बजट 2022 में सरकार के ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम मनरेगा के लिए आवंटन में 25 प्रतिशत की कमी की गई है, भले ही महामारी के दौरान इन नौकरियों पर भारत के गरीब लोगों की निर्भरता बढ़ गई हो. मनरेगा या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए ₹ 73,000 करोड़ आवंटित किए गए हैं. यह चालू वित्त वर्ष (2021-22) के संशोधित अनुमान से कम है, जो कि ₹98,000 करोड़ है. 2021-22 में बजट अनुमान ₹ 73,000 करोड़ है, जो वास्तव में 2020-21 में इस योजना पर खर्च किए गए खर्च से 34% कम है.
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नवीनतम बजट दस्तावेजों के अनुसार, सरकार ने महामारी वर्ष 2020-21 में योजना पर 1.1 लाख करोड़ खर्च किए थे. पिछले साल मनरेगा का बजट अनुमान और यही है. हालांकि, पिछले वर्ष के लिए संशोधित अनुमान दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक निर्माण कार्यक्रम के तहत इन नौकरियों की मांग में संभावित वृद्धि का संकेत है.
दिसंबर 2018 में 1.9 करोड़ परिवारों ने मनरेगा के तहत काम की मांग की थी. दिसंबर 2019 में, यह आंकड़ा थोड़ा कम होकर 1.7 करोड़ परिवारों तक पहुंच गया. लेकिन दिसंबर 2020 तक, लंबे समय तक चलने वाले लॉकडाउन के कारण काम की मांग करने वाले परिवारों की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई ये संख्या 2.7 करोड़ पहुंच गई. पिछले दिसंबर में, काम की मांग की संख्या 2.4 करोड़ पर बनी रही.
यह कार्यक्रम, जो ग्रामीण भारत में हर घर को 100 दिनों का गारंटीकृत काम देता है, उन लोगों के लिए जीने का सहारा बन गया जिन्होंने कोविड से लड़ने के चलते महीनों लॉकडाउन के कारण महीनों तक कार्यालयों, दुकानों और कारखानों के बंद होने से रोजगार खो दिया था.
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बैंकर नैना लाल किदवई ने कहा कि सरकार द्वारा सब्सिडी वाली आवास परियोजनाएं और बुनियादी ढांचे को आगे बढ़ाने से ग्रामीण श्रमिकों के लिए अधिक रोजगार पैदा करने में मदद मिल सकती है. उन्होंने कहा कि यह एक पहेली है. यदि कैपेक्स परियोजनाएं और किफायती आवास परियोजनाएं भी रोजगार पैदा करती हैं तो यह संभव है कि हम ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा से इतर भी नौकरियां देखेंगे. व्यक्तिगत संख्याओं पर टिप्पणी करना मुश्किल है, लेकिन यह देखते हुए कि हमारे पास अभी भी सिस्टम पर काफी तनाव है, ऐसे में मनरेगा जैसी अत्यधिक सफल योजना के लिए इस स्तर पर कमी देखना थोड़ा उलझन भरा है.
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