मध्य प्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह और बीजेपी की प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर के बीच हो रहे मुकाबले पर अब पूरे देश की नजर है. शुरुआत में ऐसा लग रहा था कि प्रज्ञा ठाकुर के उतरने से दिग्विजय सिंह बैकफुट पर आ गए हैं और उन्होंने मीडिया के सामने पूरी तरह से चुप्पी साध ली थी. लेकिन मुंबई हमले में शहीद पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे पर बयान देकर प्रज्ञा ठाकुर ने एक तरह से खुद ही अपना नुकसान कर लिया. जेल में हुए कथित अत्याचार की कहानी बताते-बताते उन्होंने कह दिया कि उन्हीं के श्राप की वजह से हेमंत करकरे की मौत हुई है. उनके उस बयान की लोगों ने कड़ी निंदा करनी शुरू कर दी और बीजेपी बैकफुट में आ गई. नतीजा यह हुआ कि पार्टी के बड़े नेताओं ने जाकर प्रज्ञा ठाकुर को समझाया कि क्या बोलना है और क्या नहीं. हालांकि बीजेपी की ओर से उन्हें इस बात की पूरी छूट दी गई कि वह उनके साथ हुए जेल में कथित अत्याचार की कहानी खूब सुनाएं. आपको बता दें कि भोपाल सीट बीजेपी का गढ़ माना जाता है आखिरी चुनाव कांग्रेस ने यहां पर 1984 में जीता था. लेकिन इस बार प्रज्ञा ठाकुर की राह आसान नहीं है और इसकी सिर्फ एक नहीं कई वजहे हैं.
8 बड़ी बातें
- संघ की तरफ से एक तरह से प्रज्ञा को थोपा गया. बीजेपी पालियामेंट्री पार्टी उन्हें प्रत्याशी बनाने के मूड में नहीं था. ऐसे में बीजेपी से जुड़ा कार्यकर्ता साध्वी के प्रचार में पूरी तरह जुट नहीं पा रहा है.
- विवादित बयानों ने स्थिति और खराब कर दी है. मुंबई हमले में शहीद हेमंत करकरे को लेकर जो बयान दिया, उस पर पार्टी की छीछालेदार हुई. पार्टी ने उनकी राय को निजी बताकर पल्ला झाड़ा लेकिन नुकसान जो होना था, वह हो चुका था. बाद में प्रज्ञा को बयान वापस लेना पड़ा.
- हार्डकोर हिंदुत्ववादी छवि वाली प्रज्ञा ने बाबरी ढांचा विध्वंस पर गर्व होने की बात कहकर अपने आपको उदारवादी मुस्लिम वोटरों और ट्रिपल तलाक मुद्दे को लेकर बीजेपी के समर्थन में आई मुस्लिम महिलाओं का समर्थन भी गंवा सकती हैं.
- भोपाल उत्तर विधानसभा सीट से बीजेपी की मुस्लिम प्रत्याशी ने तो खुले आम प्रज्ञा का प्रचार नहीं करने की बात कर चुकी हैं. वह मालेगांव ब्लास्ट मामले में उनके खिलाफ मुकदमा भी चल रहा है.
- कांग्रेस ने दिग्विजय को काफी पहले प्रत्याशी घोषित करके बढ़त ले ली थी. बीजेपी ने भोपाल से प्रत्याशी चयन में काफी वक्त लिया. बाद में प्रत्याशी घोषित किया गया तो विवादित छवि और मालेगांव और मक्का मजिस्द मामले में आरोपी होने के कारण स्थिति और खराब हुई.
- प्रज्ञा पर कार्यकर्ताओं की अनदेखी आरोप लग रहे हैं. हिंदुओं में भी कुछ हद तक उनको लेकर नाराजगी. उनका मानना है कि प्रज्ञा, असीमानंद जैसे लोगों ने हिंदू धर्म पर लोगों को अंगुली उठाने का मौका दिया.
- भले ही दिग्विजय की छवि मुस्लिम परस्त नेता की है, लेकिन राजनीतिक चातुर्य और लंबी सियासी अनुभव के कारण उन्हें प्रज्ञा के मुकाबले मजबूत माना जा रहा.
- प्रज्ञा को राजनीति का अनुभव नहीं है. छवि कट्टरवादी हिंदु की है. विरोधाभासी और विवादित बयानों के कारण माना जा रहा है कि बीजेपी के कई प्रदेश स्तर के नेता प्रज्ञा के पक्ष में खुलकर सामने नहीं आ रहे.