वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ सिर्फ 7300 वोट से बमुश्किल चुनाव जीत पाये थे.
नई दिल्ली:
आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्मदिन है. देश-दुनिया में हिंदुत्व के 'फायर ब्रांड' नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले योगी आदित्यनाथ यूं ही यहां तक नहीं पहुंचे. इसके पीछे एक लंबी कहानी है. योगी आदित्यनाथ ने भले ही भाजपा के टिकट से अपनी सियासी पारी की शुरुआत की हो, लेकिन उनकी 'हिंदुत्ववादी' छवि के पीछे उन्ही के संगठन हिंदू युवा वाहिनी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. हिंदू युवा वाहिनी का गठन ऐसे ही नहीं हुआ था. इसके पीछे दिलचस्प किस्सा है और एक सबक, जो योगी आदित्यनाथ को वर्ष 1999 के लोकसभा चुनावों में मिला था. इन चुनावों की बात करने से पहले आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं. ये साल था 1998 और गोरखपुर की राजनीति में मजबूत दखल रखने वाले गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ ने स्वास्थ्य कारणों से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया और उन्होंने योगी आदित्यनाथ को आगे किया. योगी आदित्यनाथ के लिए यह चुनाव इतना आसान नहीं था. तमाम विपक्षी दल उनके खिलाफ ताल ठोंक रहे थे. जिसमें समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार जमुना प्रसाद निषाद सबसे मजबूत नजर आ रहे थे.
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बहरहाल, गोरक्षपीठ की क्षत्रछाया में योगी आदित्यनाथ यह चुनाव जीतने में कामयाब रहे, लेकिन जीत का अंतर सिर्फ 26 हजार के आसपास था. वर्ष 1999 में एक बार फिर चुनाव हुए और इस बार योगी आदित्यनाथ को दोबारा भाजपा ने टिकट दिया. इस बार भी उनके सामने सपा के जमुना प्रसाद निषाद मजबूती से ताल ठोंक रहे थे. कहने को तो भाजपा के तमाम कद्दावर नेता योगी के लिए चुनाव प्रचार में उतरे थे, लेकिन अंदरखाने योगी आदित्यनाथ को लेकर उन्हीं की पार्टी में उत्साह नहीं था. चुनाव परिणामों में इसका असर देखने को मिला उस चुनाव में योगी आदित्यनाथ सिर्फ 7300 वोट से बमुश्किल चुनाव जीत पाये. चुनाव नतीजों से योगी आदित्यनाथ को सबक मिला और उन्हें समझ में आ गया कि अगर गोरखपुर में मजबूत पकड़ बनानी है तो एक संगठन चाहिये और 'हिन्दू युवा वाहिनी' के रूप में एक नये संगठन ने जन्म लिया.
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वर्ष 2002 में उन्होंने हिन्दू युवा वाहिनी बनाई और पहले इस संगठन ने गोरखपुर में अपनी पैठ बढ़ाई. फिर धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में इसका विस्तार हुआ. 1999 के बाद के चुनावों में योगी आदित्यनाथ की जीत का अंतर बढ़ता गया. वर्ष 2009 और 2014 में तो उनकी जीत का अंतर दो लाख से ज्यादा था. राजनीतिक गलियारों में अक्सर इस बात की भी चर्चा होती है कि हिन्दू युवा वाहिनी के बूते किस तरह योगी आदित्यनाथ ने तमाम मौकों पर भाजपा से बगावत का सुर भी बुलंद किया. और उत्तर प्रदेश के CM की गद्दी पर पर उन्हें पहुंचाने में हिंदू युवा वाहिनी की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
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बहरहाल, गोरक्षपीठ की क्षत्रछाया में योगी आदित्यनाथ यह चुनाव जीतने में कामयाब रहे, लेकिन जीत का अंतर सिर्फ 26 हजार के आसपास था. वर्ष 1999 में एक बार फिर चुनाव हुए और इस बार योगी आदित्यनाथ को दोबारा भाजपा ने टिकट दिया. इस बार भी उनके सामने सपा के जमुना प्रसाद निषाद मजबूती से ताल ठोंक रहे थे. कहने को तो भाजपा के तमाम कद्दावर नेता योगी के लिए चुनाव प्रचार में उतरे थे, लेकिन अंदरखाने योगी आदित्यनाथ को लेकर उन्हीं की पार्टी में उत्साह नहीं था. चुनाव परिणामों में इसका असर देखने को मिला उस चुनाव में योगी आदित्यनाथ सिर्फ 7300 वोट से बमुश्किल चुनाव जीत पाये. चुनाव नतीजों से योगी आदित्यनाथ को सबक मिला और उन्हें समझ में आ गया कि अगर गोरखपुर में मजबूत पकड़ बनानी है तो एक संगठन चाहिये और 'हिन्दू युवा वाहिनी' के रूप में एक नये संगठन ने जन्म लिया.
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वर्ष 2002 में उन्होंने हिन्दू युवा वाहिनी बनाई और पहले इस संगठन ने गोरखपुर में अपनी पैठ बढ़ाई. फिर धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में इसका विस्तार हुआ. 1999 के बाद के चुनावों में योगी आदित्यनाथ की जीत का अंतर बढ़ता गया. वर्ष 2009 और 2014 में तो उनकी जीत का अंतर दो लाख से ज्यादा था. राजनीतिक गलियारों में अक्सर इस बात की भी चर्चा होती है कि हिन्दू युवा वाहिनी के बूते किस तरह योगी आदित्यनाथ ने तमाम मौकों पर भाजपा से बगावत का सुर भी बुलंद किया. और उत्तर प्रदेश के CM की गद्दी पर पर उन्हें पहुंचाने में हिंदू युवा वाहिनी की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
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