अठारहवीं लोकसभा के चुनाव के बाद अब बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार ने सत्ता संभाल ली है. नरेंद्र मोदी की यह सरकार जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के सहयोग से चल रही है. इन दोनों दलों की बिहार और आंध्र प्रदेश में सरकार है.केंद्र में सरकार बनते ही बिहार और आंध्र प्रदेश ने स्पेशल स्टेटस की मांग शुरू कर दी है. इन दोनों के साथ ही बीजू जनता दल भी ओडिशा के लिए स्पेशल स्टेटस की मांग कर रहा है.
कबसे स्पेशल स्टेटस मांग रहे हैं बिहार और आंध्र प्रदेश
ये तीनों राज्य पिछले काफी समय से स्पेशल स्टेटस की मांग कर रहे हैं. बिहार 2000 में झारखंड के अलग होने के बाद से ही विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहा है. वहीं आंध्र प्रदेश भी 2014 में तेलंगाना के अलग होने के बाद से ही विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है.इसी तरह से ओडिशा में प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए यह मांग काफी पहले से कर रहा है.आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर 2018 में एनडीए से अलग हो चुके हैं.
संविधान में किसी राज्य का विशेष दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है.लेकिन 1969 में गाडगिल कमेटी की सिफारिश पर आधारित विशेष राज्य के दर्जे की कल्पना साकार हुई. उस साल नगालैंड, असम और जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया.
क्या कहना है केंद्र सरकार का
नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली ने 2015 में कहा था कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद से स्पेशल राज्य का दर्जा देने का युग खत्म हो चुका है. इसके बाद से सरकार स्पेशल कैटेगरी शब्द का इस्तेमाल करने से भी अनिच्छुक है.पूर्वोत्तर के आठ राज्यों और तीन हिमालयन राज्यों (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर को)को ही इस कैटेगरी से फंड मिलता है.जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है.
अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक अगर बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए तो उन्हें कुछ अतिरिक्त केंद्रीय सहायता और कर्ज मिलेगा.लेकिन इससे उनकी समस्याओं का समाधान नहीं होगा.इन दोनों राज्यों की समस्याएं अलग-अलग हैं. तेंलगाना के अलग होने के बाद बड़ा राजस्व पैदा करने वाले दो जिले हैदराबाद और रंगा रेड्डी आंध्र प्रदेश के हाथ से निकल गए. इससे उस पर भारी वित्तीय दबाव है. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेट का दर्जा देने का वादा किया था, लेकिन इससे पहले की वह अपना वादा पूरा कर पाती कांग्रेस की सरकार ही चली गई.
अपना बजट भी खर्च नहीं कर पा रहे हैं बिहार और आंध्र प्रदेश
वहीं बिहार की समस्या अलग किस्म की है. उसकी समस्या प्रशासनिक अक्षमता और उद्योगों और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की है. ये दोनों राज्य इसके अभाव में बजट को भी ठीक से खर्च नहीं कर पा रहे हैं.सीएजी के मुताबिक बिहार बजटीय आवंटन को भी ठीक से खर्च नहीं कर पा रहा है.वित्त वर्ष 2023 में वह राजस्व खर्चा का 51 हजार 722 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर पाया.यह बजट का 22 फीसदी के बराबर है.इसी तरह वह कैपिटल बजट का 14 हजार 786 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर पाया.यह उसके कैपिटल बजट के 24 फीसदी के बराबर है.वह 2020 में 78 हजार 122 करोड़, 2021 में 75 हजार 926 करोड़ और 2022 में 70 हजार 83 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर पाया. बिहार वित्त वर्ष 2023 में 66 हजार 508 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर पाया. यह रकम उस राशि से कम है जो उसे स्पेशल कैटेगरी का दर्जा मिलने के बाद उसे मिलेगी.
वहीं आंध्र प्रदेश की समस्या बिहार से अलग नहीं है.वह वित्त वर्ष 2023 में अपने बजटीय प्रावधान का 21 फीसदी रकम खर्च कर पाने नाकाम रहा. यह रकम 92 हजार 567 करोड़ के बराबर है. आंध्र जो बजट खर्च नहीं कर पाया वो स्वास्थ्य, शहरी विकास, समाज कल्याण, पिछड़ा वर्ग कल्याण और सिंचाई जैसे विभागों के हैं.
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