भारत के 75वें गणतंत्र दिवस की सुबह शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन कर्तव्य पथ पर भव्य परेड में शिरकत करने के लिए राष्ट्रपति भवन से कर्तव्य पथ पर पहुंचे.
इस छोटी-सी औपचारिक यात्रा के लिए दोनों राष्ट्रपतियों ने औपनिवेशिक युग की खुली बग्गी पर सवारी की, और गंतव्य पर पहुंचने से पहले भीड़ की तरफ हाथ हिलाकर अभिवादन स्वीकार करते दिखे. यह बग्गी 40 वर्ष के अंतराल के बाद राष्ट्रपति की सवारी के तौर पर गणतंत्र दिवस समारोह में लौटी है, जिसके स्थान पर अब तक बख्तरबंद लिमोसिन नज़र आया करती थी.
बग्गी का इतिहास
छह घोड़ों द्वारा खींची जाने वाली काले रंग की बग्गी के पहियों पर सोने की परत चढ़ी है, अंदरूनी भाग लाल मखमल से सज़ा है, और इस पर एक अशोक चक्र नज़र आता है, और यह बग्गी मूल रूप से ब्रिटिश शासनकाल में भारत के वायसराय की हुआ करती थी. इस बग्गी का इस्तेमाल औपचारिक उद्देश्यों और राष्ट्रपति (तत्कालीन वायसराय) एस्टेट में सफर के लिए किया जाता था.
बहरहाल, जब औपनिवेशिक शासन खत्म हुआ, भारत और नवगठित पाकिस्तान, दोनों ने बग्गी को हासिल करने की कोशिश की, और कौन बग्गी रखेगा, इसके लिए एक अनूठा समाधान निकाला गया.
सिक्का उछालकर किया गया फ़ैसला
दोनों नए पड़ोसी मुल्कों ने फ़ैसला किस्मत पर छोड़ दिया और सिक्का उछाला. भारत के कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तान के साहबज़ादा याकूब खान ने सिक्का उछाला, और किस्मत थी कि कर्नल सिंह ने भारत के लिए बग्गी जीत ली.
बाद में देश के राष्ट्रपति द्वारा शपथग्रहण समारोहों में शिरकत करने के लिए राष्ट्रपति भवन से संसद तक का सफर इसी बग्गी में किया जाता था. 29 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह के समापन पर कर्तव्य पथ स्थित विजय चौक पर आयोजित होने वाले बीटिंग द रिट्रीट समारोह में भी राज्य के प्रमुख को ले जाने के लिए भी इसी बग्गी का इस्तेमाल किया जाता था.
आज़ादी के बहुत सालों बाद खुली गाड़ी का उपयोग सुरक्षा खतरों के चलते बंद कर दिया गया, और पारंपरिक बग्गी के स्थान पर बुलेट-प्रूफ कारें इस्तेमाल की जाने लगीं.
इस ऐतिहासिक बग्गी ने 2014 में वापसी की थी, जब तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बीटिंग द रिट्रीट समारोह में भाग लेने के लिए इसी बग्गी में सवार होकर पहुंचे थे.
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