी ओर डायवर्ट कर लेंगे।
2013 में आधार कार्ड की कंस्टिट्यूशनल वैलिडिटी को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने दलील देते हुए सरकार द्वारा तमाम प्राइवेट डाटा लिए जाने पर सवाल उठाया था और कहा था कि यह आम आदमी के राइट टू प्राइवेसी में दखल है।
कोर्ट में नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से बताया गया कि इस योजना में अब तक 5000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। सरकार ने कहा कि इस योजना के जरिये सरकार कई कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचा रही है। कई सब्सिडी इसे के माध्यम से लोगों को दी जा रही है।
सरकार का कहना है कि ऐसे में आधार कार्ड को खत्म करने से सरकार की देश से गरीबी हटाने की मुहीम को नुकसान होगा। कोर्ट में भारत के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले की सुनवाई कम से कम पांच जजों की संविधान पीठ को करना चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार से उनकी राय फिर मांगी है।
बता दें कि आधार की अनिवार्यता के ख़िलाफ़ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट उस आदेश को वापस ले ले जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि किसी भी सरकारी योजना के लिए आधार की अनिवार्यता नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से याचिका दायर कर कहा गया है कि कोर्ट के आदेश के कारण डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) प्रोग्राम को कारगर तरीके से लागू करने में दिक्कत हो रही है।
फाइनांस मिनिस्ट्री ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के 23 सितंबर 2013 व 16 मार्च 2015 के आदेश में बदलाव की गुहार लगाई है।
केंद्र सरकार का कहना था कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर प्रोग्राम की सफालता के लिए यूनिक आईडेंटिटी जरूरी है। इसके लिए प्रत्येक बेनिफिशियरी के पास यूनिक आईडेंटिटी होना जरूरी है। यूनिक आईडेंटिटी नंबर होने से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि जो बेनिफिट ट्रांसफर किया जा रहा है, वह सही व नियत बेनिफिशियरी के पास जा रहा है और इस तरह घोस्ट और डुप्लिकेट सिस्टम से डिलीट हो जाएंगे।
केंद्र सरकार ने कहा कि अगर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर प्रोग्राम बैंक अकाउंट नंबर के बेसिस पर ट्रांसफर होंगे और बेनिफिट दिया जाएगा तो फर्जी और घोस्ट या फिर डुप्लिकेशन को लोकेट करना मुश्किल हो जाएगा और इस तरह से बिचौलिये और गलत तरीके से बेनिफिट लेने वाले को दरकिनार करना मुश्किल हो जाएगा।
अगर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के लिए यूनिक आईडेंटिटी स्कीम को अनिवार्य नहीं किया जाएगा तो सिस्टम में बड़ी खामी बरकरार रहेगी और सिस्टम को आसानी से बिचौलिये दोहन कर लेंगे और निहित स्वार्थ वाले लोग बेनिफिट को अपनी ओर डायवर्ट कर लेंगे।
2013 में आधार कार्ड की कंस्टिट्यूशनल वैलिडिटी को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने दलील देते हुए सरकार द्वारा तमाम प्राइवेट डाटा लिए जाने पर सवाल उठाया था और कहा था कि यह आम आदमी के राइट टू प्राइवेसी में दखल है।
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