साल 2018 में बीजेपी लगातार कई उपचुनाव हार गई चुकी थी. राजस्थान की दो और उत्तर प्रदेश की गोरखपुर, फूलपुर जैसी सीटों के चुनाव परिणाम अगले साल यानी 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए खतरे के संकेत दे रहे थे. इसके बाद इसी साल दिसंबर में बीजेपी को कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पटखनी दे दी और वहां की सत्ता से पार्टी को उखाड़ फेंका. राहुल गांधी के किसानों की कर्जमाफी, बेरोजगारी के मुद्दों पर नारे कांग्रेस के काम आ रहे थे और विपक्ष को भी लगने लगा था कि लोकसभा चुनावों में पीएम मोदी को हराया जा सकता है. कांग्रेस ने एनडीए को टक्कर देने के लिए यूपीए को मजबूत करने का अभियान शुरू कर दिया और पार्टी की ओर से राहुल गांधी को पीएम पद का दावेदार बता दिया गया. इसी बीच प्रियंका गांधी की भी औपचारिक रूप से राजनीति में आ गई और उनको पार्टी महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई. साल 2019 शुरू होते ही सभी पार्टियां लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई थीं. लेकिन कांग्रेस की विपक्षी एकता की बात परवान नहीं चढ़ पा रही थी. बीजेपी का गिरता ग्राफ देख विपक्ष के सभी प्रमुख नेता भी प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे थे जिसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी प्रमुख थीं. उन्होंने बीजेपी के विरोध का मोर्चा अलग खोल रखा था और राहुल गांधी की अगुवाई को स्वीकार नहीं कर रही थीं.
साल 2019 की दूसरी बड़ी राजनीतिक घटना थी जब सपा और बीएसपी ने मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. लेकिन अखिलेश यादव के चाहने के बादभी मायावती ने कांग्रेस को गठबंधन में शामिल नहीं किया. कुल मिलाकर मैदान अब पूरी तरह से सज चुका था लेकिन विपक्षी एकता दूर की कौड़ी थी. इन सबके बीच कांग्रेस और राहुल गांधी ने राफेल, आतंकवाद, विदेश नीति, बेरोजगारी के मुद्दे को जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया और माहौल ऐसा लग रहा था कि बीजेपी चुनाव हारने वाली है. लेकिन बीजेपी जमीन पर उतनी कमजोर नहीं हुई थी जितनी वह मुद्दों के मामले में दिख रही थी. उसके करोड़ो कार्यकर्ता जिसमें संघ के स्वयंसेवक भी शामिल हैं, बंगाल से लेकर केरल तक जी जान लगा रखी थी और मोदी सरकार की आवास योजना, शौचालय और उज्ज्वला योजना का प्रचार-प्रसार करने में लगे थे. पीएम मोदी का भी यही संदेश था कि केंद्र की योजनाओं का प्रचार चुनाव में जीत दिला सकता है.
पुलवामा हमला
14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमला हो गया जिसमें 40 से ज्यादा जवान शहीद हो गए. सुरक्षाबलों पर अब तक यह सबसे बड़ा आतंकी हमला था. आतंकवाद पर सबक सिखा देने की बात करने वाली मोदी सरकार के लिए चुनाव से पहले यह घटना बहुत बड़ी चुनौती लेकर आया था और विपक्षी दलों ने सरकार पर सवाल उठाने शुरू कर दिए. पीएम मोदी अब पूरी तरह से निशाने पर थे और मोदी सरकार पूरी तरह से बैकफुट पर आ चुकी थी. हालांकि केंद्र सरकार की ओर से संकेत मिल रहे थे कि भारत की ओर से कार्रवाई हो सकती है.
ऑपरेशन बालाकोट
लोकसभा चुनाव का सारा फोकस पुलवामा हमले की ओर शिफ्ट हो चुका था और पूरा देश में पाकिस्तान को सबक सिखाने की आवाज उठ रही थी. इसी बीच 26 फरवरी को खबर आई कि रात 3 बजे भारतीय वायुसेना ने बड़ी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान में 100 किलोमीटर घुसकर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी कैंपों पर 1000 किलो के बम गिराये हैं. जानकारी के मुताबिक तड़के 3 बजे चलाए गए ऑपरेशन में एयरफोर्स के 12 मिराज फाइटर प्लेन शामिल थे. इस हमले में जैश के कैंप पूरी तरह तबाह हो गए हैं. सूत्रों के मुताबिक ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा है. इस खबर के आने के बाद सरकार की ओर से पीएम मोदी को एक सशक्त नेता की तौर पर पेश किया जाने लगा. भारतीय वायुसेना की कार्रवाई ने पूरे देश में 'राष्ट्रवाद' की लहर दौड़ गई.
सबूत के खेल में फंसा विपक्ष
बीजेपी ने ऑपरेशन बालाकोट और पायलट अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तान से दो दिन के अंदर छुड़ाने के पूरे वाकये को चुनावी मुद्दा बना था. अब बारी विपक्ष के बैकफुट पर जाने के थे. देश में अब बेरोजगारी और किसानों से जुड़े मुद्दों पर कोई बात करने को राजी नहीं था. इसी बीच कुछ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने ऑपरेशन बालाकोट की सफलता पर सवाल उठाने शुरू कर दिए और दावा किया गया जहां हमला हुआ है वहां किसी की भी मारे जाने की पुष्टि नहीं हुई. भारत में मुद्दे की तलाश कर रहे विपक्ष ने भी सबूत मांगने शुरू कर दिए. लेकिन इस बीच पाकिस्तान ने भी दावा किया कि भारतीय वायुसेना की कार्रवाई में कुछ नहीं हुआ है. बीजेपी ने सबूत मांग रहे नेताओं को पाकिस्तान का साथी बता दिया और विपक्ष इस पूरे मामले में फंसता नजर आया.
लोकसभा चुनाव नतीजे और 'राष्ट्रवाद'
ऑपरेशन बालाकोट के बाद देश में राष्ट्रवाद की लहर चल पड़ी और जिसका नतीजा यह रहा कि बीजेपी अपने दम पर 300 सीटें पा गई. एक ओर जहां चुनावी विश्लेषक और खुद बीजेपी नेता भी दबी जुबान ज्यादा से ज्यादा 200 से 250 सीटें पाने की बात कर रहे थे वहीं 'ऑपरेशन बालाकोट' के बाद सारे समीकरण बदल गए. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में जहां सपा-बीएसपी का वोटबैंक मिलाकर बीजेपी से बहुत ज्यादा था वहां दोनों पार्टियों ने मिलकर भी बीजेपी को रोक नहीं पाईं. फिलहाल बीजेपी अब प्रचंड बहुमत के सत्ता में है और वह बीते 6 महीने के शासन में उन्हीं मुद्दों पर काम कर रही है जो उसके 'राष्ट्रवाद' जुड़े हैं. अनुच्छेद 370, राम मंदिर, नागरिकता कानून, और एनआरसी. साल 2019 इस पूरे घटनाक्रम का गवाह रहा है.
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