मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस विधेयक को आदर्श, सशक्त और प्रभावशाली बताते हुए कहा कि इसमें किसी के निकल बचने की कोई गुंजाइश नहीं है।
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पटना:
बिहार विधानसभा ने बुधवार को ध्वनिमत से लोकायुक्त विधेयक 2011 को पारित कर दिया। बिहार लोकायुक्त विधेयक 2011 में कुछ संशोधन किए जाने और उसे आगामी मार्च में बजट सत्र के दौरान पेश किए जाने के विपक्ष के अनुरोध को विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव द्वारा पेश विधेयक को ध्वनिमत से पारित किए जाने की घोषणा की। इससे पूर्व लोकायुक्त विधेयक को लेकर सदन में विपक्षी सदस्यों द्वारा अपनी राय रखे जाने के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस विधेयक को आदर्श, सशक्त और प्रभावशाली बताते हुए कहा कि इसमें किसी के निकल बचने की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने कहा कि इसमें वह सारे प्रावधान किए गए जिसके तहत लोकायुक्त स्वतंत्रता के साथ न्यायसंगत ढंग से बिना किसी रागद्वेष के वह अपना काम निष्पादित कर सकेंगे और उन्हें हर प्रकार के संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। नीतीश ने कहा इससे ज्यादा सशक्त लोकायुक्त नहीं है, उनकी समझ से संसद को अपना कानून अगर उसमें लोकायुक्त का प्रवाधान कर रहे हैं तो उन्हें हमारे इस विधानमंडल के द्वारा पारित किए जाने वाले कानून को भी एक नजर देख लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में लोकायुक्त के चयन अथवा बहिर्गमन में कार्यपालिका (नौकरशाह और मंत्री) की कोई भूमिका नहीं और इसके अगले तीस दिनों के बाद प्रभावी हो जाने से हम सभी एक नये पारदर्शिता के युग में प्रवेश कर रहे हैं।नीतीश ने कहा, राजनीति करने वालों को भी स्वयं को जांच के दायरे में लाना चाहिए और इस विधेयक के जरिए ऐसा कर दिया गया है।...हम लोग तो अपना काम करेंगे जनता की सेवा करेंगे, यदि कोई पाप किया है तो सजा दे दो ताकि जनता की सेवा करने वाली जमात बदनाम न हो। उन्होंने कहा एक सीमा के भीतर हम एक-दूसरे पर वार करेंगे लेकिन कुछ ऐसी चीजें हैं। हम लोगों को संयुक्त रूप से सोचना चाहिए वह है राजनीति की बिगडती और गिरती हुई स्थिति, विश्वसनीयता का संकट। नीतीश ने कहा मैंने इसलिए किया है कि आज राजनीति करने वाले की जमात बदनाम न हो और यहीं (बिहार) से इसकी शुरूआत होगी कि राजनीति करने वाले लोग भी इस तरह का काम कर सकते हैं, अपने को भी जांच के दायरे में ला सकते हैं तो फिर से विश्वास जागेगा कि लोकतंत्र से बेहतर कोई शासनतंत्र नहीं हो सकता है। लोकायुक्त विधेयक 2011 की चर्चा करते हुए नीतीश ने कहा कि बिहार में लोकायुक्त की संस्था बहुत पुरानी है। वह यहां लोकायुक्त को व्यापक और मजबूत बनाकर उसके दायरे में मुख्यमंत्री को लाना चाहते थे। उन्होंने कहा कि इसको लेकर आधिकारिक रूप से तैयार ड्राफ्ट को आम राय हासिल करने के लिए वेबसाइट पर डाला गया और 130 राय प्राप्त हुई, जिसके बाद उपमुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रियों का एक समूह गठित किया गया जो इन सारी चीजों को देखें तथा सर्वदलीय बैठक के बाद प्रस्ताव मंत्रिमंडल के समक्ष लाया गया उसे स्वीकृति प्रदान की गयी। सिद्दीकी द्वारा लोकायुक्त की चयन समिति में बिहार विधान परिषद के सभापति और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष को शामिल किए जाने गलत ठहराये जाने पर नीतीश ने कहा कि चयन समिति में सभापति और अध्यक्ष विधायिका के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा हमने पूरी कार्यपालिका (नौकरशाह एवं मंत्री) को उससे अलग कर दिया है, उनका चयन एवं बहिर्गमन में कोई भुमिका नहीं है। नीतीश ने कहा कि बिहार के लोकायुक्त को विधानमंडल से संबंधित मामलों को छोड़कर सभी मामलों को सुनने का अधिकार दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसके दायरे में मुख्यमंत्री से लेकर मुखिया को इसको दायरे में लाया गया है। इसे संविधान के दायरे में बहुत ही कठोर बनाया गया है, जिससे किसी के बच निकलने की कोई गुंजाइश नहीं है। नीतीश ने कहा कि बिहार के लोकायुक्त को यह भी अधिकार होगा कि वह किसी ठेका अथवा लाइसेंस की जांच कर सकते हैं और अगर ठीक नहीं मानते तो उसे वे रद्द कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में लोकायुक्त के चयन से लेकर उन्हें हटाए जाने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया है और उम्मीदवारों के चयन में हेरफेर की कोई आशंका नहीं है, क्योंकि सारी जानकारी को वेबसाइट पर उपलब्ध होगी। नीतीश ने कहा कि लोकायुक्त के लिए सर्च कमेटी से चयन समिति तक की पूरी पारदर्शिता बरती जाएगी तथा चयन में सर्च कमेटी के जो भी सदस्य एतराज करेंगे उस पर विचार किया जाएगा। बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी द्वारा यह कहे जाने कि पिछले छह सालों से सरकार क्या कर रही थी जो आज उसे पारित किए जाने में जल्दीबाजी कर रही है, इस पर मुख्यमंत्री नीतीश ने कहा ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आज ही जगे हैं, जो भी उपलब्ध साधन है उसके जरिए भ्रष्टाचार पर रोका है। उन्होंने कहा, हम लोगों ने भ्रष्टाचार के मामले में कतई नहीं सहने की नीति अख्तयार की है, पिछले कार्यकाल के दौरान 2009 में इसी सदन ने विशेष न्यायालय अधिनियम पारित किया था और कानून बनने के बाद वर्तमान कार्यकाल में इसके तहत अब कार्रवाई जारी है।