हालिया यूपी चुनावों में मायावती की बसपा 403 में से महज 19 सीटें ही जीत सकी.(फाइल फोटो)
सहारनपुर में पिछले एक महीने के दौरान दो गुटों के बीच बार-बार हो रही झड़पों के बीच मंगलवार को बसपा सुप्रीमो मायावती के वहां का दौरा करने के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. दरअसल इसकी पृष्ठभूमि पर अगर नजर डाली जाए तो इस दौरान दलितों की हिमायती संगठन के रूप में एक नई भीम आर्मी का उदय मायावती के लिए नया सिरदर्द है. इस आर्मी के चीफ चंद्रशेखर दलितों के एक तबके के नेता के रूप में उभरे हैं. 30 वर्षीय चंद्रशेखर पेशे से वकील हैं. उनके खिलाफ एक दर्जन से भी अधिक मामले हैं. वे फिलहाल फरार चल रहे हैं और पिछले दिनों जंतर-मंतर पर दिखे थे.
सहारनपुर की घटनाओं के बाद दलितों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर बड़ा प्रदर्शन किया. उसमें भारी भीड़ की उपस्थिति थी. देश के अन्य राज्यों से भी दलित पहुंचे थे. गुजरात में दलितों के खिलाफ हुए उना कांड के बाद वहां के चर्चित चेहरे के रूप में उभरे जिग्नेश मेवानी भी जंतर-मंतर पर आए थे. इस सबका असर यह दिख रहा है कि हालिया दौर की इन घटनाओं के बीच अलग-अलग राज्यों में दलित नेताओं की एक नई पौध उभर रही है.
यह नया उभरता दलित नेतृत्व मायावती के लिए बड़ी चुनौती है. लिहाजा अपने परंपरागत वोटबैंक को बचाने की कवायद के रूप में मायावती की सहारनपुर यात्रा को देखा जा रहा है. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि मायावती का वोटबैंक अब दरकने लगा है. कभी दलितों की कद्दावर नेता मानी जाने वाली मायावती की पार्टी बसपा का हालिया यूपी विधानसभा चुनाव में लचर ही रहा. पार्टी राज्य की 403 सीटों में से महज 19 सीटें जीत पाई. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का खाता नहीं खुला. इस पार्टी के बड़े-बड़े नेता भी हालिया वर्षों में एक-एक कर बसपा छोड़कर अन्य दलों में चले गए.
कुल मिलाकर मायावती अपने करियर में पहली बार संभवतया सबसे कमजोर दिख रही हैं. वहीं दूसरी तरफ नई पौध के रूप में युवा दलित चेहरे अधिक आक्रामकता के साथ सामने दिख रहे हैं. इसी कड़ी में अपने वोटबैंक को बचाने की कोशिशों के तहत मायावती के सहारनपुर दौरे से जोड़कर देखा जा रहा है.
सहारनपुर की घटनाओं के बाद दलितों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर बड़ा प्रदर्शन किया. उसमें भारी भीड़ की उपस्थिति थी. देश के अन्य राज्यों से भी दलित पहुंचे थे. गुजरात में दलितों के खिलाफ हुए उना कांड के बाद वहां के चर्चित चेहरे के रूप में उभरे जिग्नेश मेवानी भी जंतर-मंतर पर आए थे. इस सबका असर यह दिख रहा है कि हालिया दौर की इन घटनाओं के बीच अलग-अलग राज्यों में दलित नेताओं की एक नई पौध उभर रही है.
यह नया उभरता दलित नेतृत्व मायावती के लिए बड़ी चुनौती है. लिहाजा अपने परंपरागत वोटबैंक को बचाने की कवायद के रूप में मायावती की सहारनपुर यात्रा को देखा जा रहा है. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि मायावती का वोटबैंक अब दरकने लगा है. कभी दलितों की कद्दावर नेता मानी जाने वाली मायावती की पार्टी बसपा का हालिया यूपी विधानसभा चुनाव में लचर ही रहा. पार्टी राज्य की 403 सीटों में से महज 19 सीटें जीत पाई. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का खाता नहीं खुला. इस पार्टी के बड़े-बड़े नेता भी हालिया वर्षों में एक-एक कर बसपा छोड़कर अन्य दलों में चले गए.
कुल मिलाकर मायावती अपने करियर में पहली बार संभवतया सबसे कमजोर दिख रही हैं. वहीं दूसरी तरफ नई पौध के रूप में युवा दलित चेहरे अधिक आक्रामकता के साथ सामने दिख रहे हैं. इसी कड़ी में अपने वोटबैंक को बचाने की कोशिशों के तहत मायावती के सहारनपुर दौरे से जोड़कर देखा जा रहा है.
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