
केंद्र सरकार ने जल जीवन मिशन के तहत चल रही परियोजनाओं में देरी, लागत में इजाफा और क्वालिटी से जुड़े सवालों को लेकर बड़ा कदम उठाया है. इसके लिए 100 विशेष टीमों का गठन किया गया है, जो 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 135 जिलों की 183 परियोजनाओं की जांच करेंगी. कैबिनेट की अपॉइंटमेंट कमेटी ने मंगलवार को केंद्रीय नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की, जिनमें 75 संयुक्त सचिव और 106 डायरेक्टर शामिल हैं.
जांच का क्या मकसद
इन टीमों की ट्रेनिंग 23 मई को होगी, ताकि वे जमीनी हालात का सही से आकलन कर सकें. यह निर्णय 8 मई को कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में हुई जल शक्ति मंत्रालय और राज्यों के अधिकारियों की बैठक के बाद हुआ. जांच का मुख्य मकसद परियोजनाओं में देरी की वजह, लागत वृद्धि और काम की गुणवत्ता से जुड़ी शिकायतों का पता लगाना है. इन टीमों को अपनी रिपोर्ट कैबिनेट सचिव को सौंपनी होगी.
क्यों बनाई गई जांच टीम
जल जीवन मिशन, जिसे 2019 में शुरू किया गया था, का लक्ष्य 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में पाइप के जरिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना था. मगर इसका शुरुआती बजट 3.6 लाख करोड़ रुपये था, जो अब बढ़कर लगभग 9 लाख करोड़ रुपये हो चुका है. फिर भी, कई राज्य अपने लक्ष्य से काफी पीछे हैं. मध्य प्रदेश (29 परियोजनाएं), राजस्थान और ओडिशा (21-21), कर्नाटक (19), उत्तर प्रदेश (18), केरल (10), और गुजरात व तमिलनाडु (8-8) जैसे राज्यों में परियोजनाओं की प्रगति और गुणवत्ता की जांच होगी.
इन राज्यों ने हासिल किया लक्ष्य
पंजाब, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश समेत 11 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों ने इस मिशन के तहत 100 प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया है. लेकिन विपक्ष शासित केरल, झारखंड, पश्चिम बंगाल और एनडीए शासित राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी प्रगति बहुत धीमी है. केंद्र सरकार का यह कदम जल जीवन मिशन को समयबद्ध और गुणवत्तापूर्ण तरीके से पूरा करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. जांच के बाद सामने आने वाली रिपोर्ट से परियोजनाओं को गति देने और कमियों को दूर करने में मदद मिलने की उम्मीद है.
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