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This Article is From May 30, 2016

सुशील मोदी को राज्य सभा टिकट न देने के पीछे आखिर क्या है राज?

सुशील मोदी को राज्य सभा टिकट न देने के पीछे आखिर क्या है राज?
सुशील कुमार मोदी (फाइल फोटो)
पटना: भारतीय जनता पार्टी ने राज्य सभा के लिए उमीदवारों की हर राज्य से अपनी पूरी सूची जारी कर दी हैं। सबसे चौंकाने वाला नाम रहा बिहार से गोपाल नारायण सिंह का है। गोपाल नारायण सिंह भले बिहार भाजपा के एक जमाने में अध्यक्ष रहे हों लेकिन सब जानते हैं कि इस बार बिहार से उनके सबसे कद्दावर नेता सुशील मोदी का राज्य सभा जाना तय माना जा रहा था। उनकी उम्मीदवारी को नज़रंदाज कर गोपाल नारायण सिंह, जो एक-दो बार नहीं बल्कि आठ बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं, का चयन निश्चित रूप से लोगों को हैरान करने वाला है।

मोदी को राज्य सभा का टिकट न देने के पीछे निश्चित रूप से बिहार में पार्टी का वह बड़ा तबका है जो मोदी से किसी न किसी कारण से नाराज़ रहता है। उन लोगों के अभियान का यह परिणाम है। इसके साथ ही इस निर्णय से एक साफ संदेश गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह फिलहाल दिल्ली में सुशील मोदी की सक्रियता नहीं चाहते। इसके पीछे कई तर्क हैं, जिनमें प्रमुख है बिहार में चुनाव में हार के बाद समीक्षा के लिए हुई बैठकों में अधिकांश का निष्फल होना। केंद्रीय नेतृत्व ने चुनाव की कमान संभाली थी और राज्य के नेताओं की सलाह को  नज़अंदाज किया। इसके कारण महागठबंधन को विजय मिली। इसमें सच्चाई हो सकती है लेकिन अमित शाह और उनके समर्थकों को लगा कि जानबूझकर उनके ऊपर ठीकरा फोड़ा जा रहा है और हर जीत का श्रेय लेने वाली टीम अमित शाह फिलहाल हार की जिम्मेदारी से दूर रहना चाहती है।                                  

इस बात से सुशील मोदी के कट्टर आलोचक भी इंकार नहीं कर सकते कि बिहार में पार्टी को खड़ा करने से लेकर आज तक हर मुद्दे पर सक्रिय रखने में स्वर्गीय कैलाशपति मिश्रा के बाद किसी एक नेता का योगदान है तो वह हैं सुशील मोदी। मोदी ने छात्र जीवन से लेकर विधान सभा के अंदर पार्टी के हर संघर्ष, आंदोलन और मोर्चे का नेतृत्व किया है। खासकर विधान सभा के अंदर और बाहर लालू यादव, राबड़ी देवी के दिनों में जैसे एक के बाद एक कई घोटाले उजागर किए वे उन्हें सत्ता से बाहर करने में एक महत्वपूर्ण कड़ी रहे। बाद के दिनों में भी जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी तो  न केवल वे नीतीश के काबिल मंत्रियों में एक थे बल्कि उन्होंने गठबंधन में काफी गांठ भी नहीं पड़ने दी, भले इसके लिए उन्हें अपनी पार्टी के अंदर और बाहर खलनायक बनाया गया।

नीतीश कुमार के साथ सम्बंध टूटने के बाद भी आक्रामक विपक्ष की भूमिका में मोदी ने पार्टी को बनाए रखा। इससे पार्टी को लोक सभा चुनाव में पूरा लाभ मिला। विधान सभा चुनाव में यह रहस्य किसी से छिपा नहीं कि पार्टी में माइक्रो और मैक्रो दोनों तरह का चुनाव प्रबंधन खुद अमित शाह ने संभाल रखा था। यह बात अलग है कि भाजपा हो या विरोधी दलों के नेता, सब जानते हैं कि सुशील मोदी  के बिना बिहार की राजनीति की कल्पना करना फिलहाल तो निरर्थक है।

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