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क्रिकेट की तर्ज पर नापतोल, बिहार चुनाव में कैंडिडेट चुनने के लिए महागठबंधन की मैराथन बैठकों की ; इनसाइड स्टोरी

महागठबंधन के नेताओं की मानें तो इस बार उनके सीटों के बंटवारे में अति पिछड़ा समुदाय को अधिक तरजीह दी जाएगी. जैसे उदाहरण के लिए सहरसा की सीट ले लिजिए. कहा जा रहा है कि यह सीट महागठबंधन के सबसे नए घटक दल आईआईपी(इंडिया इनक्लूसिव पार्टी) के आईपी गुप्ता को दी जाएगी. वजह है कि यहां तांती जाति के करीब 35 हजार वोट हैं 65 हजार यादव और 55 हजार मुस्लिम.

क्रिकेट की तर्ज पर नापतोल, बिहार चुनाव में कैंडिडेट चुनने के लिए महागठबंधन की मैराथन बैठकों की ; इनसाइड स्टोरी
  • महागठबंधन की बैठक में सीटों के बंटवारे के साथ-साथ उम्मीदवारों के नाम पर भी विस्तार से चर्चा होती है.
  • अति पिछड़ी जातियों को अधिक प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की जा रही है. उनकी आबादी के अनुपात में पिछली बार कम था.
  • सहरसा सीट महागठबंधन के नए घटक दल इंडिया इनक्लूसिव पार्टी के आईपी गुप्ता को दिए जाने की संभावना है.
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पटना:

महागठबंधन में सीटों के बंटवारे पर घटक दलों की लगातार बैठक हो रही है और ये बैठक कई कई घंटों तक चलती है. सबसे अहम है कि आखिर इस बैठक में होता क्या है? दरअसल, इस बैठक में केवल सीटों पर बंटवारे पर ही बात नहीं होती है, बल्कि सभी दलों से कहा जाता है कि अपने अपने उम्मीदवारों का नाम भी बताएं. फिर उस उम्मीदवार के नाम पर चर्चा होती है और फिर ये देखा जाता है कि इस क्षेत्र से जातिगत समीकरण क्या है और कौन सी जाति का उम्मीदवार यहां से सही रहेगा और इस जाति के उम्मीदवार को टिकट देने से बाकी क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा.

इतना नहीं, हो सकता है कि गठबंधन के दल यदि अगल बगल की सीट लड़ रहे हैं तो दोनों क्षेत्र में एक ही जाति का उम्मीदवार हो. इन सब बारिकियों को ध्यान में रख कर ही बातचीत होती है. ऐसा नहीं है कि सभी घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो गया और सब अपनी मनमानी से उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दे. यहां जो सीट आप चाह रहे हैं, वहां उसपर कौन लड़ेगा यह भी आपको बैठक में बताना पड़ेगा, फिर उस पर चर्चा हो कर नाम तय होगा जो नाम फिर पार्टी अपने फोरम में मुहर लगाएगी. यदि आप उम्मीदवार बदलना चाहते हैं तो आपको गठबंधन के दलों को उस उम्मीदवार का नाम बताना होगा.

अति पिछड़ी जातियों की उम्मीदवारों  

इस बार महागठबंधन के दल यह कोशिश कर रहे हैं कि अति पिछड़ी जातियों में से उम्मीदवारों को ज्यादा टिकट दिया जाए. पिछली बार यह प्रतिशत 10 फीसदी ही था जो अति पिछड़ी की 36 फीसदी आबादी से काफी कम था. अभी तक बिहार की अति पिछड़ी जातियां नीतीश कुमार को वोट करती रही हैं और महागठबंधन खास कर राहुल गांधी को लग चुका है कि बिना अति पिछड़ी जातियों को जोड़े सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता है. यही वजह है कि महागठबंधन ने पटना में एक अति पिछड़ा सम्मेलन भी किया और उनके लिए अलग से घोषणाएं भी की.

आईपी गुप्ता के दल को टिकट देने की तैयारी

महागठबंधन के नेताओं की मानें तो इस बार उनके सीटों के बंटवारे में अति पिछड़ा समुदाय को अधिक तरजीह दी जाएगी. जैसे उदाहरण के लिए सहरसा की सीट ले लिजिए. कहा जा रहा है कि यह सीट महागठबंधन के सबसे नए घटक दल आईआईपी(इंडिया इनक्लूसिव पार्टी) के आईपी गुप्ता को दी जाएगी. वजह है कि यहां तांती जाति के करीब 35 हजार वोट हैं 65 हजार यादव और 55 हजार मुस्लिम.

इस बार हर सीट का डाटा एनालिसिस किया जाता है 

यदि गुप्ता को यह टिकट दे दिया जाता है जिसकी चर्चा है और यादव मुस्लिम एकजुट रहता है तो महागठबंधन यह सीट हार ही नहीं सकती. बिहार का चुनाव इस बार कुछ इस तरह से लड़ा जा रहा है, जैसे क्रिकेट में वीडियो और डाटा एनालिसिस किया जाता है. हर बॉलर और बल्लेबाज का किया जाता है. वैसे ही इस बार हर सीट का डाटा एनालिसिस किया जाता है वो दिन गए जब आप अपनी मर्जी से या अपने निजी अनुभव या बिना पुख्ता आंकडों के टिकट बांट देते थे. अब सब छोटी छोटी जातियों के अपनी महत्वाकांक्षा हो गई है वो अब अपनी भागीदारी और हिस्सेदारी चाहती है, जिसके लिए ये जातियां भी अपने लिए टिकट मांग रही है.

क्या बिहार में आएगा अखिलेश का पीडीए वाला फॉर्मूला

यही वजह है कि  टिकट की सबसे अधिक मांग अति पिछड़ी जातियों के नेताओं ने की है. जिस तरह सहरसा का टिकट बांटे जाने की चर्चा है यदि यही काम बाकी जगह भी महागठबंधन ने कर दिया तो बिहार चुनाव का स्वरूप ही बदल जाएगा. इस बार बिहार चुनाव का मंत्र है. अति पिछड़ी जातियों को आगे कर के चुनाव लड़ना एक ऐसा फॉर्मूला जो लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव अपना चुके हैं और सफलता भी पाई है. पीडीए यानि पिछड़ा,दलित और अल्पसंख्यक इसका ही एक स्वरूप महागठबंधन बिहार में बनाने की कोशिश कर रहा है एम वाई के साथ अति पिछड़ा और रविदासी का गठजोड़.यदि ये एक साथ आ गए तो जीतने वाला गठजोड़ बनेगा.

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