- बिहार चुनाव में सभी प्रमुख नेताओं ने जमकर प्रचार किया, कुल मिलाकर एक हजार से अधिक रैलियां हुईं
- प्रधानमंत्री, राहुल गांधी, नीतीश कुमार समेत कई बड़े नेताओं ने सड़क मार्ग से भी चुनावी सभाएं
- एनडीए और महागठबंधन के कई नेताओं ने सैकड़ों सभाएं कीं, जिसमें चिराग पासवान और तेजस्वी यादव सबसे आगे थे
बिहार में दूसरे चरण का प्रचार खत्म होने के बाद अब यह आकलन किया जा रहा है कि सभी दलों ने अपनी-अपनी जो ताकत झोंकी है उसका परिणाम क्या होगा. बिहार में यदि सभी प्रमुख नेताओं की रैलियों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो यह एक हजार से अधिक है.कहने का मतलब है कि जिस बिहार चुनाव के लिए यह कहा जा रहा था कि कम वक्त मिला है,चुनाव गर्माया नहीं है,छठ की वजह से चुनाव प्रचार जोड़ नहीं पकड़ रहा है,दो ही चरण का चुनाव है वैगरह-वैगरह.मगर आंकड़े कुछ और ही कहते हैं दरअसल सभी राजनीतिक दलों ने पूरा जोड़ लगा दिया इस चुनाव में. प्रधानमंत्री ने 14 सभाएं की तो राहुल गांधी ने 16.
पुराने तेवर में दिखे नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री ने 84 मीटिंग की जिसमें 11 सड़क मार्ग से. सभी नेताओं ने सड़क मार्ग से सभांए की क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान 2-3 दिन मौसम खराब रहा जब हेलीकॉप्टर उड़ नहीं पाए.एनडीए की तरफ से तमाम बड़े नेताओं के साथ साथ बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी जम कर रैलियां की है जिसमें उत्तरप्रदेश ,दिल्ली ,मध्यप्रदेश और असम के मुख्यमंत्री शामिल हैं.

एनडीए की तरफ से प्रधानमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्टार कैंपेनर रहे नीतीश कुमार ने करीब एक हजार किलोमीटर की सड़क यात्रा भी की है..लेकिन केन्द्रीय गृह मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने भी कई बार पटना और अन्य जगहों पर रात्रि विश्राम किया.गृहमंत्री अमित शाह ने 24,रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 13 और बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने 11 रैलियों को संबोधित किया.इसके अलावा दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता कई नामांकन में शामिल हुईं और कुल मिलाकर 18 मीटिंग की. उसी तरह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बिहार में बहुत डिमांड थी उन्होंने 30 रैलियां और एक रोड शो किया , मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा ने भी रैलियों को संबोधित किया.
एनडीए के तरफ से चिराग पासवान ने भी पूरी ताकत झोंक दी चिराग की पार्टी भले ही 29 सीटों पर लड़ रही थी मगर चिराग ने 186 सभांए की तो जीतन राम मांझी ने 32 और उपेन्द्र कुशवाहा ने 46 जन सभाओं को संबोधित किया दोनों केवल 6-6 सीटों पर ही चुनाव लड़ रहे हैं.

राहुल गांधी ने कितनी रैली की?
जबकि महागठबंधन की तरफ से राहुल गांधी ने 16 और प्रियंका गांधी ने 13 सभाओं को संबोधित किया वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 3 रैली की. महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी यादव ने सबसे ज्यादा 183 सभाएं की 55 घंटे हेलिकॉप्टर से यात्रा की ,एक दिन में 18 सभाएं भी की,कई रोड शो किए.आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल और आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने भी 50-50 सभाएं की हैं.
महागठबंधन और वीआईपी पार्टी के नेता मुकेश सहनी ने 161 सभाओं को संबोधित किया. महागठबंधन के एक और प्रमुख घटक वाम मोर्चे के तरफ से माले के नेताओं ने 149, सीपीआई के 113 तो सीपीएम के नेताओं ने 78 सभाओं को संबोधित किया. इस चुनाव का सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि समाजवादी पार्टी जिसका बिहार में एक भी उम्मीदवार नहीं था उसके नेता अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए 25 रैलियां की है, उन्हीं की पार्टी की सांसद इकरा हसन ने भी सीमांचल में कुछ रैलियां की है.

इमरान प्रतापगढ़ी भी थे डिमांड में
कांग्रेस के तरफ से इमरान प्रतापगढ़ी के सभाओं की भी बहुत मांग थी क्योंकि वो अच्छा बोलते हैं और उनके भाषण में शेरों शायरी भी रहती है. इमरान प्रतापगढ़ी ने भी 55 सभाओं को संबोधित किया जिसमें रोड शो भी है..वहीं जनसुराज के नेता प्रशांत किशोर लगातार तीन महीने से सभाएं और रोड शो कर रहे है मगर चुनाव की घोषणा के बाद से 160 रैलियों को संबोधित कर चुके हैं.
यहां जानिए सबसे अधिक रैली करने वाले 5 प्रमुख नेता कौन-कौन थे
| नाम | रैली की संख्या |
| चिराग पासवान | 186 |
| तेजस्वी यादव | 183 |
| मुकेश सहनी | 161 |
| प्रशांत किशोर | 160 |
| नीतीश कुमार | 84 |
क्या थे चुनावी मुद्दे?
अब बात करते हैं मुद्दों की बिहार का यह चुनाव शुरू हुआ था वोट चोरी को लेकर फिर प्रधानमंत्री की मां को लेकर कहे गए अपशब्द से होता हुआ जब चुनाव की घोषणा हुई तब नौकरी रोजगार पर बात आई तेजस्वी ने पढ़ाई,दवाई,सिंचाई की बात शुरू की मगर बाद में ओसामा और कट्टा पर आकर खत्म हुई. नेताओं ने एक दूसरे पर निजी हमले किए एक दूसरे के परिवार को घसीटा,एक दूसरे को देशद्रोही,झूठा,भ्रष्ट और अपराधियों का संरक्षक बताया यानि अमर्यादित बयानों की भरमार रही और यह सब मंच से लेकर सोशल मीडिया के रील्स तक में छाया रहा.
बिहार के इस चुनाव में जो शब्द सबसे अधिक बार बोला गया वो था जंगलराज फिर महाजंगलराज भी आया वहीं विपक्ष ने जुमलेबाज शब्द का भी इस्तेमाल किया. बिहार का इस बार का चुनाव प्रचार कनपट्टी पर कट्टा से लेकर सिक्सर की छह गोली छाती में मार देंगे के लिए भी याद किया जाएगा.यही नहीं अप्पू,पप्पूऔर टप्पू जैसी टिप्पणियों का उपयोग हुआ.चुनाव के बीच में बिहार का महापर्व छठ भी आया तो चुनाव प्रचार में भी उसका जिक्र हुआ और छठी मैया के अपमान का मुद्दा उठा तो छठ के लिए ट्रेनों में ठूंस ठूंसकर लौटते लोगों का भी जिक्र हुआ.वक्फ से लेकर नमाजवादी तक कह कर वोट मांगे गए.

गायब रहे असली मुद्दे
मगर पूरे चुनाव में बिहार के असली मुद्दे गायब रहे नौकरियों के वादे दोनों तरफ से किए गए मगर रोजगार,पलायन,शिक्षा,स्वास्थ्य,किसानों की हालत,उद्योग और कानून व्यवस्था पर अधिक चर्चा नहीं हुई.किसी ने यह नहीं सेचा कि पिछले 20 साल के शासन का कोई रिपोर्ट कार्ड दिया जाए .यह बिहार का दुर्भाग्य है नेता अपनी बात कह कर चले जाते हैं और असली मुद्दा गुम हो जाता है.बिहार के लोग बाहर जाकर खूब सफल होते हैं मगर अपने घर में बदहाली के लिए मजबूर हैं.बिहार का समाज आज भी जातियों में बंटा है जिसका फायदा राजनीतिक दल उठाते हैं और अंत में बिहार के लोग अपने आप को ठगा महसूस करते हैं
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